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Bihar Opinion Poll 2020: बिहार में सबसे बड़ा मुद्दा विकास या रोजगार? जानिए ओपिनियन पोल में क्या है वोटर्स का मूड

Bihar Election Opinion Poll 2020, Latest Update: बिहार में इस बार किसकी बनेगी सरकार, किसकी होगी हार, कौन बनेगा मुख्यमंत्री और कहां से बाजी मारेगा कौन उम्मीदवार.....ये सारे सवाल बिहार के सियासी समर में छाए हुए हैं. लेकिन इसी के बीच सवाल यह भी है कि सबसे बड़ा मुद्दा क्या है विकासी या रोजगार? इसे लेकर लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वेक्षणों में बहुत कुछ साफ हुआ है.

Bihar Election Opinion Poll 2020, Latest News: बिहार में इस बार किसकी बनेगी सरकार, किसकी होगी हार, कौन बनेगा मुख्यमंत्री और कहां से बाजी मारेगा कौन उम्मीदवार…..ये सारे सवाल बिहार के सियासी समर में छाए हुए हैं. लेकिन इसी के बीच सवाल यह भी है कि सबसे बड़ा मुद्दा क्या है विकासी या रोजगार? इसे लेकर लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वेक्षणों (Lokniti CSDS Bihar Opinion Poll) में बहुत कुछ साफ हुआ है. बिहार विधानसभा (Bihar Assembly Election) का यह चुनाव केवल दो राजनीतिक मोर्चों में लड़ाई ही नहीं है, बल्कि दो प्रतिस्पर्धी विमर्शों का संघर्ष भी है, जिसमें एक ओर विकास (Developments) है और दूसरी ओर रोजगार (Jobs) है. Bihar Election 2020 लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए बने रहें हमारे साथ.

हमारा चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण दिखा रहा है कि अभी विकास को बढ़त है, पर रोजगार भी बहुत पीछे नहीं है. इस तरह जो विमर्श प्रभावी होगा, वही यह निर्धारित करेगा कि अगली सरकार किसकी बनेगी. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के लोकनीति कार्यक्रम द्वारा बिहार में 10 से 17 अक्तूबर, 2020 के बीच कराये गये चुनाव पूर्व सर्वेक्षण से यह आंकड़े सामने आये हैं. यह सर्वेक्षण 148 स्थानों (मतदान केंद्रों) पर आयोजित किया गया था. इसमें राज्य के 37 विधानसभा क्षेत्र के 3731 उत्तरदाताओं (सभी पंजीकृत मतदाताओं) ने भाग लिया.

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वर्ष 2005 में जब से नीतीश कुमार सरकार बिहार में सत्ता में आयी, लोकनीति-सीएसडीएस के 2010 और 2015 के सर्वेक्षणों में विकास का मुद्दा अन्य मुद्दों की तुलना में बड़े अंतर के साथ राज्य के मतदाताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बनकर सामने आया है. विकास की यह मांग अपेक्षित ही है क्योंकि कई अन्य राज्यों की तुलना में बिहार विकास के सूचकांकों में सबसे नीचे है. साल 2020 का चुनाव इस संबंध में पिछले चुनावों से भिन्न नहीं है क्योंकि बिहार के मतदाताओं में विकास की भूख बनी हुई है.

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राज्य के 37 विधानसभाओं में 3700 से अधिक मतदाताओं के बीच हुए हमारे चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण में विकास एक बार फिर सबसे बड़ा मुद्दा दिख रहा है, जिसका ध्यान मतदाता वोट डालते समय रखेंगे, ऐसा 29 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा है. यह 2015 के लोकनीति के सर्वेक्षण से केवल दो प्रतिशत कम है. इस बार जो पहलू बहुत अहम है, वह है कि विकास को अन्य मुद्दे से कुछ गंभीर चुनौती मिलती दिख रही है (अगर हम इसे ऐसा कह सकते हैं तो) और वह मुद्दा है बेरोजगारी.

