Bihar Vidhan Sabha Election 2020 : बिहार विधानसभा चुनाव के तारिखों का ऐलान होने के बाद से ही राज्य में सियासी सरगर्मी बढ़ती जा रही है. अक्टूबर के अंत में होने वाले पहले चरण के चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करनी शुरू कर दी है. सत्ताधारी दल के नेता हों या चाहे अन्य दल के सभी पार्टी उम्मीदवार अब अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में वोटरों को साधने में जुट गये हैं. नेताओं ने अपने अपने हिसाब से कोई जाति के आधार पर तो कोई विकास के दावों पर वोट मांग रहा है. इसी कड़ी में सभी राजनीतिक पार्टियों को जोर उन “साइलेंट वोटरों” को अपने पाले में लाने का है, जो राजनीतिक दलों के गणित को बदल सकती है.
बिहार में ‘चुप्पा वोटर’यानि साइलेंट वोटर की संख्या लगभग 35 लाख है. आंकड़ों की बात करें तो इनकी संख्या स्थानीय स्तर पर भले ही कम दिखती हो, लेकिन इनकी कुल संख्या राज्य के राजनीतिक दलों के मंसूबों पर पानी फेर सकती हैं. बता दें कि 35 लाख साइलेंट वोटोरों में करीब 13 लाख ऐसे मतदाता हैं, जिनकी उम्र 80 वर्ष से अधिक है,वहीं, 6 लाख दिव्यांग हैं. इस बार चुनाव आयोग ने इन वोटरों के लिए पोस्टल बैलेट की व्यवस्था की है. वहीं 16 लाख वे प्रवासी श्रमिक वोटर हैं जो देश के अलग-अलग हिस्सों से लॉकडाउन के कारण घर लौटे हैं.
बता दें कि बिहार के 38 जिलों में करीब 18.87 लाख प्रवासी हैं. इनमें से करीब 16 लाख मतदान करने के योग्य हैं. इनमें से 13.93 लाख प्रवासी मजदूरों के नाम पहले से ही मतदाता सूची में थे. वहीं, करीब 2.3 लाख मजदूरों ने मतदान के लिए पंजीकरण कराया है. इन प्रवासी मजदूरों की भूमिका चुनाव में अहम साबित हो सकती हैं. कोरोना काल में दूसरे राज्यों से बिहार लौटे श्रमिक विधानसभा चुनाव में बाजी पलट सकते हैं. साल 2015 के आंकड़ों के मुताबिक, आठ विधानसभा सीटों पर हार-जीत का अंतर एक हजार से कम का था.