Mediversal Hospital के डॉक्टरों की सुझ- बुझ के कारण ही एक बार फिर यह साबित हो गया कि डॉक्टर ही धरती के भगवान हैं. मधुबनी में सड़क हदसे का शिकार एक युवक सोमवार को मेडिवर्सल मल्टीसुपर स्पेशयलिटी अस्पताल इलाज के लिए लाया गया. मधुबनी में 24 मार्च को एक सड़क हादसे में उसका घुटने का फ्रैक्चर हो गया. घुटने के ठीक पीछे पोपलीटल धमनी थ्रॉम्बोस हो गई और पैर में कोई डिस्टल स्पंदन नहीं था. मरीज की स्थिति देखने के बाद मधुबनी के डॉक्टरों ने पहले तो इलाज से इंकार कर दिया फिर पैर काटने की बात कही. डॉक्टरों की बात सुनने के बाद जख्मी के परिजन उसे लेकर पटना चले आए. यहां पर उन्होंने Mediversal Hospital भर्ती कराया.
दरअसल, हदसे के कारण युवक के शरीर में कम्पार्टमेंट सिंड्रोम विकसित कर गया था. (ऐसी स्थिति जहां इस्किमिया वैस्कुलर चोट के कारण इंट्रा-कम्पार्टमेंट दबाव में वृद्धि होती है). अंग ठंडा था, चिपचिपा था, कोई डिस्टल स्पंदन नहीं था और पैर की उंगलियों में कोई गति नहीं थी. पटना में मेडिवर्सल अस्पताल के डॉ. निशिकांत, डॉ. गुरुदेव और डॉ. करुणेश ने मरीज की टीम ने जांच के बाद पाया कि उनके पास मात्र आठ घंटे बचे हैं. यह समय अगर गुजर गए तो स्थिति काफी गंभीर हो सकते हैं. जख्मी के डैमेज अंग को बचाना मुश्किल हो जायेगा.
डॉक्टरों ने परिजनों से बात करने के बाद फैसीओटॉमी और एपिमायोसियोटमी किया. लेकिन, अगले दिन सुबह तक मरीज के शरीर में कोई धड़कन नहीं थी, कोई हलचल नहीं थी और सैचुरेशन भी रिकॉर्ड नहीं की जा सकती थी. डॉक्टर इसको लेकर चिंतित थे, लेकिन उन्हें अपने काम पर भरोसा था. यही कारण है कि अगले दिन करीब 24 घंटे बाद रोगी को पैर की उंगलियों की गति और सैचुरेशन की वापसी हो गई. इसके बाद डिस्टल पल्सेशन भी वापस आ गया. डॉ. गुरुदेव ने बताया कि यह हमारे लिए भी एक चमत्कार से कम नहीं है, क्योंकि सुनहरा समय बीतने के बाद भी (चोट के बाद 4 घंटे की अवधि) हम अंग को बचाते हैं. आम तौर पर ऐसे मरीजों में पैर काटने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता. डॉ. निशिकांत ने जोर देकर कहा कि समय रहते इलाज के कारण ही असंभव को संभव बनाया गया. विवेकपूर्ण निर्णय ने लगभग असंभव चमत्कार कर दिया.