पटना. राजधानी निवासी अमन (बदला हुआ नाम )का सपना था कि वे इंजीनियर बन कर दुनिया में नाम कमाएं. आइआइटी से ग्रेजुएट होते ही एक मल्टीनेशनल कंपनी से आॅफर आ गया. 20 लाख रुपये के सालाना पैकेज पर दुनिया की प्रतिष्ठित कंपनी में सेवा देने लगे. अब वह 1.66 लाख महीने की बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी छोड़ कर 60 हजार रुपये महीने की सरकारी नौकरी करेंगे. अमन ऐसे अकेले युवा नहीं है.
बिहार लोक सेवा द्वारा आयोजित 64वीं संयुक्त परीक्षा में राजस्व पदाधिकारी एवं उसके समकक्ष पदों के लिए चयनित 566 युवाओं में दो सौ इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि से हैं. अपनी पहचान छिपाने की शर्त पर अमन बताते हैं कि युवाओं को अब इंजीनियरिंग नहीं भा रही है.
सरकारी अधिकारी की धमक- चमक उनको आकर्षित कर रही है. इसके लिए वह न केवल वेतन से समझौता कर रहे हैं , बल्कि यूरोपियन शहरों की लाइफ स्टाइल जीने के बाद भी बिहार के गांवों में अपनी सेवा देने को आतुर हैं.
टीसीएस जैसे प्रबंधन संस्थान की नौकरी छोड़ कर राजस्व पदाधिकारी बने उनके दोस्त का कहना था कि पहली नौकरी के मुकाबले यहां वेतन आधे से भले ही कम है. सुविधा, माहौल भी वैसा नहीं मिलेगा, लेकिन उनके परिवार और उनको जो प्रतिष्ठा मिलेगी, अपने राज्य के लोगों की सेवा के सुख के मुकाबले वह कुछ नहीं है.
राजस्व अधिकारी एवं समकक्ष पद पर चयनित 566 अभ्यर्थियों के दस्तावेजों का सत्यापन सर्वे प्रशिक्षण संस्थान में शुरू कर दिया गया है. 24 सितंबर तक सत्यापन किया जायेगा. पहले दिन 11 अभ्यर्थी अनुपस्थित रहे.
राजस्व अधिकारी का पदस्थापन अंचल, सर्वे एवं चकबंदी सभी जगह किया जायेगा. अंचल में इन्हें जाति, आवास एवं आय प्रमाणपत्र देने के लिए अधिकृत किया गया है. अंचल कार्यालय परिसर में इनका अपना अलग ऑफिस होगा. सरकार ने अलग से गाड़ी की भी व्यवस्था की है. छह साल की सेवा पूरी होने के बाद राजस्व अधिकारी को प्रोन्नत करके अंचल अधिकारी बनाने का प्रावधान है.
Posted by Ashish Jha