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Bihar politics: मोहन भागवत के बयान से बिहार में सियासत तेज, क्या 2024 का चुनाव मंडल v/s कमंडल पर होगा?

Bihar politics मंडल पॉलिटिक्स के बिहार में हीरो रहे लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों ही महागठबंधन के अहम हिस्सा हो गए हैं. पिछड़ी आबादी 50 से 52 फीसद के बीच है.अगर जाति जनगणना में ओबीसी की आबादी 40, 45 या 50 फीसद हुई तो बिहार में पिछड़ा आरक्षण 27 फीसद से बढ़ाने को लेकर एक नई राजनीति शुरू होगी.

राजेश कुमार ओझा

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में वर्ष 1990 चर्चा चल रही है. यह चर्चा मंडल v/s कमंडल को लेकर चल रही है. राजनीतिक पंडित से लेकर आम जनता तक इस चर्चा में शामिल हैं. इधर, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान के बाद इस चर्चा को बल मिला है और बिहार में इसको लेकर सियासत तेज हो गई है. वैसे इसकी चर्चा तो नीतीश कुमार के बीजेपी के छोड़ने के बाद से ही शुरु हो गई थी. इसके बाद तमाम राजनीतिक खींचतान के बाद बिहार में शुरु हुई जाति जनगणना और नीतीश सरकार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के रामचरितमानस पर दिए गए विवादस्पद बयान के बाद यह कयास लगाना शुरु कर दिया था कि इसपर राजनीतिक गोलबंदी शुरू हो गई है.

मोहन भागवत के बयान से मिला बल

रविवार को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने संत रविदास की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि समाज में बंटवारे का फायदा दूसरों ने उठाया है.समाज अगर संगठित होता तो हमपर कोई आंख नहीं उठा पाता.लेकिन, हमारी टूट के कारण ही बाहरी देशों से आए लोगों ने हम पर राज किया है. मोहन भागवत के इस बयान के बाद इसकी संभावना बढ़ गई है कि बिहार में लोक सभा चुनाव मंडल v/s कमंडल पर होगा. इसकी तैयारी दोनों ओर से चल रही है.

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रामचरितमानस पर विवाद

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने रामचरितमानस पर जो कुछ कहा है वह गलती से या फिर अचानक नहीं बोले हैं. इसकी पहले से स्क्रिप्ट तैयार कर ली गई थी. लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर विपक्षी दलों द्वारा तैयार की गई स्क्रिप्ट का एक पार्ट है. चुनाव के करीब आने पर विपक्ष की ओर से तैयार ऐसे कई और स्क्रिप्ट सामने आयेंगे. पत्रकार लव कुमार मिश्रा ने कहा कि बिहार में पहले जाति जनगणना फिर रामचरितमानस पर विवाद एक नया संकेत दे रहा है. अभी तक के घटाक्रम को आप अगर क्रमवार देखेंगे तो आपको वर्ष 1990 का लोकसभा का परिदृश्य आपके सामने होगा.

हिन्दूओं को गोलबंद करने की कवायद

वे आगे कहते हैं कि यह सब एकजुट हो रहे हिंदुओं को तोड़ने की कोशिश भी हो सकती है. इधर, बिहार में बीजेपी वर्ष 1990 से सबक लेते हुए हर हाल में अपने वोट बैंक को टूटने नहीं देना चाह रही है. यही कारण है कि वो रामचरितमानस मुद्दे पर बिहार में अपनी सियासी जमीन को और मजबूत करना चाहती है. रविवार को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने तो बिहार में महागठबंधन की तैयारी पर अपना बड़ा दांव खेलते हुए कहा कि हम टूटेंगे तो एक बार फिर बाहरी हम पर राज करेंगे. हिन्दूओं को गोलबंद करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू समाज के नष्ट होने का भय है. इस सवाल का जवाब कोई पंडित या ब्राह्मण नहीं दे सकता है. इसे आपको खुद महसूस करना होगा. जब हर काम समाज के लिए है तो फिर ऊंच-नीच की बात कैसे हो सकती है. भगवान की नजर में सब बराबर है. कोई जाति-वर्ण में नहीं बंटा है.

चुनाव मंडल v/s कमंडल

सियासी पंडितों का कहना है कि बीजेपी के पास अब कमंडल पॉलिटिक्स के नाम पर भव्य मंदिर निर्माण का मुद्दा है,जिसके उद्घाटन की तारीख बताकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘कमंडल’ पॉलिटिक्स को काफी सलीके से हवा दिया है. 2024 के अप्रैल-मई माह में लोकसभा चुनाव होना है और एक जनवरी को राम मंदिर के उद्घाटन की तारीख रखी गयी है. सियासी पंडितों की मानें तो इससे आसानी से समझा जा सकता है कि चुनाव और मंदिर का कैसा संबंध होगा और लोग मंदिर निर्माण को लेकर कितने उत्साहित होंगे.विपक्ष की ओर से कमंडल के प्रभाव को कम करने के लिए ही बड़े तरीके से मंडल को आगे करने में लगे हैं.

मंडल पॉलिटिक्स के हीरो रहे हैं लालू और नीतीश

मंडल पॉलिटिक्स के बिहार में हीरो रहे लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों ही महागठबंधन के अहम हिस्सा हो गए हैं. जेडीयू ही नहीं, आरजेडी ने भी मान लिया है कि नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का चेहरा होना चाहिए. ऐसे में सियासी पंडितों की मानें तो 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस राज्य में ‘मंडल बनाम कमंडल’ की पॉलिटिक्स तेज होगी और इसका असर दिखने भी लगा है. जातीय जनगणना में अगुआ बने बिहार को इसी के एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है. सात जनवरी से बिहार में जातीय जनगणना शुरू भी हो गयी है. इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने स्वागत करते हुए अच्छा कदम बताया है.

जाति जनगणना पर टिकी है नजर

दोनों को उम्मीद है कि बिहार में पिछड़ी आबादी 50 से 52 फीसद के बीच है.अगर जाति जनगणना में ओबीसी की आबादी 40, 45 या 50 फीसद हुई तो बिहार में पिछड़ा आरक्षण 27 फीसद से बढ़ाने को लेकर एक नई राजनीति शुरू होगी. यह बीजेपी के लिए मुसीबत होगी. महागठबंधन इसका पूरा फायदा उठाने की जुगाड़ में लगा है. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि बिहार में जातीय जनगणना 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी को देखते हुए सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है.

जितनी हिस्सेदारी, उतनी भागीदारी बनेगा मुद्दा

बहरहाल, बिहार में आने वाले समय में ‘मंडल बनाम कमंडल’ की पॉलिटिक्स और अधिक तेज होगी और लड़ाई 2024 के आते-आते पूरे चरम पर होगी. यह लड़ाई ‘मंडल 1.0’ से बिलकुल अलग होगा यानी ‘मंडल 2.0’ की लड़ाई फुल आरक्षण को लेकर होगा. कहा जा रहा है कि बिहार में जातीय जनगणना के बाद जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी का मुद्दा उठेगा. मतलब साफ है कि जातीय जनगणना पर ‘मंडल पॉलिटिक्स’ तो उधर बीजेपी की ओर से मंदिर उदघाटन के नाम पर ‘कमंडल पॉलिटिक्स’चरम पर होगी. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि मंडल बनाम कमंडल की पॉलिटिक्स अब क्या खेला करती है ?

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