पटना : पूर्वी लद्दाख के भारत-चीन सीमा पर गलवान घाटी में अपने जवानों की शहादत से बिहार गौरवान्वित है. बिहार रेजिमेंट के ये जवान अपनी वीरता से चीनी सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. जवानों की शहादत के बाद एक बार फिर बिहार रेजिमेंट चर्चा में है. इससे पहले द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर भारत-पाक युद्ध, ऑपरेशन विजय, संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन समेत काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशंस में अपनी वीरता का परिचय दे चुके हैं. इसके लिए बिहार रेजिमेंट के जवानों को ‘वीर चक्र’ और ‘अशोक चक्र’ जैसे वीरता पुरस्कार से नवाजा भी गया है. आइए जानें कैसे है बिहार रेजीमेंट और कैसा है रेजिमेंट का इतिहास…
बिहार रेजिमेंट की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 15 सितंबर, 1941 को की गयी थी. बिहार रेजिमेंट हैदराबाद रेजिमेंट का ही था. 19वीं हैदराबाद रेजिमेंट में बिहार के सैनिकों को भर्ती किया गया. बिहार रेजिमेंटल के क्रेस्ट के रूप में अशोक स्तंभ के तीन प्रमुख शेरों को अपनाया गया. प्रथम बिहार बटालियन के क्रेस्ट के चयन में शामिल कैप्टन एम हबीबुल्लाह खान खट्टक कार्यवाहक कमांडिंग ऑफिसर बने.
हालांकि, आधुनिक युग के सैनिकों के रूप में बिहारियों की भर्ती ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के दिनों से होती रही है. ‘बंगाल नेटिव इन्फैंट्री’ बहुत कम समय में ही अपनी वीरता और ताकत में दूसरी कंपनियों को काफी पीछे छोड़ दिया. भारतीय सेना के मुताबिक, वर्ष 1758 में लॉर्ड रॉबर्ट क्लाइव के कार्यकाल के दौरान गठित 34वीं सिपाही बटालियन को पूरी तरह से भोजपुर जिले से भर्ती कर स्थापित किया गया था.
भोजपुर के अलावा तत्कालीन शाहाबाद (रोहतास, कैमूर, भोजपुर और बक्सर को मिला कर एक जिला) जिला और मुंगेर ब्रिटिश कंपनी के पसंदीदा भर्ती क्षेत्र थे. बक्सर की लड़ाई, कर्नाटक और मराठा युद्धों के साथ-साथ सुमात्रा और मिस्र में जीत प्रमुख भूमिका निभायी. बंगाल के मूल निवासियों की इन्फैंट्री के हिस्से के रूप में बिहारी सैनिकों ने वीरता का शानदार परिचय दिया. साथ ही बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के लिए कई सम्मान और पुरस्कार अर्जित किये.
आजादी के पहले युद्ध 1857 की क्रांति के दौरान बिहारी सैनिकों ने पहली बार कारतूस विद्रोह किया. ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ने में बिहार से उभरे दो नायकों बाबू कुंवर सिंह और बिरसा मुंडा ने मिसाल कायम की. इसके बाद ब्रिटिश कंपनी ने अपने अस्तित्व के लिए संभावित खतरे को महसूस करते हुए सभी 18 बिहार बटालियन को भंग कर दिया. साथ ही तय किया कि बिहारी की कोई भी भर्ती अंग्रेजों द्वारा नहीं की जायेगी.
बिहार रेजिमेंट ने द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर करगिल विजय और अब पूर्वी लद्दाख के भारत-चीन सीमा पर गलवान घाटी में अपनी वीरता के जौहर दिखाये. साथ ही बिहार रेजिमेंट के लिए कई पुरस्कार और सम्मान हासिल किये. इनमें वीर चक्र, अशोक चक्र समेत कई अन्य सम्मान और पुरस्कार शामिल हैं.
द्वितीय विश्व युद्ध : प्रथम बिहार रेजिमेंट ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रसिद्ध लुसाई बिग्रेड के हिस्से के रूप में लड़ाई लड़ी और 19 अक्टूबर 1944 को ‘हाका’ और 11 जनवरी 1945 को ‘गंगाव’ पर कब्जा कर लिया. वीरतापूर्ण कार्यों के लिए बटालियन को दो ‘बैटल ऑनर्स’ से सम्मानित किया गया.
