बिहार के मशहूर चिकित्सक डॉ. प्रभात कुमार का कोरोना से निधन मंगलवार को हो गया. वो प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ के रूप में एक अलग पहचान रखते थे. बिहार में एंजियोप्लास्टी की शुरुआत का श्रेय भी उन्हें ही जाता है. उनके निधन का समाचार सुनकर बिहार में आम से लेकर खास लोग भी शोक में डूबे रहे. लोग डॉ. प्रभात के असमय मृत्यु पर भरोसा नहीं कर पा रहे थे. सोशल मीडिया पर आम लोगों ने भी उनके मिलनसार स्वभाव और उनके काम करने के अनोखे तरीके को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी.
बिहार के मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रभात कुमार कोरोना के दूसरे लहर के दौरान 1 मई को संक्रमण की चपेट में पड़ गए थे. उनकी तबियत अचानक बिगड़नी शुरु हुई तो दस मई को एयर एंबुलेंस से उन्हें हैदराबाद ले जाया गया था. उन्हें एक्सट्रा कारपोलरी मेम्ब्रेन ऑक्सीजेनेशन सिस्टम मशीन पर रखा गया था. बाद में उनका कोरोना रिपोर्ट निगेटिव भी हो गया था. पर अचानक मंगलवार को तबियत बिगड़ी और उन्होंने आखिरी सांस ली.
डॉ. प्रभात के निधन पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शोक जताया और शोक संदेश में कहा कि बिहार के लोगों को पहले एंजियोप्लास्टी की सुविधा के लिए एम्स या फोर्टिस जैसे संस्थानों में जाना पड़ता था लेकिन डॉ. प्रभात कुमार ने ये सुविधा पटना में उपलब्ध कराई.वो समाज कार्यों से भी जुड़े थे. उनका निधन चिकित्सा जगत के लिए अपूरणीय क्षति है.
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वहीं डॉ.प्रभात के निधन का समाचार सुनते ही सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया आनी शुरु हो गई. लोगों ने उनके साथ अपने अनुभव को साझा किया और दुख प्रकट किया. बिहार के एक पत्रकार ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा कि डॉ.प्रभात का इस तरह देवलोक गमन बिहार पर वज्रपात के समान है.वो केवल एक चिकित्सक नहीं बल्कि एक संजीदा व बेहद संवेदनशील इंसान भी थे. वो कभी उंची आवाज में बात करते नहीं दिखे और ना ही कभी काम से उबे. उन्होंने लिखा कि उनसे इलाज के लिए लोग लंबी लाइन में इंतजार करते. लेकिन कोइ भी मरीज उनके पास से लौटकर बिना उनकी तारीफ किए नहीं रहते.
पत्रकार ने लिखा कि उन्होंने एक बार अपने पिता का इलाज उनसे कराया. डॉ. प्रभात ने उन्हें दवाई लिखी और रोजाना लंबे समय तक खाने की सलाह दी. कुछ दिनों बाद सेहत सामान्य होने के कारण सब अपनी धुन में अपनी दिनचर्या में लग गए. करीब दो महीने बाद एक दिन उनके फोन पर अंजान नंबर से घंटी बजी और पिताजी का हाल-चाल जाना. उनके सेहत के बारे में भी पूछा गया. काम के लोड के कारण पत्रकार ने नार्मल अंदाज से जवाब देकर बाद में फोन करने को कहा और अंजान होने के कारण उनका परिचय पूछा. दूसरे तरफ से जो जवाब आया वो चौंकाने वाला था.उस तरफ से हंसते हुए आवाज आई -मैं डॉक्टर प्रभात बोल रहा हूं.
वहीं रमण नाम के एक व्यक्ति ने लिखा कि इतने बड़े डॉक्टर और इतनी सादगी थी क्या कहा जाए. उन्होंने कहा कि डॉ प्रभात ने मेरी सास का इलाज किया. इनके हाथों में मानों जादू हो. उज्जवल कुमार ने लिखा कि मरीजों और परिजनों का दिल भी वो जीत लेते थे. लोग अपना अनुभव लिखने लगे तो फेसबूक पर कई महीने कम पड़ जाएंगे.
सूरज प्रकाश ने फेसबुक पर लिखा कि मैं बहुत कम उम्र का था. दादाजी को दिखाने ले गया. हॉस्पीटल में डॉ. प्रभात बैठते थे. दादाजी के आंखो की रौशनी भी लगभग खत्म ही थी तो हाथ पकड़कर उन्हें डॉ प्रभात के पास ले गया. उन्हें जब आंखों की लाचारी के बारे में पता चला तो बिना किसी अनुरोध के जाते समय उन्होंने स्वयं कहा कि अगली बार नंबर लगाने और इंतजार करने की आपको जरुरत नहीं है. आप सीधा मेरे केबिन में आ जाया करें. ऐसे अनेकों उदाहरण बताते हैं कि बिहार ने ही नहीं बल्कि पूरे मानव जगत और चिकित्सा जगह में डॉ. प्रभात के निधन से एक शून्य बना है जिसे कभी भरा नहीं जा सकता. बिहार के मशहूर डॉ. प्रभात कुमार का कोरोना से निधन तथा Breaking News in Hindi से अपडेट के लिए बने रहें।
POSTED BY: Thakur Shaktilochan