बिहार में सेनारी नरसंहार के आरोपियों को पटना हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है. जिसके बाद लोगों के बीच नब्बे के दशक में बिहार में हुए दो खूनी झड़पों की कहानी फिर एक बार चर्चे में है. नब्बे के दशक में जहां बिहार जातीय संघर्ष से जूझ रहा था वहीं अगड़ी और पिछड़ी जातियों के बीच दो खूनी जंग सूबे के इतिहास में एक काला अध्याय बनकर रह गया. एक तरफ जहां रणवीर सेना इस खुनी खेल में तैयार थी तो दूसरी तरफ माओवादियों का समूह. इन दो ग्रुपों के बीच हुआ लक्ष्मीपुर बाथे और सेनारी का भीषण नरसंहार, जिसमें 100 के करीब लोगों की जानें गई. लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने दोनों मामलों में अपना फैसला दे दिया. दोनों ही मामले में अदालत ने सभी आरोपितों को रिहा कर दिया है. हाईकोर्ट ने पहले बाथे नरसंहार के आरोपितों को और अब सेनारी नरसंहार के आरोपियों को बरी कर दिया.
लंबे समय के बाद अदालत के आए फैसले के कारण सेनारी नरसंहार की चर्चा फिर एक बार लोगों के बीच है. सेनारी नरसंहार को समझने के लिए लक्ष्मणपुर बाथे में काली रात के बीच हुए उस कांड जानना जरुरी है. दरअसल, लोग सेनारी नरसंहार को बाथे नरसंहार का ही बदला मानते हैं. अरवल जिले के लक्ष्मणपुर बाथे गांव में 30 नवंबर -एक दिसंबर, 1997 की रात नाव में सवार होकर कई अपराधियों ने सोन नदी को पार किया. उनके निशाने पर था लक्ष्मणपुर बाथे गांव, जहां पिछड़े जाति के लोगों के लिए एक अनहोनी दस्तक दे रही थी. अपराधियों ने नाव से उतरते ही सबसे पहले नाविकों को मौत के घाट उतारा. ठंड भरी उस रात में सोन नदी का वो हिस्सा लहू से रंग दिया गया था.
अपराधियों ने लक्ष्मणपुर बाथे गांव पहुंचकर उत्पात मचाना शुरु कर दिया. भूमिहीनदलित जाति के मजदूरों और उनके परिवार के सदस्यों को घर से बाहर निकालकर गोलियों से भून दिया गया. हत्यारों ने करीब तीन घंटे तक यह खूनी खेल खेला जिसमें कुल 58 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. मरने वालों में 27 महिलाएं और 16 बच्चे भी शामिल थे. मौत के आगोश में सुलाई गई करीब दस महिलाएं गर्भवती भी थीं. लोगों में इसका आक्रोश इस कदर था कि दो दिनों तक शवों का दाह-संस्कार नहीं करने दिया गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को गांव का दौरा करना पड़ा उसके बाद सामूहिक दाह-संस्कार के जरिये एक साथ 58 चिताएं 3 दिसंबर को जली थीं.इस नरसंहार ने पूरे देश को हिला दिया था. उस समय देश के राष्ट्रपति रहे के. आर. नारायणन ने इस नरसंहार पर गहरी चिंता जताई थी और इसे ‘राष्ट्रीय शर्म’ करार दिया था.बाथे नरसंहार का आरोप अगड़ी जाति के एक संगठन रणवीर सेना के उपर लगा, जिसका नेतृत्व ब्रह्मेश्वर मुखिया कर रहे थे.
Also Read: बिहार चुनाव में भाजपा ने खर्च किए करीब 72 करोड़ रुपये, जानिए हेलिकॉप्टर, विज्ञापन और कॉल सेंटर के लिए लगाए कितने करोड़दूसरी तरफ जहानाबाद जिला अंतर्गत सेनारी गांव के लिए 18 मार्च 1999 की रात बेहद डरावनी साबित हुई. करीब 500 से 600 की संख्या में हथियारों से लैश लोग इस गांव में घुसे. उन्होंने पूरे गांव को चारो तरफ से घेर लिया. घरों से पुरुषों को खींच-खींचकर बाहर ले गए. अपराधियों ने इन्हें गांव के बाहर ले जाकर लाइन में खड़ा किया और सभी ग्रामीणों का गला काट दिया. वो यहीं नहीं रूके बल्कि बेहद क्रूर तरीके से पेट चीरकर 34 लोगों की नृशंस हत्या कर दी. सेनारी में हुआ यह नरसंहार लोगों की नजर में बाथे नरसंहार के बदला के रूप में ही जाना जाता रहा. उस समय रणवीर सेना और एमसीसी के बीच संघर्ष आम बात थी.मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बाथे में जिन 58 लोगों को मारा गया था वो सभी दलित जाति के थे.
सात अप्रैल 2010 को पटना की एक विशेष अदालत ने लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार मामले में 16 अभियुक्तों को फांसी और दस को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. वहीं 2013 में निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए पटना हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी 26 आरोपियों को बरी कर दिया था.हाई कोर्ट के फैसले को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने ‘अत्यंत गरीब लोगों के लिए न्याय का नरसंहार’ करार दिया था.
वहीं अब करीब 21 साल की लंबी सुनवाई के बाद अब सेनारी नरसंहार का भी फैसला सामने आ गया है. एक संयोग ही है कि इस नरसंहार के फैसले भी बाथे नरसंहार की तरह ही काफी हद तक मिलते-जुलते हैं. पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया. जहानाबाद जिला अदालत ने 15 नवंबर 2016 को इस मामले में 10 आरोपितों को मौत की सजा सुनाई थी, जबकि 3 आरोपितों को उम्रकैद की सजा मिली थी. पटना हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. इस तरह दोनों नरसंहारों में अब कोई गुनहगार कानून की नजर में नहीं रहा.
POSTED BY: Thakur Shaktilochan