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जंग-ए-आजादी में बिहार की वीरांगनाओं ने भी लिया था बढ़ चढ़ कर हिस्सा, जानें इन 5 स्वतंत्रता सेनानियों को

भारत की आजादी के लिए बिहार की कई महिलाओं ने लड़ाई लड़ी थी. आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको कुछ ऐसी ही वीरांगनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं. जिन्होंने बढ़-चढ़ कर आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था.

भारत की आजादी के 76 साल पूरे होने वाले हैं. इस आजादी के लिए हमारे देश के कई स्वतंत्रता सेनानियों ने लड़ाई लड़ी और बलिदान दिया. इस लड़ाई में पुरुषों ने ही नहीं बल्कि बिहार की कई महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. कई को इतिहास की किताबों में याद रखा गया तो कुछ ऐसे भी नाम हैं जिन्हें वक्त के साथ भुला दिया गया. वैसे तो इन किताबों और कहानियों के जरिए आपने कई वीरांगनाओं के बारे में जाना होगा. हम आपको बिहार की कुछ ऐसी ही वीरांगनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने जंग-ए आजादी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था. जिनकी कहानी सुन आपका सीना चौड़ा हो जाएगा.

विंध्यवासिनी देवी

वर्ष 1919 यह वह साल था जब विंध्यवासिनी देवी जी मुलाकात गांधी जी से हुई थी. इसके बाद वो कांग्रेस की स्थायी सदस्य बनी और खुद को सामाजिक कार्यों में समर्पित कर दिया. उनकी देश भक्ति ने लोगों को खूब प्रभावित किया, खास कर उस वक्त जब उन्होंने अपनी बेटियों को विदेशी सामान और शराब की बिक्री के विरोधमें आंदोलन करने के लिए भेज दिया. विंध्यवासिनी देवी को अंग्रेजों ने 1930 में हुए नमक आंदोलन के दौरान अन्य महिलाओं के साथ गिरफ्तार किया. इन्हें 1932 में मुजफ्फरपुर जेल भी भेजा गया और कन्या स्वयं सेविका द को अवैध घोषित कर दिया. पटना में हुए आंदोलन में भी विंध्यवासिनी देवी का महत्वपूर्ण योगदान था. इस आंदोलन ने इतना जोर पकड़ा था कि पटना के जिलाधिकारी को उनका मुकाबला करने के लिए महिला पुलिस की भर्ती करनी पड़ी थी.

प्रभावती देवी नारायण

प्रभावती देवी नारायण का जन्म सिवान ज़िले के श्रीनगर क्षेत्र के वकील बृजकिशोर प्रसाद और फूल देवी के घर में हुआ था. इनका विवाह वर्ष 1920 में जयप्रकाश नारायण से हुआ जब वह सिर्फ 14 साल की थीं. शादी के बाद जयप्रकाश पढ़ाई करने बाहर चले गए और प्रभावती देवी गांधी जी के आश्रम में चली गईं. विदेश सामानों के बहिष्कार के आह्वान के दौरान 1932 में प्रभावती देवी को लखनऊ से गिरफ्तार किया गया था. गांधी जी और राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें बालिका स्वयं सेवकों को संगठित करने का काम सौंपा था. प्रभावती देवी ने चरखा आंदोलन में महिलाओं को शामिल करने के लिए पटना में महिला चरखा समिति की स्थापना की थी. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इन्हें गिरफ्तार कर भागलपुर जेल भेज दिया गया था. प्रभावती देवी और जयप्रकाश नारायण ने मिलकर यह फैसला किया था कि जब तक भारत मुक्त नहीं होगा, तब तक उन्हें कोई संतान नहीं चाहिए.

तारकेश्वरी सिन्हा

नालंदा जिले के एक परिवार में वर्ष 1926 तारकेश्वरी सिन्हा का जन्म हुआ था. पटना के बांकीपुर कॉलेज में पढ़ाई करने के दौरान ही उन्हें स्टूडेंट पॉलिटिक्स में इंट्रेस्ट हो गया था. बहुत काम उम्र में ही बिहार की बड़ी छात्र नेता के तौर पर उन्होंने पहचान बना लीं. महज 16 साल साल की उम्र में उन्होंने 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. तारकेश्वरी बिहार छात्र कांग्रेस की अध्यक्ष भी चुनी गई थी. वो उन लोगों में से थी जिन्होंने नालंदा में महात्मा गांधी की अगवानी की थी. राजनीति में तारकेश्वरी की दिलचस्पी देख उनके डॉक्टर पिता ने चिंतित होकर उनकी शादी छपरा के जाने-माने जमींदार परिवार में कर दी. उनके पति निधिदेव सिंह तब नामचीन वकील थे और सरकार के मुकदमों की पैरवी किया करते थे.

राम प्यारी देवी

अरवल जिले की स्वतंत्रता सेनानी राम प्यारी देवी की शादी 12 मार्च 1930 को हुई और उन्होंने 30 मार्च की नामक सत्याग्रह में भाग लिया. इस दौरान उन्हें एक साल की जेल भी हुई. राम प्यारी देवी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्य बनने के लिए किसान नेता सहजानंद सरस्वती को हरा दिया था और वे इस पद पर 1939 तक रही थी. उन्हें उनके राजनीतिक भाषणों के लिए कई बार गिरफ्तार भी किया गया. रामप्यारी ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए अलवर की महिलाओं की टोली तैयार कर दी थी. उस समय सत्याग्रह के लिए टोलियों के रूप में दूर-दूर से लाेग अलवर आते थे. तब रामप्यारी व उनके साथ की महिलाएं आंदोलनकारियों के लिए खाने का इंतजाम भी करती थीं.

तारा रानी श्रीवास्तव

सारण जिले के एक साधारण परिवार में जन्मी तारा रानी श्रीवास्तव की शादी स्वतंत्रता सेनानी फूलेंदु बाबू से हुई थी. तारा रानी के अंडर आजादी के लिए कुछ कर गुजरने की चाह थी लेकिन उस वक्त महिलाओं को लेकर काफी पाबंदियां रहा करती थी. लेकिन तारा रानी ने सभी पाबंदियों को किनारे करते हुए अपने गांव और आसपास की महिलाओं को संगठित करती और महात्मा गांधी के संदेशों को जन-जन तक पहुंचाती. वो अपने पति के साथ अंग्रेजी शासन के खिलाफ विरोध मार्च निकालती. तारा रानी1942 में गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन के साथ जुड़ गई, विरोध को नियंत्रित किया, और सीवान पुलिस स्टेशन की छत पर भारतीय ध्वज फहराने की योजना बनाई. उन्होंने भीड़ इकट्ठा कर ‘इंकलाब’ के नारे लगाते हुए सीवान पुलिस स्टेशन की ओर मार्च शुरू किया. इस मार्च पर पुलिस ने लाठीचार्ज और फायरिंग भी की. इस फेरीनहह तारा रानी के पति फुलेंदु को गोली लगी और वे जमीन पर गिर गए लेकिन फिर भी निडर, तारा ने अपनी साड़ी की मदद से उसे बांध दिया और भारतीय झंडा पकड़े हुए ‘इंकलाब’ के नारे लगाते हुए भीड़ को स्टेशन की ओर ले जाती रही. तारा के वापस आने पर उनके पति की मृत्यु हो गई लेकिन उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करना जारी रखा.

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