हजरत सैयद शहीद गुलाम सफदर पीर मुराद शाह (रह.) यानी शाह जलाल शहीद की मजार शरीफ पर सोमवार से तीन दिवसीय उर्स शुरू हो गया. गुलाम सफदर पीर मुराद शाह रहमतुल्लाह अलेह के आस्ताने पर हाजिरी देने पहुंचे. मौके पर अकीदत के फूल चढ़ाने और चादरपोशी के लिए सुबह से देर रात तक जायरीन और अकीदतमंदों का आने का सिलसिला चलता रहा. इकबाल हैदर खां ने बताया कि उर्स के पहले दिन लगभग 25 हजार अकीदतमंदों ने चादरपोशी की.
आकर्षक लाइटों से रोशन रहा परिसर
सोमवार को उर्स के मौके मजार के साथ ही पूरा परिसर रंगीन और आकर्षक बल्बों से रौशन रहा. मेला में कई तरह के बच्चों के झूले, खिलौने और खाने- पीने की वस्तुओं की दर्जनों दुकानें सजी हैं. साथ ही शीरनी, अगरबत्ती, फूल, चादर और घरेलू जरूरतों की चीजों की दुकानें भी लगी हुई हैं.
शुरू हुआ चादरपोशी का सिलसिला
सोमवार को तीन बजे भोर में गुस्ले संदल और कुरान खानी की गयी. इसके बाद मीलाद शरीफ, फिर कुल शरीफ के बाद दुआ और चादरपोशी का सिलसिला शुरू हो गया. सभी धार्मिक परंपरा मौलाना अजमउल्ला रहमानी के देख-रेख में पूरा किया गया. चादरपोशी का यह सिलसिला चार अक्तूबर तक लगातार चलेगा.
हर किसी की मुरादें होंगी पूरी
कमेटी के अध्यक्ष मेजर इकबाल हैदर खां और सचिव तहसीन नदीम ने बताया कि यह मजार हिन्दू-मुस्लिम एकता का परिचायक है. जलाल शाह के मजार में हर साल सभी धर्म संप्रदाय के लोग पहुंचते हैं. अपनी मन्नतें मांगते हैं और बाबा सभी की मुरादें पूरी करते हैं. मजार शरीफ में हर साल दो दिवसीय उर्स का आयोजन होता है. इसमें सूबे के अलावा,झारखंड,उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल से हजारों लोग पहुंचते हैं और बाबा के मजार में चादरपोशी करते हैं.
कल सजेगी सूफियाना कव्वाली की महफिल
चार अक्तूबर की रात आठ बजे सूफियाना कव्वाली की महफिल सजेगी. इसमें राजस्थान (अजमेर) के कव्वाल साबरी सूफी ब्रदर्स बनाम कानपुर की रौनक परवीन के बीच मुकाबला होगा. कव्वाली का उद्घाटन अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मो जमा खान करेंगे. मुख्य अतिथि बिहार प्रदेश जदयू के अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा, बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष विशिष्ट अतिथि मो. इरशाद उल्लाह, विधान पार्षद डॉ खालिद अनवर मौजूद रहेंगे.
पीर मुराद शाह की दर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता
पटना हाइकोर्ट स्थित हजरत सैयद गुलाम सफदर पीर मुराद शाह (शाह जलाल शहीद) की मजार का दरवाजा पिछले 600 सालों से बिना किसी मजहबी भेदभाव के अवाम के लिए खुला है. इस मजार शरीफ के प्रति श्रद्धा रखने वालों में हिंदू, मुसलमान, सिख व अन्य धर्मों के लोग शामिल हैं. इस मजार के बारे में कहा जाता है कि जो इस दर पर पहुंचा वह खाली हाथ नहीं गया. उसकी मुराद जरूर पूरी हुई. मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धालु मुराद शाह की मजार पर चादर चढ़ाते हैं.
128 वर्षों से सालाना उर्स का हो रहा आयोजन
दरगाह हजरत शाह जलाल शहीद कमेटी के अध्यक्ष मेजर इकबाल हैदर खां ने बताया कि लगभग 600 साल पहले मनेर के एक राजा से पीर मुराद शाह की जंग हुई, जिसमें वे लड़ते-लड़ते शहीद हो गये थे. बाद के दिनों में उनका नाम उनके साथ रहने वाले लोगों ने हजरत सैयद शहीद गुलाम सफदर पीर मुराद शाह रख दिया. उन्होंने बताया कि शहीद होने के बाद उनके धड़ को यहां हाइकोर्ट के पास दफन किया गया. जबकि सिर को बांस घाट में. उनकी शहादत के बाद लोगों का यहां आना-जाना शुरू हुआ. यहां पिछले 128 वर्षों से सालाना उर्स का आयोजन हो रहा है.
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