पटना. दुनिया भर के लोग मदर टेरेसा को मानवता की प्रतिमूर्ति के रूप में जानते हैं. वे वास्तव में करुणा व सेवा की देवी थीं. असीमित प्यार और चेहरे पर एक खास आभा वाली ये मशहूर शख्सियत जीवनभर गरीबों, बीमार और असहाय लोगों की मदद करती रहीं. छोटी सी उम्र से ही मदर टेरेसा ने लोगों की सेवा करने का जिम्मा उठा लिया था. पीड़ित मानवता की सेवा और त्याग का उनका सफर बिहार की राजधानी पटना से ही शुरू हुआ था. पटना सिटी की 245 साल पुरानी ‘पादरी की हवेली’ में उनकी स्मृतियां आज भी जिंदा हैं. आज उनकी जयंती पर हम शहर के ऐसे लोगों से आपको रूबरू करा रहे हैं, जो मदर टेरेसा से प्रेरित होकर गरीबों व असहायों की सेवा करना अपना शौक बना लिया है.
मदर टेरेसा कैथोलिक नन थीं, जो गरीबों और बीमारी से पीड़ित रोगियों की सेवा करने के लिए कभी भी पीछे नहीं हटीं. दुनिया में शांति दूत की तरह काम करने वाली मदर टेरेसा को शायद ही ऐसा कोई अवार्ड हो, जो उन्हें न मिला हो. भारत सरकार भी इस महान शख्सियत को भारत रत्न से सम्मानित कर चुकी है. उन्होंने सभी को एकजुट होकर दया भाव से काम करने के लिए प्रेरित किया. उनके विचार आज भी जीवित है, जो किसी को भी जीवन को नये तरह से जीने की प्रेरणा दे सकते हैं. पटना सिटी स्थित चर्च के पल्ली पुरोहित फादर ललित बाड़ा, अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष एम्ब्रोस पैट्रिक व अभिषेक पैट्रिक बताते है कि देश की आजादी के एक वर्ष बाद ही वर्ष 1948 में वो यहां सेवा देने आयी थीं.
चर्च के लोगों ने बताया कि वर्ष पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिली मदर पदवी के लिए जानी जाने वाली मदर टेरेसा ने 1963 में चर्च के समीप ही मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की रूपरेखा पादरी की हवेली में तय की थी. यहीं से वह अनाथों की मां बन गयीं. इसी चैरिटी के अंदर एक कमरे में आज भी संत मदर टेरेसा से जुड़ी स्मृति को संरक्षित किया गया है. इसी कमरा में मदर टेरेसा रहती थीं. चर्च की सिस्टर इंचार्ज ने बताया कि ममतामयी मदर टेरेसा की ओर से मदर के समय से शुरू हुई अनाथों की सेवा मिशनरीज ऑफ चैरिटी में की जाती है. इसमें शरीर से अशक्त बच्चों और मानसिक तौर पर बीमार महिलाओं की सेवा की जाती है. एक सौ से अधिक मरीज अभी भी यहां सेवा का लाभ उठा रहे हैं.
ललित बाड़ा व अभिषेक पैट्रिक कहते हैं, मदर टेरेसा को पटना से खास लगाव था. प्राचीन पादरी की हवेली चर्च में मटर टेरेसा की स्मृतियां आज भी एक कमरे में सुरक्षित है. चर्च के लोगों ने बताया कि 17 अगस्त,1948 को यहां आने के बाद वे तीन माह तक रहीं और जरूरतमंदों की मदद करते हुए पटना के होली फैमिली अस्पताल में नर्सिंग का प्रशिक्षण लिया था. तब यह अस्पताल पादरी की हवेली में स्थित था. पादरी की हवेली में संचालित अस्पताल को बाद में कुर्जी में स्थानांतरित कर उसे आधुनिक बनाया गया