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विश्लेषण: बिहार चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस हुई और कमजोर, बरकरार है पीएम नरेंद्र मोदी का करिश्मा

अब तक किसी भी पार्टी में मोदी का प्रतिद्वंद्वी नहीं है- चाहे क्षेत्रीय दल हों या राष्ट्रीय.

लॉर्ड मेघनाद देसाई, प्रमुख अर्थशास्त्री, राजनीतिक विश्लेषक

बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम ने यह स्पष्ट किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा बरकरार है. बिहार में भाजपा की बढ़त उसे अन्य राज्यों के चुनाव में फायदा पहुंचा सकती है. वहीं, कांग्रेस इस चुनाव परिणाम के बाद और कमजोर हुई है. इस चुनाव के साफ संकेत है कि मोदी की बातों में अब भी अपील है. कोरोना का प्रकोप भारत में भी काफी है.

अर्थव्यवस्था की हालत भी अच्छी नहीं कही जा सकती है. कोरोना के कारण पलायन और रोजगार की समस्या भी बीते दिनों में काफी रही है, फिर भी मोदी की अपील को लोगों ने सुना है. उन पर भरोसा किया है. इसलिए उनके भरोसे पर उन्हें खरा भी उतरना पड़ेगा. अब तक किसी भी पार्टी में मोदी का प्रतिद्वंद्वी नहीं है- चाहे क्षेत्रीय दल हों या राष्ट्रीय. राष्ट्रीय दल की जहां तक बात है, तो कांग्रेस की हालत क्षेत्रीय दलों से भी ज्यादा बदतर हो गयी है.

यानी दूसरी पार्टियों के किसी भी नेता की बातों में इतना दम नहीं है कि वह मोदी की अपील को कम कर सके. इसने भी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया है. वहीं, भाजपा का संगठन बहुत ही मजबूत है. इसमें जो लोग संघ से आते हैं, उनके भीतर सीट की महत्वाकांक्षा कम होती है. जबकि कांग्रेस सहित अन्य दलों में जो भी लोग पार्टी से जुड़ते हैं, उनमें से ज्यादातर की महत्वाकांक्षा चुनाव में टिकट या पद पाने की होती है.

मोदी व नीतीश दोनों वंशवादी राजनीति के मुखर विरोधी : बिहार चुनाव में जीत का एक और कारण यह रहा है कि नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार दोनों वंशवादी राजनीति के मुखर विरोधी हैं. इन दोनों नेताओं के परिवार का कोई भी सदस्य राजनीति में नहीं है और न ही भविष्य में आने की संभावना है.

नीतीश और भाजपा की जोड़ी अच्छे से काम कर रही है, इसलिए मतदाताओं ने दोनों के‍ ऊपर भरोसा किया है. नीतीश कुमार को भाजपा की ओर से पहले ही सीएम उम्मीदवार घोषित किया गया था. चुनाव बाद के समीकरणों पर भी किसी तरह की भ्रम न रहे, इसे भाजपा ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था, जिसका लाभ मिला.

लोगों को यह बात दिख रही थी कि यदि एनडीए चुनाव जीतता है, तो सीएम कौन होगा? एक समय नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर भी उभर रहे थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी पूरी ताकत बिहार के विकास में ही लगा दी. बिहार में नीतीश कुमार के कद का अभी कोई नेता भी नहीं है. चुनाव पूर्व उनके खिलाफ एंटी इन्कैंबेसी रही है, लेकिन चिराग पासवान के अलग होने से भी उनको अधिक खामियाजा उठाना पड़ा.

बिहार की जीत पूरे राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करेगा. बिहार की जीत ने भाजपा को बंगाल में और अधिक आक्रामक होकर चुनाव लड़ने की ऊर्जा दी है. लेकिन, जहां तक मुझे लगता है कि पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने के लिए भाजपा को और अधिक मेहनत करनी होगी, क्योंकि ममता बनर्जी वहां मजबूत स्थिति में दिख रही हैं. असम में भी इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है. इस चुनाव ने भाजपा को एक राहत दी है, क्योंकि इससे पहले कई विधानसभा चुनावाें में भाजपा को हार मिली थी.

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इस जीत के साथ ही मोदी के समक्ष चुनौतियां भी हैं, क्योंकि अर्थव्यवस्था के साथ ही बिहार के विकास पर केंद्र सरकार को फोकस करना होगा. बिहार का विकास खुद के संसाधन से संभव नहीं है. लगता भी है कि इस बार मोदी सरकार बिहार के विकास पर पहले से और अधिक ध्यान केंद्रित करेगी, क्योंकि एनडीए ने जो वादे किये हैं, उन्हें पूरा करना होगा, नहीं तो इसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ सकता है. इस बार बिहार में एक मजबूत विपक्ष है और उसका नेतृत्व एक युवा के हाथ में है, जिन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है.

(अंजनी कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित)

Posted by Ashish Jha

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