बिहार सरकार ने शारदीय नवरात्रि 2023 के अवसर पर मूर्ति विसर्जन को लेकर एक नियमावली जारी की है. जिसमें स्थानीय प्रशासन और पूजा समितियों को उनके दायित्व से अवगत कराया गया है. बिहार सरकार ने मूर्ति विसर्जन को लेकर यह अधिसूचना जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 (1974 का 6) में प्रदत्त शक्तियों के तहत जारी की है. इसमें बिहार (पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन प्रक्रिया) नियमावली 2021 के तहत मूर्ति विसर्जन के लिए जारी निर्देशों का अनुपालन कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाया गया है.
पूजा समितियों का दायित्व
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प्रत्येक पूजा समिति सुनिश्चित करेगी कि पूजन सामग्री जैसे फूल और कागज और प्लास्टिक से बनी अन्य सजावटी सामग्री को मूर्त्तियों के विसर्जन से पहले हटा लिया गया है और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली, 2016 के अनुसार निपटान के लिए जैव-विघटनीय सामग्रियां अलग कर ली गई है.
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प्रत्येक पूजा समिति सुनिश्चित करेगी कि सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल मूर्ति विसर्जन की व्यवस्था की गई है.
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प्रत्येक पूजा समिति सुनिश्चित करेगी कि मूर्ति विसर्जन के संबंध में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली द्वारा मूर्त्ति निर्माण एवं इसके विसर्जन के लिए 12 मई, 2020 को जारी संशोधित मार्गदर्शिका का कड़ाई से पालन किया गया है.
स्थानीय निकाय और जिला प्रशासन का दायित्व
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मूर्ति विसर्जन कृत्रिम तालाबों में होंगे. किसी भी प्रवाह में मूर्ति विसर्जन पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा.
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मूर्तियों के विसर्जन के लिए कृत्रिम तालाबों को इतनी बड़ी संख्या में बनाना जो भीड़-भाड़ से बचने और प्रदूषण के भार को कम करने के लिए पर्याप्त हो.
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पूजा समिति के साथ कृत्रिम तालाबों/विसर्जन स्थल को टैग/चिह्नित करना.
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कृत्रिम तालाबों/विसर्जन स्थलों को अधिसूचित कर इसके बारे में सभी पूजा समितियों/जनता को सूचित करना.
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मूर्तियों का विसर्जन पुलिस प्राधिकार या जिला प्राधिकार द्वारा निर्धारित समय-सारणी के अनुसार किया जाएगा.
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विसर्जन स्थल पर जनित ठोस कचरा यथा-फूल, कपड़ा, सजावट सामग्री आदि के जलाने पर रोक लगाना.
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यह सुनिश्चित करना कि मूर्तियों के विसर्जन के 48 घंटे के भीतर मूर्तियों का अवशेष, संचित मलबा, पुआल या जूट की रस्सी आदि और मूर्तियों के विसर्जन से संबंधित अन्य सभी अपशिष्ट पदार्थों को हटा दिया जाएगा और ठोस कचरा संग्रह स्थल पर पहुंचाया जाएगा, यदि इसे मूर्ति निर्माताओं या अन्य लोगों द्वारा पुनः उपयोग के लिए एकत्र नहीं किया जाता है.
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यह सुनिश्चित करना कि विसर्जन से पहले जैव विघटनीय सामग्री को हटा लिया गया है और संबंधित स्थानीय निकाय इन सामग्रियों का उपयोग खाद और अन्य उपयोगी उद्देश्यों के लिए कर सके.
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पूजा समिति/संगठन द्वारा इन नियमों के किसी भी उल्लंघन का प्रतिवेदन बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद को देना.
मूर्ति विसर्जन हेतु
पूजा समितियों / स्थानीय निकाय/ जिला प्रशासन का दायित्व आवश्यक सूचना l@DEFCCOfficial #DEFCCOfficial pic.twitter.com/g6T18mgQtx— IPRD Bihar (@IPRD_Bihar) October 23, 2023
पटना में चार अस्थायी तालाब
पटना में इस वर्ष मूर्ति विसर्जन के लिए नगर निगम की तरफ से चार अस्थायी तालाब बनाये गए हैं. इनमें दो दीघा में पाटीपुल और मीनार घाट पर जबकि एक लॉ कॉलेज घाट पर और एक पटना सिटी में भद्रा घाट पर बन है.
इन तालाबों में होगा विसर्जन
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मीनार घाट : यहां गंगा के तट पर 70×50 मीटर का गड्ढा किया गया है, जो छह से आठ फुट गहरा है. शनिवार को सुबह से उसमें गंगाजल भरा जा रहा था. यहां काम कर रहे कर्मियों ने रात तक तालाब के पूरी तरह बनकर विसर्जन के लिए तैयार हो जाने की बात कही. एक साथ 40 प्रतिमाएं यहां विसर्जित की जा सकेंगी.
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पाटीपुल : यहां गंगा तट पर 40×20 मीटर का गड्ढा किया गया है, जो छह से आठ फुट गहरा है. रविवार सुबह से उसमें गंगाजल भरा जायेगा और रात तक अस्थायी तालाब बनकर पूरी तरह विसर्जन के लिए तैयार हो जायेगा. वहां एक साथ 20 प्रतिमाएं विसर्जित की जा सकेंगी.
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भद्रा घाट : पटना सिटी स्थित इस घाट पर गंगा तट की बजाय गंगा नदी के भीतर ही जल को तीन तरफ से घेरकर घाट बनाया जा रहा है. इसकी लंबाई घाट के किनारे किनारे 50 फुट और चौड़ाई घाट से नदी की ओर लगभग 20 फुट रहेगी. पहुंच पथ का निर्माण यहां किया जा रहा है, जो शनिवार को अंतिम चरण में था और निर्माण कार्य से जुड़े अधिकारी देर शाम तक उसके पूरा हो जाने की बात कह रहे थे. रविवार से बांस बल्ला लगाकर नदी की तीन तरफ से बैरिकेडिंग की जायेगी और बैरिकेडिंग पर प्लास्टिक शीट लगाकर उसे पूरी तरह पैक कर दिया जायेगा.
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लॉ कॉलेज घाट : यहां भी बांस बल्ला लगाकर नदी की तीन तरफ से बैरिकेडिंग की जायेगी और बैरिकेडिंग पर प्लास्टिक शीट लगाकर उसे पूरी तरह पैक कर दिया जायेगा. रविवार सुबह से यहां काम शुरू होगा और सोमवार तक विसर्जन तालाब बन कर तैयार हो जायेगा. यहां पानी की गहराई पांच से छह फुट तक रहेगी, जिसमें छोटी मूर्तियां तो डूब जायेंगी, पर बड़ी मूर्तियों का एक हिस्सा पानी से बाहर ही निकला रहेगा.