हर पांच में से एक यानी 20 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा कि इस चुनाव में उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा रोजगार की कमी है. पांच साल पहले, 2015 में, यह आंकड़ा नौ प्रतिशत के साथ बहुत नीचे था, जो कि आज की तुलना में आधे से भी नीचे था. साल 2015 में दूसरा सबसे अहम मुद्दा महंगाई का था, जो इस बार तीसरे स्थान पर है.

युवा मतदाताओं के लिए रोजगार बड़ा मुद्दा

बेरोजगारी के एक अहम चुनावी मुद्दा बनने और मुद्दों की श्रेणी में दूसरे स्थान पर पहुंचने का एक मुख्य कारण युवा मतदाता और उनकी अपेक्षाएं हैं. सर्वेक्षण ने पाया है कि 18 से 25 साल की आयु के मतदाता (इस आयु वर्ग के लोगों की संख्या कुल जनसंख्या में एक-चौथाई से अधिक है) दूसरे आयु वर्ग के मतदाताओं की अपेक्षा रोजगार के मसले में अधिक ही चिंतित दिखे. इस आयु वर्ग और कुछ हद तक 26 से 35 साल की आयु के मतदाताओं की वजह से रोजगार अहम मुद्दा बन गया है.

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इस सर्वेक्षण में 18 से 25 साल आयु के मतदाताओं में हर चार में से एक से अधिक यानी 27 प्रतिशत ने तथा 26 से 35 साल आयु के मतदाताओं में हर पांच में से एक ने कहा कि वे रोजगार के मुद्दे पर मतदान करेंगे, जबकि 56 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों में केवल 14 प्रतिशत ने ही कहा कि वे रोजगार के मसले पर मतदान करेंगे. वास्तव में यहां एक स्पष्ट रूझान दिख रहा है कि मतदाता जितना युवा होगा, उसके लिए रोजगार उतना ही अहम मुद्दा होगा. साल 2015 में हमने दो प्रमुख मुद्दों पर हमने आयु के आधार पर ऐसा अंतर नहीं पाया था और तब युवा व बुजुर्ग मतदाताओं का विकास एवं रोजगार के मुद्दे पर लगभग एक समान रवैया था.

राजनीतिक दलों के दावे

एनडीए की ओर से सुशासन और विकास को केंद्र में रखा गया तो महागठबंधन ने रोजगार के मसले को जोरशोर से उठाना शुरू कर दिया.एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किये गये नीतीश कुमार ने हर खेत को पानी और सात निश्चय-दो को लागू करने का वायदा किया है. उधर, महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव सत्ता में आने पर 10 लाख सरकारी नौकरियां देने का वादा कर रहे हैं. बिहार जैसे कृषि आधारित सामाजिक बनावट में रोजगार का मुद्दा प्रमुखता से उभरा है. वोटरों और खासकर युवा वोटर एक पल ठहरकर सोचता है कि अमूक पार्टी या फलां नेता उसके रोजगार की बात कर रहा है.

समग्र विकास और रोजगार जैसे दो मसलों को देखें, तो इसके बीच का यह अनुपात 35 और 20 प्रतिशत का है. जहां मतदाताओं के लिए विकास मुख्य चिंता है, वहां एनडीए को महागठबंधन पर 27 प्रतिशत की बढ़त देखी गयी है, जबकि जहां मतदाताओं के लिए रोजगार अहम मुद्दा है, वहां एनडीए पर महागठबंधन की कुछ बढ़त दर्ज की गयी है.

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एनडीए ने विकास के मुद्दे को केंद्र में रखा है, तो महागठबंधन रोजगार के मसले को वोटरों को गोलबंद करना चाहता है. महागठबंधन के लिए जो चिंता की बात होनी चाहिए, वह यह है कि मतदाता इस गठबंधन को विकास निश्चित करनेवाला नहीं मान रहे हैं, शायद यह लालू-राबड़ी शासन के दौर की यादों की वजह से हो. चुनाव प्रचार के दौरान यह देखा भी जा रहा है कि एनडीए की ओर से लालू-राबड़ी राज की बार-बार याद दिलायी जा रही है.

Posted By: Utpal kant

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