पटना : बिहार विधान परिषद के चुनाव के पहले आरजेडी के आठ पार्षदों में से टूट कर पांच पार्षद जेडीयू में शामिल हो गये. इनमें से चार पार्षद पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव खास माने जाते हैं. बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी में टूट का बिहार की राजनीति पर बड़ा असर पड़ेगा. आरजेडी का गणित बिगड़ा तो राबड़ी देवी से नेता विरोधी दल की कुर्सी छिन सकती है. मालूम हो कि आज ही आरजेडी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है.
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आरजेडी में टूट से विधान परिषद में एक ओर जेडीयू जहां 20 सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी हो गयी है. वहीं, आरजेडी के आठ में से पांच पार्षदों के इस्तीफा देने से मात्र तीन पार्षद बचे हैं. इनमें से एक पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी विधान परिषद में नेता विरोधी दल हैं.
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सियासी जानकारों के मुताबिक, एक साथ पांच पार्षदों के इस्तीफा देने का असर सबसे ज्यादा आरजेडी पर पड़ेगा. आरजेडी नेता राबड़ी देवी से नेता विरोधी दल का सम्मान छिन सकता है. मालूम हो कि नये नियम के मुताबिक, सदन में नेता विरोधी दल होने के लिए 75 सदस्यीय बिहार विधान परिषद की कुल सीट का दस फीसदी या न्यूनतम आठ सीट होना चाहिए.
आरजेडी के पास मात्र तीन पार्षद बचे हैं. आसन्न विधान परिषद चुनाव में राजद कोटे के तीन सदस्य जीत जाते हैं, तो पार्टी के छह पार्षद हो जायेंगे. ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से विधान परिषद में नेता विरोधी दल का सम्मान उनसे छिन सकता है. हालांकि, जानकार मानते हैं कि विधान परिषद के नियमों के मुताबिक, दूसरे विरोधी दलों के साथ सामंजस्य बैठा कर वह नेता विरोधी दल की कुर्सी पर बैठी रह सकती हैं.
मालूम हो कि आरजेडी छोड़ कर जेडीयू का दामन थामनेवालों में संजय प्रसाद, राधाचरण सेठ, दिलीप राय, रणविजय सिंह और कमरे आलम शामिल हैं. इनमें से तीन पार्षदों संजय प्रसाद, राधाचरण सेठ और दिलीप राय का कार्यकाल अगले साल जुलाई माह में खत्म हो रहा है, जबकि रणविजय सिंह और कमरे आलम का कार्यकाल 2022 की जुलाई में खत्म होना था.