पटना. अपहरण के एक मामले में आरोपित गन्ना उद्योग मंत्री कार्तिक कुमार ने बुधवार की देर शाम राज्य मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सिफारिश पर राज्यपाल फागू चौहान ने इस्तीफा स्वीकार कर लिया. राजद के विधान पार्षद कार्तिक कुमार ने 16 अगस्त को महागठबंधन सरकार में कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली थी. एक दिन पहले ही उनका विभाग बदला गया था. कार्तिक पहले विधि मंत्री बनाये गये थे. मंगलवार देर रात उनका विभाग बदल कर उन्हें गन्ना उद्योग मंत्री और शमीम अहमद को विधि मंत्री बनाया गया था.
बुधवार सुबह अधिसूचना सार्वजनिक की गयी थी. मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग ने अधिसूचना जारी कर कहा है कि कार्तिक कुमार अब राज्य मंत्रिपरिषद के सदस्य नहीं रहे. गन्ना उद्योग विभाग का अतिरिक्त प्रभार राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री आलोक कुमार मेहता को दिया गया है. मंत्री बनाये जाने के दिन से ही कार्तिक विवादों से घिरे रहे. पंद्रहवें दिन उन्हें सरकार से बाहर हो जाना पड़ा.
वर्ष 2014 में बिहटा में राजीव फ्लैशबैक रंजन नामक व्यक्ति के अपहरण के मामले में दानापुर की निचली अदालत ने कार्तिक कुमार के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया था. जिस दिन (16 अगस्त को) उन्होंने मंत्री पद की शपथ ली, उसी दिन उन्हें कोर्ट में हाजिर होना था. हालांकि, बाद में अदालत ने उनके खिलाफ कार्रवाई पर एक सितंबर तक रोक लगा दी.
उनके अधिवक्ता का कहना हैकि उनका नाम प्राथमिकी दर्ज होने के 10 महीने बाद जोड़ा गया, जिस पर सीजेएम की कोर्ट ने संज्ञान ले लिया. इसके बाद कार्तिक कुमार ने पटना के जिला सत्र न्यायाधीश के यहां अग्रिम जमानत की याचिका दायर की. कोर्ट ने इसे दानापुर की एडीजे अदालत को सुनवाई के लिए भेज दिया. एडीजे की अदालत ने सुनवाई करते हुए अगली कार्रवाई पर एक सितंबर तक के लिए रोक लगायी थी. अब इस मामले की सुनवाई एक सितंबर को होनी है.
कार्तिक कुमार के खिलाफ अपहरण का मामला लंबित होने का मुद्दा बना कर भाजपा ने उनके इस्तीफे की मांग की थी. कार्तिक कुमार जेल में बंद मोकामा के पूर्व विधायक अनंत कुमारसिंह के भरोसेमंद रहे हैं. राजद ने पटना विधान परिषद चुनाव में उन्हें खड़ा किया, जिसमें वह जीते थे. उन्हें मास्टर साहब के नाम से भी जाना जाता हैं.
2005 में 26 नवंबर को जीतन राम मांझी ने मंत्री पद की शपथ ली और अगले दिन 27 नवंबर को नीतीश कुमार ने उनसे इस्तीफा ले लिया था. उन पर बीएड घोटाले में संलिप्तता के आरोप थे. 2000 में मेवालाल चौधरी को शिक्षा मंत्री बनाये जाने के तीन घंटे के भीतर ही इस्तीफा देना पड़ा था. उन पर कृषिविवि में नियुक्ति घोटाले का आरोप था.