पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने झारखंड सरकार द्वारा बोकारो और धनबाद में क्षेत्रीय भाषाओं की सूची से मगही और भोजपुरी को हटाये जाने के फैसले का विरोध किया है. दिल्ली प्रवास के दौरान उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार का यह फैसला राज्य हित में नहीं है. नीतीश ने कहा कि बिहार और झारखंड पहले एक ही था. दोनों राज्यों में मगही और भोजपुरी बोली जाती है. भोजपुरी तो यूपी में भी बोली जाती है. उन्होंने किसी का नाम लिये बिना कहा कि आश्चर्य की बात है कि झारखंड सरकार ने इस तरह का फैसला लिया है.
उन्होंने कहा कि जिस कारण से भी उन्होंने यह फैसला लिया है, वो अपना ही नुकसान कर रहे हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार और झारखंड एक ही साथ रहा है. दोनों का रिश्ता एक साथ रहा है. कोई अलग नहीं है, एक साथ है. बिहार और झारखंड अलग हुए हैं, पर बोली एक ही है. बोर्डर पर जाकर देख लीजिए, उधर भी मगही ही है. भोजपुरी भी उधर है. उन्होंने कहा कि पता नहीं किस कारण से ऐसा कर रहे हैं, इससे राज्य का हित नहीं होगा.
मुख्यमंत्री ने कहा कि जदयू के दो बड़े नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह में कोई विवाद नहीं है. इस भ्रम में कोई नहीं रहे कि दोनों अलग-अलग हैं. सब एक साथ हैं. कुछ लोग गलतफहमी फैला रहे हैं. सदस्यता अभियान को लेकर कहा कि मेंबरशिप ड्राइव समय पर चलेगा. इसका समय कुछ दिन बाद आयेगा. जब समय आयेगा तब राष्ट्रीय अध्यक्ष ही इसकी शुरुआत करेंगे.
Also Read: Bihar News: बिहार बोर्ड इंटर परीक्षा की कॉपियों के मूल्यांकन को लेकर प्रशिक्षण आज से, जानें टाइम शेड्यूल
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी मुलाकात प्रशांत किशोर से हुई है. प्रशांत किशोर से उनका पुराना रिश्ता है. इस मुलाकात का कोई खास मतलब नहीं है. वहीं बिहार विधानसभा शताब्दी स्तंभ में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव द्वारा स्वास्तिक स्तंभ लगाये जाने के विरोध पर मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. जो भी है, उसके बारे में विधानसभा अध्यक्ष बोलेंगे. उन्होंने कहा कि आजकल ट्वीट करना फैशन बन गया है. नाम लिये बिना कहा कि पता नहीं वो खुद ट्वीट करता है या कोई और कर देता है.
झारखंड सरकार की वर्ग तीन और चार की नौकरियों के लिए स्थानीय भाषा की जानकारी अनिवार्य कर दी गयी है. इसके तहत पिछले 24 दिसंबर को झारखंड सरकार ने सभी जिलों में बोली जाने वाली स्थानीय भाषा की सूची जारी की थी. इसमें बोकारो और धनबाद जिले में मगही तथा भोजपुरी को भी शामिल किया गया था. सरकार के इस फैसले का स्थानीय लोगों ने विरोध किया. इसके बाद शुक्रवार को दोनों ही भाषाओं को स्थानीय भाषा की सूची से हटाने का फैसला किया गया. बिहार में इस फैसले का चौतरफा विरोध हो रहा है.