Bihar Coaching Reopen: कोरोना के कारण हुये तालाबंदी के बाद कोचिंग संस्थानों को ऑनलाइन क्लास चलाने का विकल्प तो मिला, मगर संसाधनों की कमी, नेट की स्पीड व अन्य कारणों से यह छात्रों के हित में खरा नहीं उतर सका. इस कारण विभिन्न प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने लाखों छात्रों के रिजल्ट पर इसका सबसे बुरा असर पड़ा और राज्य का सक्सेस रेशियो घट गया है.
राज्य में प्रत्येक वर्ष बोर्ड, इंजीनियरिंग, मेडिकल, रेलवे, यूपीएससी व अन्य प्रतियोगी परीक्षा में करीब 22 लाख छात्र बैठते हैं. इनमे से राज्य में 11 से 12 लाख छात्र कोचिंग क्लास के माध्यम से परीक्षा की तैयारी करते हैं. केवल पटना शहर में चलने वाले कोचिंग संस्थानों में आठ लाख से ज्यादा छात्र अपनी तैयारी करते हैं.
कोचिंग एसोसिएशन ऑफ बिहार से जुड़े लोगों ने इस बात की चिंता जताते हुये शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव से भी कोचिंग संस्थान को खोलने की अनुमति देने की मांग की है. एसोसिएशन से जुड़े डॉ कृष्णा सिंह, सुधीर सिंह व अन्य लोगों ने बताया कि कोचिंग बंद होने की वजह से छात्रों पर साइकॉलोजिकल प्रेशर भी बढ़ा है. कई ऐसे प्रतियोगी परीक्षा हैं, जिनमें बैठने की चांस फिक्स है. मगर छात्रों के हाथ से निकलती जा रही है. इसका असर आने वाले समय में बोर्ड, मेडिकल व इंजीनियरिंग व अन्य प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने वाले लाखों छात्रों की रिजल्ट पर असर पड़ेगा.
संसाधनों की कमी – ऑनलाइन क्लास कंडक्ट कराने के लिये एक कोचिंग इंस्टिट्यूट को कम से तीन स्टूडियो सेटअप तैयार करना होगा तभी सुचारु रूप से क्लास चल सकेंगी. एक स्टूडियो बनाने में चार से पांच लाख लाख रूपये का खर्चा आता है जो अधिक्तर छोटे इंस्टीट्यूट के पास नहीं हैं.
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शहर में आठ लाख से ज्यादा छात्र विभिन्न कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ते हैं. इनमें से 50 प्रतिशत से अधिक शहर के बाहर के छात्र होते हैं, जहां नेट की बेहतर कनेक्टिविटी उन्हें नहीं मिल पाती है. ऑनलाइन क्लास को सुचारू रूप से चलाने के लिये इंटरनेट की डाउनलोडिंग व अपलोडिंग स्पीड 10 एमबीपीएस की होनी चाहिये. ग्रामीण इलाके में रहने वाले छात्रों को नेट की स्पीड केबीपीएस में उपलब्ध हो पाती है.
राज्य के ग्रामीण इलाके में रहने वाले छात्र नयी तकनीक व ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर खुद को सहज नहीं पाते हैं. इसके साथ इन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों के सामने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर पढ़ाने का अभ्यास न होने के कारण भी क्लास जैसी गुणवत्ता छात्रों को नहीं मिल पाती है. इसके साथ ही कुछ मैथेमेटिकल व फिजिकल इक्वेशन ऐसे होते हैं जिसका कंसेप्ट छात्रों से रुबरू होकर ही समझाया जा सकता है. छात्र शिक्षकों की नजर के सामने होते हैं तो उन्हें भी पता चल पता है कि बच्चे पढ़ाये गये टॉपिक पर कितना फोकस कर रहे हैं.
महीनों से कोचिंग बंद होने की वजह से छात्रों पर पढ़ाई के साथ साइकॉलोजिकल प्रेशर भी बढ़ता जा रहा. क्लास की आदत छूटने से वापस से ट्रैक पर आने में भी उन्हें समय लगेगा जिसका असर उनकी रिजल्ट पर पड़ना स्वाभाविक है. जिस तरह अन्य सेक्टर के लिये एसओपी जारी किया गया है उसी तरह कोचिंग सेक्टर को खोलने के लिये भी अनुमति दी जानी चाहिये – डॉ कृष्णा सिंह, कैब मेंबर व रिजनल हेड, चाणक्य आइएएस एकेडमी
शहर में गिने चुने कोचिंग संस्थान ही सुचारू रुप से ऑनलाइन क्लास कंडक्ट करा पाये हैं. इसके पीछे संसाधनों की कमी के वजह से डिजिटल मार्केटिंग फन्नल भी क्रिएट नहीं कर पाये. ग्रामीण इलाके में रहने वाले छात्रों के लिये भी ऑनलाइन क्लास ऊबाऊ साबित होने लगा और छात्रों की संख्या कम होती चली गयी. इसका असर आने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षा के रिजल्ट भी पड़ेगा.
– सुधीर सिंह, फाउंडर मेंबर कैब
बड़े कोचिंग इंस्टीट्यूट ने तो ऑनलाइन क्लास कंडक्ट करायी है, मगर फिर भी सिलेबस पूरा नहीं हो सका है. प्रतियोगी परीक्षा पहले भी अपने निर्धारित समय पर ही ली गयी है और आगेे भी समय पर ही ली जायेगी. ऐसे में छात्रों पर अपने रिजल्ट को लेकर प्रेशर बढ़ता जा रहा. इसका सीधा असर उनके रिजल्ट पर पड़ेगा और सक्सेस रेशियो और भी कम हो सकती है.
– विपिन्न कुमार सिंह,कैब मेंबर व एमडी, गोल इंस्टीट्यूट.
Posted By: Thakur Shaktilochan