पटना हाइकोर्ट ने राज्य की निगरानी ब्यूरो को तीन माह का और समय देते हुए कहा कि वह इस बीच फर्जी डिग्रियों के आधार पर राज्य में बड़ी संख्या में शिक्षकों की हुई बहाली के मामले की जांच पूरी कर लें. मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायाधीश मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने रंजीत पंडित द्वारा दायर लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया .
इसके पहले हाइकोर्ट ने राज्य सरकार को एक सप्ताह का समय देते हुए यह निर्देश दिया था कि वह एक समय- सीमा निर्धारित करे, जिसके तहत सभी संबंधित शिक्षक अपनी डिग्री व अन्य कागजात संबंधित पदाधिकारी या कार्यालय में प्रस्तुत कर सकें . कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि जो भी शिक्षक सरकार द्वारा निर्धारित की गयी तिथि पर अपने कागजात व अन्य प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं करेंगे, उनके विरुद्ध सरकार द्वारा कार्रवाई की जायेगी.
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि बड़ी संख्या में जाली डिग्रियों के आधार पर शिक्षक राज्य में काम कर रहे हैं. वे वेतन भी उठा रहे हैं. उन्होंने कोर्ट को बताया कि इससे पूर्व कोर्ट ने 2014 के एक आदेश में कहा था कि जो इस तरह की जाली डिग्री के आधार पर राज्य सरकार के तहत शिक्षक हैं, उन्हें एक अवसर दिया जाता है कि वे खुद शिक्षक के पद से इस्तीफा दे दें. कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि अगर ऐसे शिक्षक अपना पद स्वयं छोड़ देते हैं, तो उनके विरुद्ध किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जायेगी.
मामले की सुनवाई के दौरान 26 अगस्त, 2019 को याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि इस आदेश के बाद भी बड़ी संख्या में जाली सर्टिफिकेट के आधार पर कई शिक्षक कार्यरत हैं और वेतन भी ले रहे हैं. कोर्ट ने इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए इस पूरे मामले को निगरानी विभाग को जांच कर कानूनी कार्रवाई करने के लिए दे दिया था.
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31 जनवरी, 2020 को सुनवाई के दौरान निगरानी विभाग ने कोर्ट को जानकारी दी थी कि राज्य सरकार द्वारा इनके संबंधित रिकॉर्ड की जांच की जा रही है. अब भी एक लाख दस हजार से अधिक शिक्षकों के रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं. 75 हजार ऐसे शिक्षक हैं, जिनका फोल्डर नहीं मिल रहा है. जांच में यह भी पाया गया है कि 1316 शिक्षक बिना वैध डिग्री के नियुक्त किये गये. कोर्ट ने इस मामले को काफी गंभीरता से लेते हुए संबंधित विभागीय सचिव से हलफनामा दायर कर स्थिति स्पष्ट करने को कहा था .