21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Artificial Intelligence लोकतांत्रिक देशों के आम चुनावों में कितना हो सकता है खतरनाक, पढ़ें ये रिपोर्ट

AI में किसी भी विषय पर किसी भी परिप्रेक्ष्य में सूचना तत्काल और अंतहीन तरीके से तैयार करने की क्षमता है. एक सुरक्षा विशेषज्ञ के रूप में, मेरा मानना है कि एआई इंटरनेट-युग में प्रचार के लिए विशिष्ट रूप से उपयुक्त उपकरण है. ये सब बहुत नया है.

Undefined
Artificial intelligence लोकतांत्रिक देशों के आम चुनावों में कितना हो सकता है खतरनाक, पढ़ें ये रिपोर्ट 7

दुनिया भर के चुनावों को विदेशी तत्वों से बढ़ते खतरे का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) भी शामिल है. एक-दूसरे के चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश करने वाले देशों ने 2016 में एक नए युग में प्रवेश किया, जब रूसियों ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लक्षित करते हुए सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार अभियानों की एक श्रृंखला शुरू की. अगले सात वर्षों में, कई देशों – विशेष रूप से चीन और ईरान – ने अमेरिका और दुनिया में अन्य जगहों पर चुनावों को प्रभावित करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया. ऐसे में 2023 और 2024 में ऐसा कुछ नहीं होने की उम्मीद की कोई खास वजह नहीं है.

Undefined
Artificial intelligence लोकतांत्रिक देशों के आम चुनावों में कितना हो सकता है खतरनाक, पढ़ें ये रिपोर्ट 8

लेकिन, एक नया तत्व है: AI में किसी भी विषय पर किसी भी परिप्रेक्ष्य में सूचना तत्काल और अंतहीन तरीके से तैयार करने की क्षमता है. एक सुरक्षा विशेषज्ञ के रूप में, मेरा मानना है कि एआई इंटरनेट-युग में प्रचार के लिए विशिष्ट रूप से उपयुक्त उपकरण है. ये सब बहुत नया है. चैटजीपीटी को नवंबर 2022 में पेश किया गया था जबकि अधिक शक्तिशाली जीपीटी-4 को मार्च 2023 में जारी किया गया था. अन्य भाषा एवं छवि उत्पादन एआई लगभग एक ही समय के हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि ये प्रौद्योगिकियां दुष्प्रचार को कैसे बदलेंगी, वे कितनी प्रभावी होंगी या उनका क्या प्रभाव पड़ेगा. लेकिन हम इसका पता लगाने वाले हैं.

Undefined
Artificial intelligence लोकतांत्रिक देशों के आम चुनावों में कितना हो सकता है खतरनाक, पढ़ें ये रिपोर्ट 9

दुनियाभर में चुनाव का संयोग: अधिकतर लोकतांत्रिक देशों में जल्द ही चुनावी मौसम पूरे जोरों पर होगा. लोकतंत्र में रहने वाले 71 प्रतिशत लोग अब से लेकर अगले साल के अंत तक राष्ट्रीय चुनाव में मतदान करेंगे. अक्टूबर में अर्जेंटीना और पोलैंड, जनवरी में ताइवान, फरवरी में इंडोनेशिया, अप्रैल में भारत, जून में यूरोपीय संघ और मैक्सिको और फिर नवंबर में अमेरिका में आम चुनाव होंगे. दक्षिण अफ्रीका सहित नौ अफ्रीकी लोकतांत्रिक देशों में 2024 में चुनाव होंगे. ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में तारीखें तय नहीं हैं, लेकिन वहां भी 2024 में चुनाव होने की संभावना है.

Undefined
Artificial intelligence लोकतांत्रिक देशों के आम चुनावों में कितना हो सकता है खतरनाक, पढ़ें ये रिपोर्ट 10

इनमें से कई चुनाव उन देशों के लिए बहुत मायने रखते हैं जिन्होंने अतीत में चुनावों को प्रभावित करने की मंशा से सोशल मीडिया पर अभियान चलाए. चीन की ताइवान, इंडोनेशिया, भारत और कई अफ्रीकी देशों के चुनाव पर बारीक नजर रहेगी. रूस सामान्यतः ब्रिटेन, पोलैंड, जर्मनी और यूरोपीय संघ के चुनावों की परवाह करता है जबकि हर किसी की नजरें अमेरिकी चुनाव पर रहती हैं. अमेरिका में वर्ष 2016 से हर आम चुनाव के परिणाम को कोई न कोई देश प्रभावित करने का प्रयास कर रहा है. सबसे पहले सिर्फ रूस था, फिर रूस और चीन जबकि हाल ही में इन दो के अलावा ईरान का नाम भी इस सूची में जुड़ गया. जैसे-जैसे चुनाव में दुष्प्रचार के लिए वित्तीय लागत घटती है, अधिक देश ऐसी कार्रवाई में शामिल हो सकते हैं.

Undefined
Artificial intelligence लोकतांत्रिक देशों के आम चुनावों में कितना हो सकता है खतरनाक, पढ़ें ये रिपोर्ट 11

चैटजीपीटी जैसे उपकरण प्रचार-प्रसार पर आने वाले खर्च को काफी कम कर देते हैं, जिससे यह क्षमता कई और देशों के बजट में आ जाती है। चुनाव में हस्तक्षेप कुछ महीने पहले, मैंने अमेरिका में विभिन्न साइबर सुरक्षा एजेंसियों के प्रतिनिधियों के साथ एक सम्मेलन में भाग लिया था. उन्होंने 2024 के चुनाव में हस्तक्षेप के संबंध में अपनी आशंकाएं जाहिर की थीं. उन्हें रूस, चीन और ईरान के अलावा ‘‘घरेलू तत्वों’’ के भी चुनाव में हस्तक्षेप की आशंका है क्योंकि कम लागत होने से यह आसानी से इनकी पहुंच में आ सकता है.

Undefined
Artificial intelligence लोकतांत्रिक देशों के आम चुनावों में कितना हो सकता है खतरनाक, पढ़ें ये रिपोर्ट 12

निसंदेह, दुष्प्रचार अभियान चलाने में सामग्री उत्पन्न करने के अलावा और भी बहुत कुछ है. सबसे मुश्किल काम इसका प्रसार करना है. ऐसे दुष्प्रचार को सोशल मीडिया पर साझा करने के लिए फर्जी खातों की एक श्रृंखला की आवश्यकता होती है, और इसे मुख्यधारा में बढ़ावा देने के लिए अन्य लोगों की आवश्यकता होती है ताकि यह वायरल हो सके. ‘मेटा’ जैसी कंपनियां इन खातों की पहचान करने और उन्हें हटाने में काफी बेहतर तरह से काम करने में सक्षम हुई हैं. पिछले महीने ही, मेटा ने घोषणा की थी कि उसने चीनी प्रभाव अभियान से जुड़े 7,704 फेसबुक अकाउंट, 954 फेसबुक पेज, 15 फेसबुक समूह और 15 इंस्टाग्राम अकाउंट को हटा दिया है. साथ ही टिकटॉक, एक्स (पूर्व में ट्विटर), लाइवजर्नल और ब्लॉगस्पॉट पर इस तरह के अभियान में शामिल सैकड़ों और अकाउंट की पहचान की है. लेकिन, पहले के दुष्प्रचार के तरीके और एआई के आने के बाद इस तरह के अभियानों का जोखिम बढ़ता दिख रहा है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें