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उत्तर बिहार में फैल रहा साइबर अपराधियों का नेटवर्क, संगठित रूप से युवाओं की हो रही भर्ती

बिहार पुलिस का मानना है कि साइबर अपराधी संगठित होकर घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं और टेक्निकल एक्सपर्ट युवाओं को अपने गैंग में बहाल करने में लगे हैं. कम समय में अधिक पैसे कमाने का लालच रखने वाले युवा इनके चुंगल में फंस रहे हैं. ज्यादातर अपराधी 20-30 आयु वर्ग के कॉलेज छोड़ने वाले छात्र होते हैं.

सुमित कुमार, पटना. बिहार में साइबर अपराधियों का नेटवर्क लगातार बढ़ रहा है. एक-डेढ़ वर्ष पहले तक दक्षिण बिहार के पांच जिलों नालंदा, नवादा, शेखपुरा, जमुई और गया को ही हॉट स्पॉट माना जाता था. मगर अब उत्तर बिहार के जिलों मुजफ्फरपुर, मधुबनी, मोतिहारी और बेतिया से भी बड़ी संख्या में साइबर केस मिलने लगे हैं. आर्थिक अपराध इकाई (इओयू) अब इन चारों जिलों में सक्रिय गैंग की पहचान करने में जुटी है. बिहार पुलिस का मानना है कि साइबर अपराधी संगठित होकर घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं और टेक्निकल एक्सपर्ट युवाओं को अपने गैंग में बहाल करने में लगे हैं. कम समय में अधिक पैसे कमाने का लालच रखने वाले युवा इनके चुंगल में फंस रहे हैं. ज्यादातर मामलों में अपराधी 20-30 आयु वर्ग के कॉलेज छोड़ने वाले छात्र होते हैं.

15 करोड़ रुपये कराये होल्ड, राशि लौटाने में दिक्कत

इओयू के आंकड़ों के मुताबिक फरवरी 2023 से लेकर अब तक साइबर क्राइम के मामलों में एक हजार से अधिक कांड दर्ज हुए हैं. इनमें 46 आरोपियों को गिरफ्तार भी किया गया. दर्ज कांडों में से वित्तीय फ्रॉड के मामलों में शिकायतकर्ताओं की करीब 15 करोड़ रुपये की राशि अपराधियों द्वारा ट्रांसफर किये गये खाते में होल्ड करा ली गयी है. लेकिन, होल्ड राशि में से करीब एक करोड़ रुपये ही पीड़ित को वापस लौट सके हैं. अन्य मामलों में केस के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा न्यायालय से अनुमति लिये जाने के बाद ही होल्ड राशि पीड़ित के खाते में लौटायी जा सकती है. इससे पहले बिहार में 2021 में 1560 जबकि 2022 में कुल 2400 साइबर अपराध के कांड दर्ज किये थे. बिहार के साइबर अपराधी अब न केवल अपने राज्य बल्कि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों के लोगों को भी निशाना बना रहे हैं.

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जामताड़ा मॉड्यूल से प्रभावित बिहार के साइबर अपराधी

इओयू अधिकारियों का कहना है कि बिहार के साइबर अपराधी जामताड़ा मॉड्यूल से प्रभावित हैं. यही वजह है कि झारखंड से सटे बिहार के कई जिले साइबर हॉटस्पॉट बने हैं. गिरफ्तार कई साइबर अपराधियों ने भी कबूल किया है कि उन्होंने अपराधों को अंजाम देने के लिए जामताड़ा मॉड्यूल की नकल की है.

निबटने को हर जिले में खुले साइबर थाने

नोडल एजेंसी के रूप में साइबर अपराधियों की नकेल कसने के लिए इओयू ने भी सभी 40 पुलिस और चार रेलवे जिलों पटना, मुजफ्फरपुर, कटिहार और समस्तीपुर में साइबर थाना खोल दिया है. इसके अतिरिक्त 30 साइबर क्राइम एवं सोशल मीडिया यूनिट भी कार्यरत हैं. पीड़ित शिकायत दर्ज करने के लिए राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल हेल्पलाइन नंबर 1930 पर कॉल कर सकते हैं. 30 लीज लाइन से सुसज्जित इस हेल्पलाइन नंबर हर दिन करीब 1500 कॉल आते हैं. तीन शिफ्ट में करीब 150 पुलिसकर्मी हेल्पलाइन पर मिलने वाली शिकायतों को दर्ज कर उसे संबंधित पुलिस स्टेशनों को स्थानांतरित कर देते हैं. प्रत्येक साइबर पुलिस स्टेशन का नेतृत्व डीएसपी रैंक का एक अधिकारी करता है.

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साइबर क्राइम में शुरू के एक से दो घंटे महत्वपूर्ण

इओयू के एडीजी नैय्यर हसनैन खान ने बताया कि साइबर ठगी के पीड़ित व्यक्ति के लिए शुरू के एक से दो घंटे महत्वपूर्ण होते हैं. उसी समय शातिर पीड़ित के खाते से रुपये एक से दूसरे खाते में ट्रांसफर करते हैं और फिर दूसरे खाते से पैसों की निकासी करते हैं. ऐसे में पीड़ित द्वारा समय पर पुलिस या साइबर सेल को जानकारी दी जाती है तो पीड़ित के रुपये वापस कराये जा सकते हैं.

डिजिटल एविडेंस नहीं मिलने से बच रहे साइबर अपराधी

इओयू अधिकारियों के मुताबिक साइबर अपराध के मामलों में डिजिटल एविडेंस (सबूत) जमा कराना बड़ी चुनौती होती है. खास कर विलंब से सूचना मिलने पर अपराधियों को बच निकलने का मौका मिल जाता है. इससे निबटने के लिए करीब 2.30 करोड़ की लागत से पटना में सेंट्रल साइबर क्राइम एंड फॉरेंसिक लेबोरेट्री भी बनायी गयी है. यहां पर इनसे जुड़े सरकारी कर्मियों को साइबर के हार्डवेयर-सॉफ्टवेयर की ट्रेनिंग दिलायी जाती है. अब तक 651 थानाध्यक्ष सहित 201 न्यायिक पदाधिकारी व 190 पब्लिक प्रोसेक्यूटरों को इसमें प्रशिक्षण दिलाया गया है.

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