पटना हाई कोर्ट ने सोमवार को बिहार बोर्ड के गैर जिम्मेदार आचरण के कारण एक छात्रा के दो साल बर्बाद होने के मामले पर सुनवाई करते हुए बिहार विद्यालय परीक्षा समिति पर दो लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. बोर्ड को इस मुआवजा राशि का भुगतान एक महीने में करना होगा. इसके साथ ही कोर्ट ने बोर्ड को कानूनी प्रक्रिया पर खर्च हुए 25 हजार रुपए याचिककर्ता को देने का आदेश दिया है. मनोज कुमार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद की एकलपीठ ने यह आदेश दिया है.
2017 में छात्रा ने दी थी मैट्रिक की परीक्षा
मामले में याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया कि उसकी बेटी ने वर्ष 2017 में बिहार बोर्ड से मैट्रिक की परीक्षा दी थी. जब परिक्षा का रिजल्ट आया तो उसे संस्कृत विषय में फेल दिखाया गया. यह देखने के बाद उसकी बेटी सदमे में आ गई और उसने पढ़ाई-लिखाई ही छोड़ दी.
बोर्ड की लापरवाही के कारण बर्बाद हुए छात्रा के दो साल
बेटी द्वारा पढ़ाई छोड़े जाने के बाद याचिकाकर्ता ने सूचना के अधिकार के तहत बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से इस संबंध में जानकारी मांगी. जिसके तहत बिहार बोर्ड ने करीब डेढ़ साल बाद बताया कि उनकी बेटी को संस्कृत विषय में तीन मार्क्स नहीं बल्कि 77 अंक प्राप्त हुए हैं. बोर्ड की इस लापरवाही के कारण छात्रा के जीवन के दो साल बर्बाद हो गए. इसके साथ ही उसके करियर पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. वहीं, इस मामले में बिहार बोर्ड के के वकील ने ने यह माना है कि छात्रा को 77 अंक मिले थे लेकिन मार्क्सशीट में सिर्फ 3 नंबर दिए गए थे, जिसके कारण वह फेल हो गई थी.
हाईकोर्ट ने बोर्ड की लापरवाही पर जताई नाराजगी
पटना हाईकोर्ट ने बोर्ड की इस लापरवाही पर नाराजगी जताते हुए कहा कि बोर्ड के अधिकारियों और कर्मचारियों का गैर जिम्मेदार आचरण है. बोर्ड की इस लापरवाही के कारण फर्स्ट क्लास से पास हुई छात्रा को फेल बताकर उसका करियर खराब किया गया है. छात्रा ने रिजल्ट जारी होने के तुरंत बाद तय शुल्क जमा कर जांच के लिए आवेदन दिया था, लेकिन बोर्ड द्वारा इस मामले में समय पर ध्यान नहीं दिया गया. बोर्ड को इस मामले में सुधार करने की कार्रवाई करने में डेढ़ साल लग गए.
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दोषी कर्मी से जुर्माना वसूल करने की छूट
कोर्ट ने कहा कि बोर्ड की लापरवाही की वजह से एक होनहार छात्रा के दो साल बर्बाद हो गए. इसकी भरपी नहीं की जा सकती. मामले में कोर्ट ने जुर्माना लगाने के साथ ही बोर्ड को पूरे मामले की जांच कर दोषी अधिकारी से जुर्माने की राशि वसूल करने की पूरी छूट दी है.