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Prabhat Khabar EXCLUSIVE : तीसरी लहर में बच्चों को बचाने के लिए कारगर हो सकता है एमएमआर, जानिये डॉक्टर क्या बना रहे हैं स्ट्रेटजी

कोविड की तीसरी लहर की चपेट में बच्चे होंगे. ऐसी आशंकाओं के बीच बच्चों के चिकित्सक भी अपनी स्ट्रेटजी बना रहे हैं. चिकित्सकों की स्ट्रेटजी का आधार पिछले एक साल की कोविड हिस्ट्री है.

राजदेव पांडेय, पटना . कोविड की तीसरी लहर की चपेट में बच्चे होंगे. ऐसी आशंकाओं के बीच बच्चों के चिकित्सक भी अपनी स्ट्रेटजी बना रहे हैं. चिकित्सकों की स्ट्रेटजी का आधार पिछले एक साल की कोविड हिस्ट्री है. खासतौर पर बिहार में कोरोना संक्रमित बच्चों की एक साल की हिस्ट्री बताती है कि अव्वल तो बच्चे बेहद कम प्रभावित हुए. हुए भी तो उनमें लक्षण बेहद मामूली थे.

पहली और दूसरी कोरोना लहर में बच्चों के सेफ होने की वजहों में सबसे अहम यह रहा कि खुद कोरोना संक्रमितों ने बच्चों को अपने से काफी दूर रखा. दूसरी सबसे अहम वजह वह संभावना है, जिसमें बताया जा रहा है कि जन्म के बाद बच्चो में लगवाये जाने वाले टीकों ने काफी हद तक रोग प्रतिरक्षक दीवार का काम किया.

विशेषज्ञों के मुताबिक संभवत: एमएमआर के टीके तीसरी लहर में बच्चों के लिए क्रॉस प्रोटेक्शन का काम कर रहे हैं. हालांकि इस निष्कर्ष का अभी वैज्ञानिक आधार तलाशना बाकी है.

दो-तीन फीसदी बच्चों में ही गंभीर संक्रमण

विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि अगर लापरवाही की वजह से बच्चों में संक्रमण गंभीर हुआ, तो उनके माता-पिता को उनके साथ ही रहना होगा. चिकित्सा इन्फ्रास्ट्रक्चर भी उसी तरह डेवलप किये जा रहे है.

प्रदेश में देखा गया है कि बिहार में बड़ी मुश्किल से सौ में से केवल दो-तीन फीसदी ही बच्चे गंभीर किस्म के संक्रमण से प्रभावित थे. हालांकि उनमें से अपवाद छोड़ कर तकरीबन सभी को सुरक्षित कर लिया गया. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि अभिभावक सतर्कता बरतें. तीसरी लहर से निबटने में चूक हुई, तो दिक्कत भी आ सकती है.

एक्सपर्ट व्यू

पटना एम्य के एसोसिएट प्रोफेसर (बाल रोग विशेषज्ञ) डॉ अरुण प्रसाद का कहना है कि अव्वल तो कोशिश की जाये कि तीसरी लहर की आशंकाओं को कमजोर किया जाये. आकलन यह है कि अभी तक जो बच्चे संक्रमित हुए हैं. उनमें बेहद कमजोर लक्षण दिखे, जिन्हें ठीक कर लिया गया. तीसरी लहर में भी संक्रमण ज्यादा गंभीर होने की अनुमान कम ही हैं. बावजूद हमें पूरी सतर्कता बरतनी है. ऐसी कोई कसर नहीं छोड़नी है, जिससे कोरोना हमारे बच्चों के ऊपर हमला कर सके.

वहीं पटना एम्स के ही ट्रॉमा एंड इमरजेंसी के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ अनिल कुमार ने कहा कि अस्पतालों में ऐसा इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित हो, जिसमें संक्रमित बच्चों के साथ उनके अभिभावकों के भी रुकने का प्रबंध हो. छोटे बच्चे को नियंत्रित करने के लिए अभिभावकों को साथ रुकना होगा.

अभिभावकों को शत-प्रतिशत टीका लेना चाहिए. बच्चों में रिकवरी क्षमता भी अधिक रही है. अनुमान लगाया जा रहा है कि पुरानी वैक्सीन का असर भी कोरोना के खिलाफ काम कर सकता है. हालांकि अभी वैज्ञानिक आधार नहीं है.

Posted by Ashish Jha

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