पटना : बिहार इप्टा की ओर से आयोजित कार्यक्रम में बॉलीवुड अभिनेता आशीष विद्यार्थी ‘अभिनेता और आज का समय’ विषय पर बात करते हुए जिंदगी के मायने समझाये. बिहार इप्टा की ओर से कबीर और आमिर अब्बास ने आशीष विद्यार्थी से लाइव पॉडकास्ट में बात की. कोरोना वायरस को लेकर देश में लगाये गये लॉकडाउन में कलाकारों की जीवनशैली में आये बदलाव से लेकर जिंदगी के मायने तक आशीष विद्यार्थी ने खुल कर बात की. उन्होंने लॉकडाउन के समय को अवसर में बदलने से लेकर मुकाम हासिल करने, सपने देखने और उसे पूरा करने, सपने देखने और समुचित अवसर और प्रतिकूल परिस्थितियों में क्रियेटिविटी के बल पर उन्हें पूरा करने को लेकर बात की.
बातचीत करते हुए आशीष विद्यार्थी ने बताया कि मिले वक्त को अवसर में बदलना सीखें. उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश होती है कि कुछ अच्छी चीजें जो हमारे साथ हुई हैं, उन्हें पकड़ कर रखें और जो बुरी चीज हुई हैं, उन्हें छोड़ दें. मुझे लगता है कि लॉकडाउन के दौरान शेयरिंग की पद्धति खुल कर सामने आयी है. जब लोग अपनी बातें शेयर कर पा रहे हैं. कुछ लोग रेसिपी शेयर कर रहे हैं. कोई एक्टिंग के गुर एक-दूसरे से साझा कर रहे हैं. कोई जिंदगी को लेकर कई चीजें शेयर कर रहा है. इसका अर्थ है कि लोग चाहते हैं कि उनके पास कुछ है, जो दूसरे के काम आ सकता है. हम अब ज्यादा लोगों से मिल रहे हैं. पहले नहीं मिल पाते थे. बातचीत नहीं हो पाती थी. अभिनेता भी काम में मशगुल हो जाते हैं. लेकिन, जब अपने लिए वक्त मिलता है, तो वे सोचते हैं कि जो चीजें वे अपने लिए सिर्फ रखते थे, अब दूसरे के काम भी आ सकता है, तो उसे साझा करने लगे हैं. यह मानसिकता कितने दिन रहेगी, ये वक्त ही बतलायेगा.
आशीष ने कहा कि मैं 11 भाषाओं में काम करता हूं. लेकिन, उनमें से सिर्फ तीन भाषाओं को बोल पाता हूं. अन्य आठ भाषाएं ना बोल पाता हूं और ना समझ पाता हूं. परिभाषा की खासियत होती है कि उन्हें याद किया जाता है. जब आप जिंदगी में जाते हैं, तो आपको पता चलता है कि कई परिभाषाएं या कई चीजों को आपने जिस रूप में समझा था, जिंदगी में उसके कुछ और आयाम हैं. सबसे पहले मैं हिंदी का अभिनेता बना. हिंदी पर काम किया. मेरी कमजोरी है कि मैं ज्यादा भाषा नहीं सीख सकता. जिंदगी में जो चीज सबसे आकर्षित करती है, वह है आपकी खामी. आप अपनी खामी को लेकर जिंदगी में रूके रहेंगे? इंतजार करेंगे कि जो खामी है, उसे पहले दूर करेंगे. जिंदगी में मैंने पाया है कि हम सबकी जिंदगी में बहुत सारी खामियां हैं. अगर आप कोई बड़ा प्ले करना चाहते हैं, तो आपको खुद में बहुत सारी खामियां मिलेंगी, जिसकी वजह से आप वो हासिल नहीं पा रहे. मेरा मानना है कि यह बहुत इंट्रेस्टिंग होता है. आप जब क्रियेटिव होते हैं. क्रियेटिव माइंडसेट रखते हैं, तो ये कभी ना सोचें कि आपमें क्या खामी है. आप ये सोचें कि आप करना क्या चाहते हैं. अब ये सोचिये कि आपके पास जो है, उसे कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं. मैं कमियों को दूर नहीं कर सकता, तो मैं कमियों को दूर करने के तरीके निकालता हूं. मेरी जिंदगी इसी पर केंद्रित है. मैं कमियों को दूर कर आगे नहीं बढ़ता. कमियों से निबटने के तरीके ढूंढ़ता हूं और आगे बढ़ता हूं. जिंदगी का मजा इसमें है कि कमियों के बावजूद आप आगे निकल जाएं. दुनिया में जितने भी कमाल के लोगों को देखेंगे कि कितनी कमियों के बावजूद जिंदगी में उन्होंने वो हासिल किया, जो वो चाहते थे.
जिंदगी में ये क्या जरूरी है कि मैं एक बोझ के तले दब जाऊं. कितना अच्छा काम है. करने नहीं दिया जा रहा है. लेकिन, मुझे करना है यार… मेरे पास दो च्वॉयस थे. मैं इंतजार करूं, जो किरदार मैं करना चाहता हूं या मैं अपने मां-बाप को खाना खिलाऊं. मेरा स्पष्ट फैसला था, मुझे उन्हें खिलाना है. क्योंकि, वे रिटायर्ड हो चुके हैं. मुझे उनका ख्याल रखना है. मुझे अपना ख्याल रखना है. आप अपनी जिम्मेदारियों को बढ़ा सकते हैं. परिवार से समाज तक ले जा सकते हैं. ये आपका निर्णय है. जिंदगी गणित नहीं है. मेरे पिताजी ने मुझे काफी आजादी दी. इससे मेरी जिंदगी में काफी आत्मविश्वास आया.
