आनंद तिवारी, पटना. कोरोना के अलग-अलग टीकाें कोविशील्ड व कोवैक्सीन के मिश्रित डोज लेना ज्यादा असरदार साबित हुआ है. पटना जिले के पुनपुन व शहर के श्रीकृष्ण मेमोरियल हाल में जिन दो लोगों को गलती से टीकों के कॉकटेल डोज लगे, वे कोरोना वायरस के खिलाफ महाबली बने गये हैं. हालांकि, एक साथ दोनों टीकों के डोज लेने के बाद उनके परिजन काफी चिंतित थे और डर के साये में कुछ दिन तक जी रहे थे. लेकिन, जब उनकी जांच करायी गयी तो उनके शरीर में एंटीबॉडी दोगुनी मिली.
पटना जिले के पुनपुन की लखना पूर्व पंचायत की निवासी 67 वर्षीय सुनीला देवी ने पुनपुन स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व शहर के जिला अधिकारी कार्यालय में कार्यरत विवेक कुमार ने श्रीकृष्ण मेमोरियल हाल में वैक्सीन ली थी. लेकिन गलती से दोनों को कोविडशील्ड व कोवैक्सीन दोनों टीकों के डोज लग गये थे. इसकी जानकारी मिलते ही पिछले तीन और पांच जुलाई को सुनीला देवी की एक निजी लैब में एंटीबॉडी जांच करायी गयी.
इनकी एंटीबॉडी आइजीआइआइजीएम 400 दर्ज किया गया. इस स्तर की एंटीबॉडी विवेक में भी देखने को मिली, जबकि एक तरह के टीके के दोनों डोज लेने वाले लोगों में 50 से अधिकतम 225 तक एंटीबॉडी दर्ज की गयी है. पटना सहित पूरे बिहार अलग-अलग जिलों में अब तक 14 लोगों को मिश्रित डोज लग चुके हैं.
पटना की सिविल सर्जन डॉ विभा कुमारी ने कहा कि डॉक्टर इन दोनों लोगों पर नजर रख रहे थे. उनके स्वास्थ्य से लेकर खान-पान आदि सभी चीजों की बारी-बारी से जांच की जा रही थी. पता किया गया कि वैक्सीन लगवाने से पहले दोनों लोगों को कोई बीमारी तो नहीं थी. अच्छी बात तो यह है कि अलग-अलग वैक्सीन लगने के बाद भी एंटीबॉडी अच्छी बनी हुई. जांच में पता चला कि कोई साइड इफेक्ट नहीं हुआ.
पटना जिले में कोरोना वैक्सीनेशन की बेहतर रफ्तार के कारण बड़ी आबादी अब सेफ जोन में है. वैक्सीन लेने वाले जिले के पांच हजार से अधिक लोगों की आइजीआइएमएस, पीएमसीएच, एम्स, एनएमसीएच के अलावा अलग-अलग लैब में जांच करायी गयी तो पता चला कि इनमें 70% लोगों में एंटीबॉडी बन गयी है. सर्वे के लिए 18 से 44 वर्ष, 45 से 60 वर्ष और 60 से अधिक उम्र वर्ग के पुरुष और महिलाओं को शामिल किया गया. इसे देखते हुए अब स्वास्थ्य विभाग ने राज्य के अन्य जिलों में भी सीरो सर्वे कराने का निर्णय लिया गया है.
गार्डिनर रोड अस्पताल के निदेशक डॉ मनोज कुमार सिन्हा का कहना है कि वैक्सीनेशन की रफ्तार की वजह से पटना जिला अब सेफ जोन में आ गया है. हालांकि, अभी अलर्ट रहने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों में कम-से-कम छह महीने तक सुरक्षा मिलती है. हालांकि, अब तक इस पर लिखित में कोई ठोस नतीजे नहीं निकले हैं, क्योंकि कई लोग कुछ ही महीनों में दोबारा संक्रमित भी हुए हैं.
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर), रिजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे के विशेषज्ञों का भी मानना है कि जो मरीज कोरोना से ठीक हो चुके हैं, दोबारा संक्रमित होने पर वायरस से लड़ने की क्षमता तेज और प्रभावी होती है. शरीर में एंटीबॉडी बनने में एक से तीन सप्ताह का समय लगता है.
पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के पूर्व वायरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद कुमार ने बताया कि अक्सर कई लोग वायरस की चपेट में आ जाते हैं. लेकिन, लक्षण सामने नहीं आते हैं. कुछ यह सोच कर टेस्टिंग नहीं कराते कि सीजनल बुखार-जुकाम है. ऐसे में सर्वे में पता चल जाता है कि संबंधित क्षेत्र में कितने फीसदी वायरस की चपेट में आये. यह भी पता चल जाता है कि यदि दूसरी लहर आती है तो उसका कितना असर पड़ेगा. एंटीबॉडी ज्यादा मिलना राहत की बात है.
पटना की सिविल सर्जन डॉ विभा कुमारी ने बताया कि पटना जिले में वैक्सीनेशन लगातार रिकॉर्ड कायम कर रहा है. यही वजह है कि पटना जिले में अब तक 31.81 लाख से अधिक लोगों को कोरोना का टीका लगा दिया गया है. यही वजह है कि वैक्सीन लेने वाले लोगों में अच्छी-खासी एंटीबॉडी बनी है. लोगों से अपील की जा रही है कि वे वैक्सीनेशन कैंप में जाकर टीके के दोनों डोज लें और अपना एंटीबॉडी बढ़ाएं.
Posted by Ashish Jha