भारत-पाक युद्ध : बिहार रेजिमेंट की अधिकतर बटालियनों ने 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में भाग लिया. साथ ही सौंपे गये निर्धारित कार्यों को सराहनीय तरीके से पूरा किया. 10वीं बिहार बटालियन को 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के अखौरा युद्ध में वीरतापूर्ण कार्रवाई के लिए ‘यूआर अखौरा’ के ‘थिएटर ऑनर’ से सम्मानित किया गया. साथ ही कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल पीसी साहनी को वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
ऑपरेशन विजय : बटालिक सब सेक्टर में ‘ऑपरेशन विजय’ में बिहार बटालियन ने भाग लिया और जुबेर हिल और थारू पर कब्जा करने की जिम्मेदारी निभायी. बटालियन की वीरता को देखते हुए यूनिट को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ यूनिट प्रशस्ति पत्र, बैटल ऑनर ‘बैटालिक’ और थिएटर ऑनर ‘कारगिल’ से सम्मानित किया गया. मेजर एम सरवनन और नाइक गणेश प्रसाद को वीर चक्र (मरणोपरांत) उनकी वीरता के लिए दिया गया और यूनिट को चार वीर चक्र, एक युद्ध सेवा पदक, छह सेना पदक, छह मेंशन-इन-डिस्पैच सहित कुल 26 वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. साथ ही नौ जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ उत्तरी कमान कमांडिंग कार्ड भी दिये गये.
संयुक्त राष्ट्र मिशन : प्रथम बिहार बटालियन संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भाग लेनेवाली पहली बिहार बटालियन थी. बटालियन को सोमालिया में 1993-1994 में तैनात किया गया था. बाद में 10वीं बिहार बटालियन, 5वीं बिहार बटालियन और 14वीं बिहार बटालियन को क्रमशः 2004, 2009 और 2014 में कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में भाग लेने का गौरव प्राप्त हुआ.
जवाबी कार्रवाई के ऑपरेशंस : बिहार रेजिमेंट ने जवाबी कार्रवाई के संचालन में उत्कृष्टता के साथ काम किया. लेफ्टिनेंट कर्नल हुस गौर और लेफ्टिनेंट कर्नल एसएस राणा को काउंटर इनसर्जेंसी ऑपरेशंस में उनकी वीरतापूर्ण कार्रवाई के लिए सर्वोच्च शांति काल वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया गया. काउंटर इनसर्जेंसी ऑपरेशंस में सक्रिय भाग लेते हुए 5वीं बिहार बटालियन, 8वीं बिहार बटालियन, 10 बिहार बटालियन, 14वीं बिहार बटालियन और 17वीं बिहार बटालियन को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ यूनिट के रूप में सम्मानित किया गया.
ऑपरेशन पराक्रम : इसके अलावा साल 2001 में ऑपरेशन पराक्रम के लिए रेजिमेंट की सभी बटालियनों को बुलाया गया. वहीं, 7वीं बिहार बटालियन के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने SAG के साथ काम करते हुए 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन में सर्वोच्च बलिदान दिया. इसके लिए उन्हें अशोक चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया.
गलवान घाटी : अब बिहार रेजिमेंट के 20 जवान बीते 15 जून की रात दुश्मनों को ढेर करते हुए शहीद हो गये. चीनी सैनिक द्वारा अपने कमांडिंग ऑफिसर पर हमले से गुस्साये जवानों ने विवादत पट्रोलिंग पोस्ट-14 को खाली कराकर ही दम लिया. मिली जानकारी के मुताबिक, बिहार बटालियन की यूनिट में करीब 100 जवान थे. बटालियन के 100 जवानों ने चीनी 300-350 जवानों पर भारी पड़े. हालांकि, इनमें से 20 जवानों को शहादत देनी पड़ी.
15 जून की शाम को भारत और चीन के अधिकारियों की हुई बैठक में तय हुआ कि भारत में घुस आये चीनी सैनिकों को वापस जाना होगा. बैठक का संदेश लेकर 16वीं बिहार रेजिमेंट के कुछ जवान चीनी ऑब्जर्वेशन पोस्ट पर गये. वहां करीब दर्जनभर चीनी सैनिक मौजूद थे. बैठक में तय संदेश की सूचना देने के बावजूद चीनी सैनिकों ने पीछे हटने से इनकार कर दिया. भारत की ओर से करीब चार दर्जन जवानों की टोली कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में चीनी जवानों के पास पहुंचे. संतोष बाबू ने चीनी सैनिकों से पीछे हटने की बात कही. इसके बाद चीनी सैनिकों ने पोजिशन यूनिट को आगे कर दिया, जिसमें करीब 300-350 चीनी सैनिक थे.
चीनी सैनिकों के भारी संख्या में पहुंचने पर उनके मनोबल बढ़ चुके थे और वे बहस करते हुए हिंसक होने लगे. वहीं, भारतीय सैनिकों ने चीन के टेंट और अन्य सामान उखाड़ फेंके. टेंट और अन्य सामान उखाड़ फेंकता देख चीनी जवाों ने संतोष बाबू पर हमला कर दिया. अपने कमांडिंग ऑफिसर को गिरता देख, भारतीय जवान शेरों की भांति टूट पड़े. चीन के 350 जवानों पर बिहार बटालियन के 100 भारी पड़े. इसके बावजूद बिहार रेजिमेंट के जवानों ने पेट्रोल पॉइंट-14 को खाली करा लिया. झड़प शांत होने के बाद चीनी जवानों ने कुछ दूरी पर दोबारा टेंट लगा लिया. अब पीपी-14, पीपी-15 और पीपी-17 पर विवाद खत्म करने को लेकर वरीय अधिकारियों के बीच बात चल रही है.