सर्दी की दस्तक के साथ झारखंड के चांडिल डैम में सैलानियों का मन मोहने लगे मेहमान परिंदे, देखिए तस्वीरें
Jharkhand News: सर्दी की दस्तक के साथ झारखंड के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल चांडिल डैम व सरायकेला-खरसावां के जलाशयों में विदेशी पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है. विदेशी परिंदों के कारण डैम के आसपास की फिजा बदल गयी है. सितारामपुर डैम व अन्य कुछ जलाशयों में भी साइबेरियन पक्षी पानी में कलरव कर रहे हैं.
साइबेरियन पक्षियों से चांडिल डैम के प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लग रहा है. सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मेहमान पक्षियों के कलरव और अठखेलियों का विहंगम दृश्य सैलानियों का मन मोह रहे हैं. बार हेडेड गूस, साइबेरियन सिगल, लालशर, हंस, राजहंस, बत्तक, रंग-बिरंगे बगुले, तोते, बघेड़ी सहित अनेक प्रकार के पक्षी झुंड बनाकर आते हैं. इस बार चांडिल डैम में ‘साइबेरियन सिगल’ सबसे अधिक पहुंच रहे हैं. भारत आने के लिए इन पक्षियों को हजारों मील की दूरी तय करनी पड़ती है. कहा जाता है कि ये पक्षी ताजाकिस्तान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान को पार करते हुए भारत आते हैं. ये ऐसे पक्षी हैं जो हवा में उड़ते हैं और पानी में भी तैरते हैं. सफेद रंग के इन पक्षियों की चोंच और पैर नारंगी रंग के होते हैं. इसके अलावा ‘बार हेडेड गूज’ भी चांडिल डैम में डेरा डाल लिया है. कहा जाता है कि ये पक्षी 29 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ान भर सकते हैं. साथ ही एक दिन में 1600 किमी की उड़ान भरने की क्षमता रखते हैं. ये तिब्बत, कजाकिस्तान, रूस, मंगोलिया होते हुए भारत में पहुंचते हैं.
हजारों मील दूरी तय कर प्रवासी साइबेरियन पक्षी यहां आते हैं. ये करीब चार-पांच माह तक रहते हैं. मार्च आते ही स्वदेश लौट जाते हैं. जानकार बताते हैं कि विदेशी साइबेरियन पक्षियों को सरायकेला-खरसावां समेत पूर्वी भारत का हिस्सा खूब भाता है. नवंबर से दिसंबर तक पक्षियों का जमावड़ा लगता है. चांडिल डैम के केज में मछलियों को भोजन के रूप में दिया जानेवाला दाना पक्षियों को खूब भा रहा है. विदेशी पक्षियों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. स्थानीय लोग व सैलानी इन पक्षियों को दाना खिलाते हैं. चांडिल डैम के केज व बड़े पेड़ इनका अस्थायी ठिकाना है. पक्षियों को निहारने व कैमरे में कैद करने के लिए बड़ी संख्या में सैलानी पहुंच रहे हैं. इससे पर्यटन को बढ़ावा व आस पास के लोगों को रोजगार मिल रहा है. झारखंड, बंगाल व ओडिशा के लोग पहुंच रहे हैं. बीएसएमटीसी के वैज्ञानिक डॉ तिरुपम रेड्डी कहते हैं कि सरायकेला-खरसावां समेत पूर्वी भारत के इस हिस्से की आबोहवा साइबेरियन पक्षियों को खूब भाती है. तभी साल दर साल इनके झुंड यहां दस्तक दे रहे हैं. नवंबर के माह में विदेशी साइबेरियन पक्षियों का यहां पहुंचना शुरू होता है. दिसंबर तक यहां बड़े पैमाने पर इन पक्षियों का जमावड़ा लग जायेगा. करीब चार-पांच यहां रहने के बाद यहां विदेशी पक्षियां फिर यहां से चले जाते हैं. वहीं सरायकेला के वन प्रमंडल पदाधिकारी आदित्य रंजन कहते हैं कि सरायकेला-खरसावां जिले में खास कर चांडिल डैम व सितारामपुर डैम के आसपास इन दिनों प्रवासी पक्षियों का पहुंचना शुरू हुआ है. अमूमन देखा जाता है कि दिसंबर तक अलग-अलग प्रजाति के हजारों प्रवासी पक्षी यहां पहुंचते हैं. इन पक्षियों का लोकेशन लिया जा रहा है. इन पक्षियों की सुरक्षा को लेकर विभाग मुस्तैद है. लगातार पेट्रोलिंग की जा रही है.
रिपोर्ट : शचिंद्र कुमार दाश, खरसावां