बिहार में गर्मी की तपिश कम नहीं हो रही है. इसकी सबसे अधिक मार धान की खेती को झेलनी पड़ रही है. पूरे बिहार में लगभग 35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती का लक्ष्य निर्धारित है. अब तक 22.7 फीसदी खेतों में ही धान के बिचड़े डाले जा सके हैं. किसान बारिश का इंतजार कर रहे हैं. भीषण गर्मी के कारण खेतों में डाले गये धान के बीज भी पीले पड़ने लगे हैं. इससे धान के बिचड़े डालने वाले किसान भी परेशान हैं. किसानों का कहना है कि यही हाल रहा तो सुखाड़ जैसी नौबत पूरे प्रदेश में आ सकती है. किसान एक ओर जहां बारिश के लिए आसमान की ओर देख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राहत के लिए सरकार की तरफ उनकी निगाहें हैं.
पूरे राज्य में एक जून से 15 जून तक 83 फीसदी बारिश कम हुई है. ऐसे में बारिश के भरोसे खेती करने वाले किसान मायूस हैं. बीते पांच जून तक 12 एमएम बारिश की आवश्यकता थी. इस दौरान एक एमएम बारिश भी राज्य में नहीं हुई थी. तपिश के साथ गर्म हवाओं ने भी धान की खेती रोक दी है.
बिहार की मध्यम जमीन पर 10 से 25 जून तक बीज गिराने का आदर्श समय कृषि विभाग की ओर से निर्धारित है. इसमें अब तक सात दिन गुजर गये हैं. वहीं, ऊपरी जमीन में 25 जून से 10 जुलाई तथा निचली जमीन में 25 से 30 जून तक बिचड़े गिरने का आदर्श समय निर्धारित किया गया है. ऊपरी और निचली जमीन में धान के बिचड़े डालने का समय अभी है. मगर, इस तरह की गर्मी रही तो इस तरह की जमीन में भी बीज डालने के समय निकल जायेंगे. सिंचाई का निजी साधन रखने वाले किसान ही धान के बिचड़े डाल सकेंगे.
मध्यम जमीन में सीता, सहभागी प्रभेद के बीज डाले जाते हैं, जो 130 से 135 दिन में तैयार होते हैं. कनक, राजेंद्र श्वेता व संतोष में 135 से 140, आइआर-36 में 120 से 125 दिन का समय लगता है. ऊपरी जमीन पर डाले जाने वाले तुरंता प्रभेद के तैयार होने में 75 से 80, प्रभात में 90 से 95, साकेत-4, रिछारिया, सरोज तथा धन लक्ष्मी प्रभेद के तैयार में होने में 110 से 115 दिन का समय लगता है. जबकि निचली जमीन में डाले जाने वाले राजश्री, सत्यम, शकुंतला, प्रभेद के तैयार होने में 140 से 145 दिन का समय लगता है. देर से बिचड़े डालने पर तैयार होने की अवधि भी आगे खींच जायेगी. इससे फसल की गुणवत्ता प्रभावित होने की संभावना रहती है. उत्पादन और उत्पादकता पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा.
बिहार में समय से एक दिन पहले मानसून आया, लेकिन अभी तक दस मिलीमीटर भी बारिश नहीं हुई है. बिहार के लिए भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का पूर्वानुमान है कि जून महीने में सामान्य से कम ही बारिश होगी. हालांकि 20 से 25 जून के बीच बारिश होगी, लेकिन उस बारिश का वितरण समान नहीं रहा तो खेती के लिए दिक्कत खड़ी हो सकती है. मौसम विज्ञानियों का मत है कि अभी किसानों को घबराने की जरूरत नहीं है. निजी सिंचाई साधनों की मदद से जरूरत का बिचड़ा जरूर लगाएं. उनकी खेती का भविष्य जुलाई की बारिश पर निर्भर करेगा, अगर उस समय बारिश ठीक हो गयी तो खेती ठीक से ही जायेगी. पिछले पांच सालों के मानसून आने के पैटर्न पर नजर डालें तो वर्ष 2022,2021,2020 में मानसून 13 जून को आया था. इससे पहले के सालों मसलन वर्ष 2018 में 25 जून, 2019 में 21 और वर्ष 2017 में 22 जून को बिहार में मानसून आया था. इस लिहाज से मौसम विज्ञानी बारिश में अभी कोई विशेष विलंब नहीं मान रहे हैं. अगर पिछले साल 2022 जून की बारिश से तुलना करें तो निश्चित रूप से इस साल काफी कम बारिश हुई है. जून 2022 में बिहार में 170 मिलीमीटर बारिश हुई थी, जबकि इस साल अभी तक केवल 9.2 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो सामान्य से 83 फीसदी कम है, जबकि पिछली साल 2022 में जून माह में सामान्य से दो गुना से भी अधिक हुई थी.
आइएमडी पटना के वरिष्ठ मौसम विज्ञानी आशीष कुमार ने बताया कि बारिश अभी कम है. जून में अभी कुछ बारिश होने की संभावना है . मुख्य रूप से जुलाई की बारिश तय करेगी कि हमारी खेती प्रभावित भी होगी या नहीं . मानसून सत्र में बारिश सामान्य से कुछ ही कम होने का पूर्वानुमान है, अगर बारिश का वितरण प्रदेश में समान रूप से हुआ तो खेती अच्छी होगी. किसानों को जल प्रबंधन की तकनीक भी अपनानी चाहिए.
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राज्य के इंद्रपुरी जलाशय में कम पानी होने से राज्य के आठ जिलों में धान की रोपनी प्रभावित हो रही है. इममें इसमें रोहतास, कैमूर, औरंगाबाद, भोजपुर, अरवल, जहानाबाद, बक्सर और पटना जिले शामिल हैं. ये सभी जिले सोन कमांड एरिया के अंतर्गत आते हैं. दरअसल इंद्रपुरी जलाशय में यूपी के रिहंद और मध्य प्रदेश के वाणसागर जलाशय से कम पानी मिल रहा था. जल संसाधन विभाग की तरफ से यूपी के रिहंद से पांच हजार क्यूसेक प्रतिदिन पानी की मांग की गयी थी. फिलहाल यह पानी मिल रहा है. हालांकि इंद्रपुरी जलाशय में अब भी पानी अपेक्षाकृत कम है, लेकिन जितना पानी मिल रहा है उसे नहरों के माध्यम से सिंचाई के लिए दिया जा रहा है. बारिश कम होने और पानी कम मिलने से राज्य में धान की खेती के लिए मशहूर जिलों में धान रोपनी का संकट है. जल संसाधन विभाग में डेहरी के सिंचाई सृजन जोन के मुख्य अभियंता अश्विनी कुमार ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार से पांच हजार क्यूसेक पानी मांगा गया था, वह मिलने लगा है. इस पानी को संबंधित नहरों में भेजा जा रहा है. इससे पटवन की सुविधा मिल सकेगी. उन्होंने बताया कि इस साल बारिश कम होने की वजह से पिछले साल की तुलना में इंद्रपुरी जलाशय का जलस्तर कम है.
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35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती का लक्ष्य निर्धारित है पूरे बिहार में
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17 प्रतिशत धान के बिचड़े का ही वितरण हुआ
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83 फीसदी बारिश कम हुई है पूरे राज्य में 15 जून तक
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170 मिलीमीटर बारिश हुई थी जून 2022 में बिहार में
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9.2 मिलीमीटर ही बारिश हुई है जून में
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250 करोड़ रुपये किसानों को राहत के रूप में देने की विभाग की है तैयारी