गांधी मैदान में सीआरडी की ओर से लगाये गये पटना पुस्तक मेले में रविवार को खूब भीड़ रही. छुट्टी का दिन होने के कारण सुबह से ही पुस्तक प्रेमियों का आगमन होने लगा था जो कि देर शाम तक चलता रहा. मेले में जमकर जहां एक ओर किताबों की खरीदारी हुई वहीं दूसरी ओर साहित्य और संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों में भी लोगों ने शिरकत कर इस मौके को यादगार बनाया.
मेले में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की किताबों से लेकर धार्मिक साहित्य तक की किताबों की खूब बिक्री देखी गयी. इसके साथ ही पुराने साहित्यकार भी युवाओं को पसंद आ रहे हैं. पुराने लेखकों में प्रेमचंद की किताबें बिक्री के मामले में सबसे आगे दिख रही हैं. मेले में हर वर्ग की जरूरतों के हिसाब से किताबें मौजूद हैं.
पुस्तक मेले में जनसंवाद कार्यक्रम के अंतर्गत “साहित्य में स्त्री नायक” पर साहित्यकार जयंती रंगनाथन, राकेश बिहारी, और सिनीवाली शर्मा ने अपने विचार व्यक्त किये. जयंती रंगनाथन ने कहा कि साहित्य में जिन नायिकाओं के बारे में लिखा गया है उसमें कॉमन बात यह है कि वे सभी अपने हक के लिए लड़ने वाली हैं. वे स्त्री के सम्मान के लिए लड़ती हैं. मेरा मानना है कि हर औरत और लड़की नायिका है. आज भी उत्तर भारत की कई लड़कियों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
वहीं लेखिका सिनीवाली शर्मा ने अलग – अलग उपन्यासों में महिलाओं की भूमिका का वर्णन किया. उन्होंने रामायण और महाभारत जैसे उपन्यासों में भी महिलाओं के पात्रों की चर्चा की. राकेश बिहारी ने संवाद के शीर्षक पर व्यंग करते हुए कहा कि क्या हमें महिलाओं को सशक्त सिद्ध करने के लिए पुरुष की परिभाषा देना जरूरी है? उन्होंने कहा कि हमें पितृसत्ता से मिली कुछ शब्दावलियों से मुक्त होना होगा. महिलाओं को सशक्त और शक्तिशाली दिखाने के लिए मर्दानी जैसे शब्दों का प्रयोग करना मुनासिब नहीं है.
शब्द साक्षी कार्यक्रम के अंतर्गत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अरुण कमल से राकेश रंजन ने बातचीत की. कार्यक्रम में अरूण कमल ने कहा कि पाठकों को अभिभूत कर देने वाली कविताओं को लिखने में आनंद आता है. अंग्रेजी के शिक्षक होते हुए भी उनके व्यक्तित्व में एक ठेठ हिंदीपन है. करीब 45 वर्षों से लिखने के बावजूद भी लगता है कि अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है. उन्होंने कहा कि कोई भी कवि हमेशा शब्दों की खोज में रहता है. उन्होंने कहा कि जो भी श्रेष्ठ लोग लिखते है वे प्रलोभन छोड़ कर आते है.
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पटना पुस्तक मेला में पुण्यार्क कला निकेतन, पंडारक के कलाकारों ने विजय आनंद के निर्देशन में रविवार को “रफा दफा” नुक्कड़ नाटक को पेश किया. कलाकारों ने व्यंगात्मक शैली में कटाक्ष करते हुए दर्शकों को वर्तमान परिदृश्य की चासनी में डुबोकर भ्रष्ट व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा किया.