राजदेव पांडेय, पटना: बिहार के गंगा के मैदानी इलाके में जलवायुविक और मौसमी दशाओं में अलार्मिंग बदलाव देखे जा रहे हैं. ये बदलाव जान-माल के लिए संकट बढ़ा रहे हैं. ये बदलाव बिहार के उस इलाके में ज्यादातर केंद्रित हैं, जहां राज्य की 60 फीसदी से अधिक आबादी रहती है. पिछले 100 सालों से मौसम का पूर्वानुमान जारी कर रहा आइएमडी पटना के आंकड़े बताते हैं कि कभी बिहार के दक्षिणी और उत्तरी बिहार की जलवायुविक विशेषकर मौसमी दशाएं करीब-करीब एक जैसी थीं. अब दोनों की मौसमी दशा में जमीन आसमान का अंतर दिख रहा है.
दरअसल बिहार की प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ से भी ज्यादा भयावह आपदा ठनका और लू साबित हुए हैं. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि लू जहां दक्षिणी बिहार के लिए घातक साबित हो रही है, वहीं उत्तरी बिहार के लिए जीवन के सामने संकट खड़ा किया है. बिहार में हो रहे इस बदलाव को ‘हाइ इंपैक्ट वेदर’ का नाम दिया गया है. इसके अलावा कोल्ड वेव और कोल्ड डे, दोनों की प्रभावशीलता की समयावधि में तेजी से उतार-चढ़ाव देखे जा रहे हैं. जाहिर है कि जलवायुविक बदलाव में बिहार की जलवायुविक दशाओं में असंतुलन बढ़ता जा रहा है.
ठनका (लाइटनिंग) : पिछले दो दशकों में बिहार की आपदाओं में से ठनका से सर्वाधिक मौत हुई हैं. इसमें बढ़ोतरी जारी है. उदाहरण के लिए इसी साल 2020 में 25 फरवरी और 25 जून को दो दिनों में ठनके से 107 मौत हुई . केवल दो दिन में यह अब तक का सबसे अधिक और भयावह आंकड़ा है. 25 फरवरी 2020 को 24 घंटे में बिजली चमकने की आवृत्ति 35 हजार बार हुई. वहीं 25 जून को 24 घंटे में 56 हजार बार बिजली चमकी.
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ठनके की तरह थंडर स्टॉर्म की संख्या में अप्रत्याशित इजाफा हुआ है. इमसें 30 फीसदी इजाफा हुआ है. ओला वृष्टि ने बिहार की जान-माल को बुरी तरह प्रभावित किया है. धरातल के दो किलोमीटर ऊपर से 17 किलोमीटर तक थंडर स्टॉर्म की रेंज ऊंचाई देखी जा रही है. जबकि इससे पहले यह ऊंचाई 8-10 किलोमीटर तक ही देखी जाती थी. इस जोन की ऊंचाई बढ़ने से इसकी घातक क्षमता बढ़ जाती है.
बिहार में शीतलहर की समयावधि बढ़ रही है. समयावधि बढ़ जाने से दिन और रात के तापमान में अंतर 10 डिग्री या इससे नीचे आ रहा है. हालिया सालों में यह अंतर पांच से सात डिग्री से भी कम सिमट गया था. इस तरह यह बदलाव विशेषकर मानव और पशुओं के लिए घातक साबित हो जा रहा है. यह बदलाव सीधे इनके इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता है.
बिहार के दक्षिणी हिस्से में लू भयावह प्राकृतिक आपदा में तब्दील हो चुकी है. हवा की नमी नहीं के बराबर हो जाने से यहां लू की तीव्रता और असर खतरनाक ढंग से सामने आ रहे हैं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2019 में बिहार में लू से 121 लोग मरे थे. यह अपने आप में रिकाॅर्ड है.
चक्रवातों के साइड इफेक्ट बढ़े हैं. पिछले एक दशक में इनकी संख्या लगातार बढ़ी है. इस साल बिहार के मौसम को छह से अधिक समु्द्री तूफानों ने बिहार को प्रभावित किया. यह अभी तक का रिकाॅर्ड है. इसी के चलते न केवल माॅनसून का सीजन आगे शिफ्ट हो गया है, बल्कि कम समय में अधिक बरसात हो रही है.
बिहार में फॉग पिछले चार से स्मॉग में तब्दील हो गया है. प्रदेश की वायु में धूल के कणों की मात्रा लगातार बढ़ रही है. राडार पर इसकी धुंध बढ़ती जा रही है.
बिहार में कुछ अहम मौसमी बदलाव पहचाने गये हैं. शीतलहर में दिन और रात के तापमान में अंतर सामान्य से कम होने लगा है. लू और ठनका दोनों के असर अप्रत्याशित तौर पर बढ़े हैं. दक्षिण और उत्तरी बिहार की प्राकृतिक आपदाएं अलग-अलग हो गयी हैं. ये आपदाएं विशेष रूप से गंगा के मैदानी इलाके में ज्यादा केंद्रित हैं. हालांकि घबराने की जरूरत नहीं है. लोगों को चाहिए कि आइएमडी पटना और राज्य सरकार की मौसमी सूचनाओं की उपेक्षा न करें.
विवेक सिन्हा, निदेशक आइएमडी, पटना
Posted By: Thakur Shaktilochan