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किसानों की पीड़ा को बयां कर गये कलाकार, इप्टा ने किया उम्मीद का पहिया नाटक का मंचन

मणिपुर में महिलाओं पर हुए हिंसा के खिलाफ भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा पटना) की ओर से अभिनय कार्यशाला के उपरांत उम्मीद का पहिया नाटक का मंचन किया गया. कैफी आजमी सांस्कृतिक केंद्र परिसर में नाटक के जरिए कलाकारों ने किसानों की पीड़ा को बयां किया.

पटना. मणिपुर में महिलाओं पर हुए हिंसा के खिलाफ भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा पटना) की ओर से अभिनय कार्यशाला के उपरांत उम्मीद का पहिया नाटक का मंचन किया गया. कैफी आजमी सांस्कृतिक केंद्र परिसर में नाटक के जरिए कलाकारों ने किसानों की पीड़ा को बयां किया. किसान अपने हक की उम्मीद लगाए सबकुछ खो देता है फिर भी उसे इंसाफ नहीं मिलता है. जाति-धर्म के नाम पर लोग एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं. मंच पर गौरव, प्रिंस राज वर्मा, अभिषेक सिंह, पंडित प्रिंस राज, सौरभ राजा, विकास कुमार, राजन कुमार, अशरफ और उज्जवल ने बेहतरीन अभिनय का परिचय देते हुए लोगों नाटक के अंत तक जोड़े रखा. संगीत शिवांगी सिंह द्वारा किया गया. प्रस्तुति प्रशिक्षक एनएसडी सिक्किम के पूर्ववर्ती छात्र सुमित ठाकुर था. शानदार प्रस्तुति मौके पर राष्ट्रीय इप्टा के महासचिव तनवीर अख्तर, पटना इप्टा के सचिव पीयूष सिंह सहित अन्य लोग मौजूद रहे.

दर्शकों को विचार करने पर विवश करती है नाटक

उम्मीद का पहिया में कवि हरिश्चंद्र पांडे, सतीश कौशिक, मंगलेश डबराल, संजय कुंदन, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, नागार्जुन, फरीद खान, पारुल खखर की रचनाओं को शामिल किया गया. नाटक प्रश्न और उसके अस्तित्व की बातों से शुरू होती है, जिसमें वर्णमाला के अक्षरों को आज के युग में मानव द्वारा नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है. किसान अपने हक और उम्मीद के सहारे सब कुछ खो देता है. देश में यदि किसी एक हिस्से में आग लगी हो, तो दूसरे हिस्से में कोई कैसे चुप रह सकता है. क्या नर्क से बदतर होती है खेती, लोग क्यों आत्महत्या करते हैं. धर्म के लिए आज लोग इतने बेबस क्यों दिख रहे हैं. लाशों के ढेर पर खड़ी इंसानियत बोल रही है, सबकुछ चंगा चंगा. अंत में माफी के माध्यम से औरतों को खिलौने के रूप में इस्तेमाल कर उससे माफी मांगने के आडंबर को दिखाकर दर्शकों की ओर एक प्रश्न छोड़ती ये नाटक “उम्मीद का पहिया” दर्शकों को विचार करने पर विवश करती है.

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