बिहार की शिक्षा ने पूरे भारत का स्वर्णिम इतिहास बनाने में योगदान दिया है. एक समय में बिहार की धरती पर नालंदा व विक्रमशीला जैसे शिक्षा के केंद्र पूरी दुनिया को ज्ञान दे रहे थे. इन प्राचीन विश्वविद्यालयों में दुनिया के कोने-कोने से विद्यार्थी पढ़ाई करने के लिए बिहार आते थे. शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. एक बार फिर से बिहार में इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी नालंदा विश्वविद्यालय खुल गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रयासों से इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई. इसके बाद केंद्र सरकार ने इसे अपने अधिन ले लिया. इस तरह बिहार में बदलाव की स्थिति शुरू से रही है.
1995-96 के दौरान बिहार में 60 हजार प्राइमरी व मीडिल स्कूल थे, लेकिन झारखंड के बंटने के बाद यह संख्या 47 हजार रह गयी. 13 हजार झारखंड को मिला. झारखंड बंटने के बाद शिक्षक व स्कूलों की भी कमी हुई. 60 हजार विद्यालय पर करीब 2.50 लाख टीचर हुआ करते थे. इससे पहले शिक्षकों की बहाली जिला स्तर पर होती थी, लेकिन 1990 में यह ट्रेंड बदला और बीपीएससी से बहाली शुरू हुई, जिसमें बिना ट्रेंड बालों को भी शिक्षकों बनने का मौका मिला.
इसके बाद शिक्षकों की कमी को पाटने के लिए शिक्षा मित्र को बहाल किया गया. शिक्षा मित्र को सर्व शिक्षा अभियान के तहत 1500 रुपये की राशि प्रत्येक माह दी गयी. करीब 85 हजार शिक्षा मित्र राज्य के स्कूलों में काम करना शुरू कर दिये. इसके बाद उस समय दलित बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की कई योजनाएं शुरू हुई. हर दिन स्कूल आने पर दलित बच्चों को एक रुपये दिये जाते थे, वहीं, उस दौरान चरवाहा विद्यालय भी खुला. विद्यालय में बच्चों के साथ-साथ उनके माताएं को भी विभिन्न योजना शुरू कर ट्रेनिंग देने का प्रावधान था. यह सभी योजना 2005 में समाप्त हो गयी.
नीतीश सरकार आने के बाद शिक्षा पर जोर दिया गया. अभी प्राइमरी व मीडिल स्कूल 72 हजार हैं. 72 हजार में 29 हजार एक से आठवीं के विद्यालय हैं. 43 हजार एक से पांच के विद्यालय हैं. 2005 में ही 85 हजार शिक्षा मित्रों को नियोजित शिक्षकों का दर्जा दिया गया. इसके बाद शिक्षकों की नियुक्ति का अधिकारी त्रिस्तरीय पंचायत समितियों को दे दिया गया. शिक्षकों की बहाली की नयी परंपरा शुरू हुई. 2015 में इन्हें स्केल दिया गया. अभी प्राइमरी और मीडिल में करीब 3.25 लाख शिक्षक हैं.
झारखंड बंटने के पहले चार हजार माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय थे. झारखंड बटने के बाद 1500 स्कूल झारखंड चले गये. बिहार में 2500 स्कूल बचे. वर्तमान समय में 2500 स्कूलों से बढ़ कर इसकी संख्या आठ हजार हो गयी है. अब प्लस टू स्कूलों की संख्या आठ हजार है. पहले सातवीं कक्षा तक प्राथमिक विद्यालय थे, जिसे 2005 में आठवीं तक कर दिया गया. हाइ स्कूल को आठवीं से निकाल दिया गया. हाइ स्कूल नौवीं से प्लस टू हो गये. 2005 में ही योजना बनी थी कि यूनिवर्सिटी से प्लस टू की पढ़ाई बंद कर दी जायेगी. इसी चरण में पटना यूनिवर्सिटी से इंटर की पढ़ाई बंद हुई. लेकिन अन्य जगहों से अब तक इंटर की पढ़ाई बंद नहीं हो पायी.
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पहले 10 पारंपरिक यूनिवर्सिटी थी. 2005 के बाद से ही बिहार में प्राइवेट यूनिवर्सिटी का आने का रास्ता साफ हो गया. बिहार में पहली बार 2006 में नेशनल यूनिवर्सिटी चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई. धीरे-धीरे यूनिवर्सिटी की जरूरत महसूस होने लगी और तय किया गया कि प्रमंडल स्तर पर यूनिवर्सिटी बनायी जायेगी. इस कारण हाल में ही बिहार में पाटलिपुत्र, मुंगेर व पूर्णिया यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई. इससे पहले भी बिहार में आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई. नीतीश सरकार में ही बोधगया में आइआइएम खुला, दो सेंट्रल यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई. आइआइटी, निफ्ट, सीआइएमपी जैसे शिक्षण संस्थान खुले. इससे पहले बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज 2004 में ही एनआइटी बन गया था.
सरकार हर जिले में एक इंजीनियरिंग कॉलेज खोल चुकी है. हर जिले में मेडिकल कॉलेज खुलने की बात भी हो रही है. पॉलिटेक्निक और आइटीआइ भी खोले गये.