बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में नयी सरकार बनने के बाद से बयानबाजी का दौर लगातार जारी है. कभी भाजपा नेताओं की तरफ से कोई बयान आता है तो कभी महागठबंधन के नेताओं की तरफ से. इसी क्रम में अब राजद और कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने भी एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला देते हुए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का घेराव किया है.
राजद के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा भाजपा नेताओं द्वारा जिस प्रकार मुख्यमंत्री जी को टारगेट कर अमर्यादित शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है वह संवैधानिक और लोकतांत्रिक मर्यादाओं के खिलाफ है. राजनीति में विरोध करने की भी एक मर्यादा होती है. उन्होंने कहा जो पार्टी दो नेताओं का आदेश पाल बनी हुई है उसके नेताओं का आदेश पाल शब्द से लगाव होना स्वाभाविक है.
राजद प्रवक्ता ने कहा कि विधी व्यवस्था पर भाजपा नेताओं को बोलने का कोई अधिकार नहीं है. एनसीआरबी के अनुसार बिहार में आपराधिक घटनाएं राष्ट्रीय औसत से काफी कम है. आपराधिक घटनाओं में राष्ट्रीय औसत जहां 268 है वहीं बिहार में आपराधिक घटनाओं का औसत 150 है. कानून व्यवस्था पर सवाल उठाने वाले भाजपा नेताओं को एनसीआरबी का रिपोर्ट देखकर प्रतिक्रिया देनी चाहिए. एनसीआरबी के अनुसार भाजपा शासित प्रदेश में आपराधिक घटनाओं का अनुपात बिहार की तुलना में बहुत ज्यादा है. बिहार में भी एनडीए सरकार की तुलना में आज बिहार के महागठबंधन सरकार में आपराधिक घटनाओं में काफी कमी आई है.
Also Read: पटना में BPSC अभ्यर्थियों पर पुलिस का लाठीचार्ज, परीक्षा पैटर्न में बदलाव का कर रहे थे विरोध
बिहार कांग्रेस कमिटी के प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने कहा है कि बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी को अनर्गल प्रलाप की आदत लग गई है. इनके अनर्गल प्रलापों की वजह से राज्य की छवि को बड़ा नुक़सान हुआ है. राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाने वाले ये दोनों लोग तब क्यों चुप हो जाते हैं जब एनसीआरबी के आंकड़े सामने आते हैं. उत्तर प्रदेश में जब से भाजपा की सरकार बनी है तब से सालाना औसतन 3717 लोगों की हत्या हो रही है. ये यूपी में हत्या का अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है. हत्या के मामले में यूपी नंबर एक पर है.
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा ऐसा लग रहा है इन दोनों नेताओं ने बिहार को बदनाम करने का ठेका ले रखा है. रोज़ सबेरे उठते ही बिहार को बदनाम करने में जुट जाने वाले ये नेता क्या बिहार सरकार में शामिल नहीं रहे हैं. जब ये सरकार में थे तो राज्य की कानून व्यवस्था कैसी थी उसके आंकड़े और आज के आंकड़े क्या एक समान हैं. मैं दोनों नेताओं को चुनौती देता हूं कि अगर हिम्मत है तो तीन-चार महीने पहले के अपराध आंकड़े और महागठबंधन की सरकार बनने के बाद के आंकड़े सामने रख कर बहस करें.