आप किस बैकग्राउंड से हैं, कोई मायने नहीं रखता. मायने रखता है कि आप जाना कहां चाहते हैं. बैकग्राउंड के बारे में सोचना बंद करें. बहुत लोगों के बैकग्राउंड में कुछ नहीं था और उन्होंने वो हासिल किया, जो वो चाहते थे. अपने बीते हुए कल को शुक्रिया जरूर कहिये. शुक्रिया कहिये कि आपको मौका मिला. शुक्रिया कहिये कि आप पैदा हुए. शुक्रिया कहिये कि आप अभी तक जिंदा हैं. शुक्रिया कहिये कि आप अब भी सपने देखने की हिम्मत रखते हैं और उन सपनों को पूरा कीजिए और कुछ मत देखिये. अगर आप जिंदा हैं, तो कुछ कीजिए. क्योंकि, एक दिन हमलोग नहीं रहेंगे. कोरोना के साथ मरेंगे या कोरोना के बिना मरेंगे. लेकिन, अब से लेकर तब तक वो खास कीजिए अपने लिये, किसी और के लिए नहीं.
आप जब-जब बैकग्राउंड की बात करेंगे, बहुत कम लोग खुशनसीबी के साथ बैकग्राउंड की बात करेंगे. बहुत लोग बैकग्राउंड को वजह बताते हैं कि वे कुछ क्यों नहीं कर पाये. अगर आपको डॉक्टर बनना है, इंजीनियर बनना है, एक्टर बनना है, शेफ बनना है, दुनिया की जिम्मेदारी नहीं है कि वो आपके सपने को पूरा करे. जब दुनिया की जिम्मेदारी नहीं है, तो किसकी जिम्मेदारी है, खुद की है. विराट कोहली के बारे में जानते हैं. विराट कोहली को भी कुछ साल पहले आप नहीं जानते थे. आप सचिन तेंडुलकर को जानते थे. अब आप जानते हैं. सुनील गावस्कर का बैकग्राउंड, सचिन तेंडुलकर का बैकग्राउंड, विराट कोहली का बैकग्राउंड, हर एक का बैकग्राउंड अलग है दोस्त. हर एक ने अपनी वजह ढूंढ़ी है, अपने काम को पूरा करने के लिए. किसी भी अभिनेता, साइंटिस्ट को देख लीजिए. वजह आपको ढूंढ़नी है कि आप उसे कैसे कर सकते हैं. आपके पास लाख कारण है कि आप नहीं कर सकते, आप एक कारण ढूंढ़िए कि आप कर सकते हैं. यही जिंदगी हैं.
किसी भी अनुभव के बिना हम नहीं है. हम सब अपने एक्सपीरियंस के साथ बने हैं. हिंदी की वजह से मैं एक अभिनेता बना. सह अभिनेता मूव करता रहा. दक्षिण गया, बंगाल गया, ओड़िशा गया, दक्षिण के अलग-अलग भाषाओं में काम करता रहा. वह अभिनेता मोटिवेशनल बातचीत, ऑगनाइजेशन, कोचिंग में काम करता रहा. क्रियेटिविटी के साथ काम करता रहा. वेब सीरिज में काम करता रहा. हम सभी अपने अच्छे-बुरे के साथ बने हैं. अंत में एक ही चीज कहना चाहूंगा कि माइकल जैक्शन ने एक गजब का गाना लिखा था ‘मैन इन द मिरर’. अगर आप कुछ बनना चाहते हैं, तो सबसे पहले खुद को बदलें. आप सपने देखिए और सपनों से खुद को जोड़िए. सपनों के टूट जाने का भय छोड़िए. सभी सपने पूरे नहीं होते. फिर भी सपने देखना मत छोड़िए. मैं रोज सपने देखता हूं और उन सपनों को पूरा करने की कोशिश करता हूं. आप अपना कल बेहतर बनाना नहीं चाहेंगे, तो आपका कल बेहतर नहीं होगा. लॉटरी पर आश्रित मत होइए. ‘डू एंड डाय’ मत कीजिए.. ‘डू एंड लिव’… अपना ख्याल रखिए. आज का समय है कि अपने ऊपर काम करना पड़ेगा. अब जिंदगियां फिक्स कैरियर पर नहीं चलेंगी. आपको नये आयाम ढूंढ़ने पड़ेंगे.
आशीष विद्यार्थी का जन्म 19 जून, 1962 में कुन्नूर केरला में हुआ था. उनके पिता का नाम गोविंद विद्यार्थी है. वह एक मलयाली थिएटर आर्टिस्ट हैं. उनकी मां रीबा विद्यार्थी एक कथक नृत्यांगना हैं. उन्होंने प्राथमिक पढ़ाई कुन्नूर केरला से की. उसके बाद वह साल 1969 में वह दिल्ली आ गये. यहां आकर उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूरी की. दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज से उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद भारतीय विद्या भवन मेहता विद्यालय में अभिनय और नाटक की बारीकियां सीखीं. आशीष ने विद्यार्थी सरनेम अपने पिता से लिया है. दरअसल, उनके पिता गोविंद विद्यार्थी ने यह सरनेम पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी को श्रद्धांजलि देने के लिए रखा था. कहा जाता है कि गोविंद युवावस्था में अक्सर गणेश शंकर विद्यार्थी का किरदार निभाया करते थे. किरदार निभाते-निभाते उनके मन में वैसा ही बनने की इच्छा जागी और उन्होंने अपना सरनेम ‘विद्यार्थी’ रख लिया.