पटना. रियल एस्टेट में लगने वाले जीएसटी को लेकर बिल्डर और जमीन मालिक के बीच मतभेद की स्थिति तो रहती ही है, साथ ही फ्लैट खरीदने वाले उपभोक्ता को भी फ्लैट के बन जाने के बाद भी बिल्डर द्वारा जीएसटी लिये जाने से विवाद होता है. इस संबंध में वरीय चार्टर्ड अकाउंटेंट राजेश खेतान ने बताया कि किसी भी मकान या फ्लैट के कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी होने के बाद की जाने वाली बिक्री जीएसटी के दायरे से बाहर होती है. उस पर बिल्डर द्वारा ग्राहक से जीएसटी अलग से नहीं लिया जा सकता है. अगर ऐसा बिल्डर करता है, तो इसकी शिकायत जीएसटी विभाग से की जा सकती है.
राजेश खेतान ने बताया कि एक अप्रैल, 2019 के पहले से चले आ रहे प्रोजेक्ट, जिन पर बिल्डर द्वारा 12 फीसदी की दर से जीएसटी देने का विकल्प चुना गया है, वैसे प्रोजेक्ट में कंप्लीशन की तिथि पर बचे हुए फ्लैट के एरिया पर लिया गया आनुपातिक इनपुट टैक्स क्रेडिट वापस करना होगा. लेकिन वैसे प्रोजेक्ट, जो इस तिथि के बाद शुरू हुए हैं, उन पर कंप्लीशन की तिथि पर बचे हुए फ्लैट पर बिल्डर को टीडीआर के तहत 18 फीसदी जीएसटी चुकाना होगा. लेकिन अगर यह राशि फ्लैट पर लागू जीएसटी की राशि से अधिक हो जाती है, तो वैसी स्थिति में फ्लैट के मूल्य पर जीएसटी की गणना कर बिल्डर को अपने पास से चुकाना होगा.
बिल्डर उन फ्लैट के खरीदार से जीएसटी अलग से नहीं ले सकता है, लेकिन इसकी भरपाई वह उन फ्लैट की बेस प्राइस बढ़ा कर कर सकता है. राजेश खेतान ने बताया कि प्रायः यह देखा गया है कि जमीन मालिक द्वारा बिल्डर को कंस्ट्रक्शन सेवाएं लेने के लिए जीएसटी को लेकर विवाद बना रहता है. इस मॉडल के तहत दो ट्रांजेक्शन हो जाते हैं. पहला, जमीन मालिक द्वारा बिल्डर को डेवलपमेंट राइट सप्लाइ करना और दूसरा बिल्डर द्वारा जमीन मालिक को फ्लैट बनाने की सर्विस देना. ये दोनों ही ट्रांजेक्शन जीएसटी के दायरे में आते हैं.
इस तरह जमीन मालिक जब बिल्डर को जमीन देता है, तो उसके द्वारा बिल्डर को डेवलपमेंट राइट्स ट्रांसफर किये जाते हैं, जिस पर एक अप्रैल, 2019 के बाद से बिल्डर को रिवर्स चार्ज में टैक्स देना होगा, लेकिन इस तिथि के पहले के एग्रीमेंट पर टीडीआर पर टैक्स चुकाने की जिम्मेदारी जमीन मालिक की होगी. अगर इस जमीन पर आवासीय फ्लैट बनाये जा रहे हैं, तो कंप्लीशन की तिथि तक बुक हो चुके फ्लैट पर टीडीआर करमुक्त रहेगा.
सीए राजेश खेतान ने बताया कि इस मॉडल के दूसरे ट्रांजेक्शन के तहत जब बिल्डर फ्लैट बनाकर जमीन मालिक को उसका हिस्सा देता है, तो यह बिल्डर द्वारा जमीन मालिक को दी गयी कंस्ट्रक्शन सर्विस के दायरे में आता है. इस पर फॉरवर्ड चार्ज के तहत बिल्डर द्वारा जमीन मालिक से जीएसटी लेकर सरकार को देना होगा.