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Chhath Mahaparv|Chhath Puja|पलामू में बहने वाली कोयल नदी को गंगा के समान पवित्र माना जाता है. नदी में इस बार छठ के दौरान पानी बहुत ज्यादा नहीं है. इसलिए छठ करने वाले व्रती आराम से कुछ दूर तक जाकर समूह में पूजा-अर्चना कर रहे हैं. इस दौरान छठ करने वाले लोगों के घर के लोग भी यहां भारी संख्या में पहुंचे.
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कोयल नदी में नहाने के बाद छठ व्रतियों ने तट पर आकर पूजा की और भगवान भास्कर को नमन किया. कोयल नदी में सीढ़ी बन जाने की वजह से लोगों को ऊपर आकर पूजा करने में काफी सहूलियत हो रही है.
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ऐसे छठव्रती, जो पहले आ गए थे, वे काफी देर तक पानी में खड़े रहे और सूर्य के डूबने का इंतजार किया. जब सूर्यास्त होने लगा, तब उन्होंने पूजा संपन्न किया और उसके बाद अपने-अपने घरों को लौटे.
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सूर्य देव की आराधना के महापर्व छठ का व्रत रखने वाली महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाया. सिंदूर लगाने में वैसी महिलाएं भी शामिल हुईं, जिन्होंने छठ का व्रत नहीं रखा है.
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आमतौर पर पर्व में लाल वस्त्र की महत्ता होती है. लेकिन, छठ पर्व में पीला वस्त्र पहनकर भी लोग पूजा करते हैं. ऐसी ही कुछ महिलाएं पलामू के कोयल नदी के तट पर पहुंचीं थीं, जिन्होंने पीले रंग की साड़ी में सूर्य देवता की पूजा की.
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पलामू प्रमंडल के मुख्यालय मेदिनीपुर में कोयल नदी के तट पर भगवान सूर्य देव को हर साल जल अर्पण करने के लिए छठ व्रतियों की भीड़ उमड़ती है. इस बार भी लोग आ रहे हैं, लेकिन छठ घाट की व्यवस्था सुधर जाने की वजह से बहुत ज्यादा भीड़ नहीं हो रही.
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खरना के दिन नहाने के बाद कुछ महिलाओं ने तट पर ही पूजा-अर्चना की. कुछ ऐसे भी लोग थे, जो अलग वेश-भूषा में आए थे. वह कोयल के तट पर आकर्षण का केंद्र बने हुए थे.
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छठ व्रतियों ने पूरी श्रद्धा के साथ कोयल के तट पर पूजा-अर्चना की और जब सूर्यास्त होने लगा, तब अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पूरी श्रद्धा के साथ अर्घ्य दिया. रविवार को एक बार फिर शाम को लोग कोयल के तट अर्घ्य देने के लिए उमड़ेंगे.
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झारखंड में 19 और 20 नवंबर छठ महापर्व मनाया जा रहा है. 17 नवंबर को नहाय-खाय के साथ इस महापर्व की शुरुआत हुई. 18 नवंबर को खरना के साथ 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा. 19 नवंबर शाम में सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और 20 नवंबर को सुबह के अर्घ्य के साथ छठ महापर्व का समापन होगा.