बिहार के पूर्व मंत्री स्व. नरेंद्र सिंह सिर्फ जमुई ही नहीं बिहार की राजनीति के मजबूत स्तंभ माने जाते थे. इस बात को उन्होंने 2005 में लोजपा से बगावत कर नीतीश कुमार की सरकार गठन में अहम भूमिका निभाकर साबित कर दिया था. बगावती तेवर और जनहित के सवालों पर अधिकारियों के साथ कड़क अंदाज में पेश आना उनकी पहचान थी.
तीन दशक तक जमुई की राजनीति की एक धूरी बने रहे नरेंद्र सिंह ने 21 फरवरी 1991 में जमुई को जिला का दर्जा दिला कर जमुई के विकास का जो सिलसिला शुरू किया, उसको लेकर आखिरी सांस तक चिंतित रहे. हाल के दिनों किसानों एवं मजदूरों के सवाल पर वे बिहार और दिल्ली की वर्तमान सरकार से खफा चल रहे थे.
मंत्री व स्वतंत्रता सेनानी समाजवादी नेता स्व. श्रीकृष्ण सिंह के पुत्र नरेंद्र सिंह पहली बार 1985 में कांग्रेस की टिकट पर चकाई विधानसभा क्षेत्र विधायक चुने गए थे. 1990 में दूसरी बार निर्वाचित होकर लालू प्रसाद की सरकार में पहली बार कैबिनेट मंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ. हालांकि बगावती तेवर के कारण वे बहुत ज्यादा दिनों तक मंत्रिमंडल में नहीं टिक सके और त्यागपत्र देकर लालू सरकार के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था.
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2000 के चुनाव में दो जमुई और चकाई से विधायक चुने गए. 2005 और 2010 में नीतीश सरकार में मंत्री बने. 2014 में जीतन राम मांझी की सरकार में मंत्री बने. 2015 में नीतीश कुमार से विरोध के बाद मंत्रीमंडल से बाहर कर दिये गये.
नरेंद्र सिंह 1974 आंदोलन के अग्रणी नेताओं में शुमार रहे. वे 1973 में पहली बार पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव चुने गए थे. तब रामजतन शर्मा अध्यक्ष थे. दूसरी बार 1974 में लालू प्रसाद अध्यक्ष और नरेंद्र सिंह महासचिव निर्वाचित हुए. 74 आंदोलन के क्रांतिकारी नेता नरेंद्र सिंह के खून में ही क्रांति और समाजवाद समाहित था.
यहां यह बताना लाजिमी है कि उनके पिता श्रीकृष्ण सिंह भी अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन के अगुआ रहे थे. आजादी के बाद उन्होंने समाजवाद को अपनाया और आखिरी क्षण तक समाजवादी विचारों को स्थापित करने को लेकर लड़ते रहे.
Published By: Thakur Shaktilochan