पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान करने का अलग महत्व है. यही वजह है कि लोग पुनपुन में पहला पिंडदान करने के बाद दूसरा और अंतिम पिंडदान करने के लिए गया के जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से दैहिक, दैविक एवं भौतिक पापों से मुक्ति मिलती है और आत्मा की शांति प्राप्त होती है. इसलिए प्रथम पिंडदान पुनपुन नदी घाट पर करने के बाद श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए यहां तर्पण करते हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम और सीता ने अपने पिता की मृत्यु के बाद पुनपुन नदी में प्रथम पिंडदान किया था. पुनपुन नदी को आदि गंगा कहा गया है. इसकी चर्चा पुनः पुना माहत्य में भी है. यहां के संबंध में एक और किंवदंतियां है कि पलामू (अब झारखंड) के जंगल में कुछ ऋषि तपस्या कर रहे थे, तभी ब्रह्मा जी प्रकट हुए. ऋषियों ने ब्रह्मा जी का चरण धोने के लिए पानी खोजा. पानी नहीं मिलने पर ऋषियों ने अपने स्वेद ( पसीना) जमा किये. जब पसीने को कमंडल में रखा जाता और भर जाने पर कमंडल को उल्टा कर दिया जाता था.
इस तरह बार-बार कमंडल को उलटे जाने से ब्रह्मा जी के मुंह से अनायास निकल गया पुनः पुना. इसके बाद वहां जल की धारा निकल आयी. उसी समय ऋषियों ने नाम रख दिया पुनः पुना, जो अब पुनपुन के नाम से जाना जाता है. ब्रह्मा जी ने कहा था जो इस नदी के तट पर पिंडदान करेगा, वह अपने पूर्वजों को स्वर्ग पहुंचायेगा. ब्रह्मा जी ने पुनपुन के बारे में कहा – “पुनः पुना सर्व नदीषु पुण्या, सदावहा स्वच्छ जला शुभ प्रदा”. इसी के बाद से पितृ पक्ष में पहला पिंडदान पुनपुन नदी के ही तट पर करने का विधान है.
पितृपक्ष महासंगम में गयाश्राद्ध के दूसरे दिन यानी आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन नित्य क्रिया से निवृत होकर प्रेतशिला तीर्थ की यात्रा करें. वहां ब्रह्मकुंड में स्नान कर देवर्षि पितृ तर्पण श्राद्ध करें. यूं अपने आवासन स्थल से स्नान कर भी निकले और केवल तीर्थ को प्रणाम कर ब्रह्मकुंड के शुद्ध जल से तर्पण श्राद्ध करें. ब्रह्मकुंड में तर्पण श्राद्ध के बाद प्रेत पर्वत पर चढ़कर तीर्थों में क्रम के अनुसार पिंडदान करें. सत्तू में तिल मिलाकर अपसव्य से दक्षिणाभिमुख होकर दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, पूर्व इस क्रम में सत्तू को छींटते हुए प्रार्थना करें कि हमारे कुल में जो कोई भी पितर प्रेतत्व को प्राप्त हो गये हैं, वे सब तिल मिश्रित सत्तू से तृप्त हो जायें. फिर उनके नाम से जल चढ़ा कर प्रार्थना करें. ब्रह्मा से लेकर चींटी पर्यंत चराचर जीव मेरे इस जल दान से सभी प्रकार से तृप्त हो जायें. ऐसा करने से उनके पितर प्रेतत्व से विमुक्त हो जाते हैं. इस प्रेतशिला के माहात्मय से उसके कुल में कोई प्रेत नहीं रहता है, इसलिए विख्यात प्रेतशिला सभी की मुक्ति के लिए गयासुर के सिर पर रखी गयी.
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मंत्रादि के रूप में आदि गदाधर भगवान इस पर स्थित हैं. प्रेतशिला में पिंडदान-तर्पण के बाद रामतीर्थ(रामकुंड) में स्नान कर पिंडदान करने से पितर विष्णु लोक चले जाते हैं. गया पिंडदान करने आये श्रीभगवान श्री राम ने फल्गु महानदी की प्रार्थना कर सीता जी के साथ स्नान किया. तभी से वह रामतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हो गया. भगवान राम के वन चले जाने पर भरत जी गया पिंडदान करने आये और जिस पर्वत पर ठहरे पिंडदान किये रामेश की स्थापना किये वह रामशिला तीर्थ है. राम, सीता, लक्ष्मण की स्थापना किये, वह भरताश्रम पुण्य वृक्षों से आवृत्त है. वहां रामशिला भरताश्रम पर श्राद्धादि करने से कल्पों तक उसका क्षय नहीं होता है. शिला की जंघा पर धर्मराज यमराज उसे निश्चल करने के लिए बैठ गये. पितरों की मुक्ति के लिए बलि रूप में उनको पिंड दें. उनके दो कुत्ते श्याम व शबल उनको वलि रूप पिंड से फिर उनके किंकर काक को बलि रूप पिंड दे. यही काकबलि तीर्थ है.
पितृपक्ष मेला में चांदचौरा से विष्णुपद मंदिर तक नो प्लास्टिक जोन बनाया गया है. इस क्षेत्र में प्लास्टिक के उपयोग पर पूरी तौर से प्रतिबंध रहेगा. जानकारी देते हुए नगर आयुक्त अभिलाषा शर्मा ने कहा कि इसके लिए सिटी मैनेजर एवं सिटी मिशन मैनेजर के नेतृत्व में स्क्वायड टीम का गठन किया गया है, जो लगातार स्थल जांच कर दुकानदारों, नागरिकों द्वारा यदि प्लास्टिक थैला का उपयोग करते हुए पाया जायेगा. उसके पास से प्लास्टिक को जब्त करते हुए दंड वसूला जायेगा. छापेमारी का निरीक्षण करने के लिए अधिकारी को जिम्मेदारी दी गयी है. उन्होंने बताया कि चार स्क्वाड टीमों द्वारा देवघाट, रबर डैम, सीतापथ से सीताकुंड, चांदचौरा से विष्णुपद एवं विष्णुपद से बंगाली आश्रम, बैतरणी, ब्रहमसत होते हुए बायपास व अक्षयवट में निगरानी एवं छापेमारी की जायेगी.