बिहार की राजधानी पटना में कई जगह छठ पूजा की रौनक दिखती है. पटना के कालीघाट पर बड़ी संख्या में भक्त छठ मां के दर्शन करने पहुंचते हैं. छठ घाट पर श्रद्धालु भगवान सूर्य की उपासना करते हैं. इस दौरान समूचा गंगा घाट प्रार्थना स्थल में बदल जाता है.
औरंगाबाद के देव में भगवान सूर्यदेव का प्रसिद्ध मंदिर है. छठ पूजा के दौरान यहां बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं. देव में छठ मनाने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.
मुंगेर के कष्टहरणी घाट का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है. जब भगवान राम माता सीता से विवाह करके मिथिला से अयोध्या वापस लौट रहे थे तब उनके बहुत से साथी मुंगेर के कष्टहरणी घाट पर स्नान करने के लिए ठहरे थे.
राजधानी पटना से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर हाजीपुर में छठ पर्व का आयोजन खास होता है. इस घाट के नाम के पीछे एक पुरानी कहानी है. कहा जाता है कि गज (हाथी) और ग्राह (मगरमच्छ) के बीच लड़ाई हुई थी. भगवान विष्णु को भक्त गजराज को बचाने के लिए मध्यस्थता करनी पड़ी थी. इसी कहानी के नाम पर ही घाट का नाम कौन्हारा (कौन हारा) रखा गया. यहां छठ पर्व धूमधाम से मनाया जाता है.
बक्सर जिला ‘बक्सर की लड़ाई‘ के लिए जाना जाता है. पटना से 130 किमी दूर बक्सर में छठ के समय काफी लोग आते हैं. जिले में छठ को लेकर काफी रौनक रहती है. यहां के रानी घाट पर छठ पूजा पर खास आयोजन होते हैं.
वैदिक काल से नालंदा जिला का सूर्य पीठ बड़गांव सूर्योपासना का प्रमुख केंद्र रहा है. बड़गांव का सूर्य मंदिर दुनिया के 12 अर्कों में शामिल है. यहां छठ करने से हर मनोकामना पूरी होती है. देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु चैत और कार्तिक माह में छठव्रत करने बड़गांव आते हैं. भगवान सूर्य को अर्घ देने की परंपरा बड़गांव से ही शुरू हुई थी. मगध में छठ की महिमा इतनी प्रचलित थी कि युद्ध के लिए राजगीर आए भगवान कृष्ण ने भी बड़गांव पहुंचकर भगवान सूर्य की पूजा थी. इसकी चर्चा सूर्य पुराण में है.
गया के फल्गू नदी में बने रामशिला छठ घाट पर भी अर्घ देने की लंबी परंपरा है. हर साल छठ पर बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. गया की धरती को मोक्ष की नगरी भी माना जाता है. पितृपक्ष में दुनियाभर से लोग पितरों के तर्पण के आते हैं.
Posted : Abhishek.