Jharkhand News: झारखंड में मात्र छह से सात नदियों में 12 महीने पानी की उपलब्धता रहती है. शेष नदियां बरसाती हैं. भूगर्भीय संरचना पथरीली होने के कारण इनमें पानी की उपलब्धता मैदानी क्षेत्रों की मुकाबले कम होती है. राज्य में औसतन 1200-1400 मिमी बारिश होती है. सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, कई जिलों में भूजल का अधिक दोहन हो रहा है. ऐसे में हम बारिश के जल का संरक्षण कर इसका सदुपयोग कर सकते हैं. मानसून के समय अधिक बारिश होने पर जल्द ही डैम का पानी खतरे के निशान पर पहुंच जाता है. इसके बाद डैम का फाटक खोल कर पानी को बहा दिया जाता है. अगर डैमों से गाद निकाल दिया जाये, तो हम एक से दो वर्षों तक पेयजल आपूर्ति लायक पानी बचा सकते हैं.
कोडरमा जिला अंतर्गत मरकच्चो प्रखंड के पंचखेरो जलाशय व डोमचांच प्रखंड के केशो जलाशय का शिलान्यास 1984-85 में किया गया था. वर्ष 2013-14 में पंचखेरो जलाशय का निर्माण पूरा हो गया. पंचखेरो जलाशय निर्माण के बाद भी किसानों को इससे पटवन की सुविधा पूर्ण रूप से नहीं मिल पायी. डैम से निकली दोनों नहर में लीकेज होने के कारण डैम से सालों भर पानी बह कर बर्बाद होता रहता है. जिससे सैकड़ों एकड़ खेत में दलदल बने रहने से उन पर खेती नहीं हो पाती है. हालांकि विभाग का दावा है कि दोनों नहरों से 500 हेक्टेयर में खेती के लिए पानी दिया जा रहा है. नव निर्मित डैम में सफाई नहीं की गयी है. क्योंकि रिवर क्लोज में ज्यादा दिन नहीं होने से डैम में गंदगी जैसी बात नहीं है.
फिलहाल अतिक्रमण से मुक्त है डैम एरिया
डैम एरिया किसी भी तरह के अतिक्रमण से मुक्त है. डैम के नहरों में मिट्टी भर जाने और लीकेज रहने से किसान खेती के लिए डैम के पानी का लाभ नहीं ले पा रहे हैं. डैम के नहरों की गंदगी साफ कराने, डैम के लीकेज को ठीक कराने, किसानों की सुविधा के लिए चानो व पडरिया नये नहर निर्माण आदि के लिए मंत्री परिषद से 175 करोड़ राशि की स्वीकृति मिली है. भविष्य में डैम के पानी से मरकच्चो बहु ग्रामीण जलापूर्ति योजना और गिरिडीह जिले की गोरहंद बहु ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत लगभग एक सौ गांवों को पेयजल आपूर्ति करायी जायेगी.
लातेहार जिला मुख्यालय के उत्तर दिशा में स्थित ललमटिया डैम रखरखाव के अभाव बदहाल होता जा रहा है. लघु सिंचाई विभाग द्वारा बनाये गये इस डैम से शहर की लगभग पांच सौ एकड़ में जमीन सिंचित होती थी. लेकिन ललमटिया डैम से निकले कैनाल व फाटक की मरम्मत नहीं होने से सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गयी है. डैम का निर्माण अस्सी के दशक में हुआ था. प्रारंभ में ललमटिया व रेहड़ा गांव तक सिंचाई होती थी. लेकिन कुछ साल बाद इसके कैनाल का निर्माण किया गया. उसके बाद बानपुर, अमवाटीकर समेत कई मोहल्लों के खेतों तक सिंचाई होने लगी थी. दो साल पूर्व डीएमएफटी की राशि खर्च कर इसका सुंदरीकरण किया गया. डैम के आस-पास कई तरह के झूले और बैठने के लिए बेंच भी बनाने गये, जो बेकार हो गये. ओपने जिम के कई उपकरणों की चोरी कर ली गयी. धीरे-धीरे डैम का अतिक्रमण होता जा रहा है.
पलामू के सतबरवा के मुरमा गांव स्थित मलय डैम तीन प्रखंड क्षेत्र मेदिनीनगर सदर, लेस्लीगंज और सतबरवा के 105 गांव (आंशिक) के किसानों की लाइफलाइन मानी जाती है. इससे किसानों को खेतों में हरियाली तथा घरों में खुशहाली आया करती है. लेकिन इस वर्ष मौसम की दगाबाजी के कारण मलय डैम के लाभुक क्षेत्र के किसान काफी निराश हैं. डैम का पानी जीरो लेवल पर पहुंच गया है. किसानों को आशंका है कि कहीं इस वर्ष भी सूखा नहीं पड़ जाये और उन्हें नुकसान देखना पड़ जाये.
जीरो लेवल पर है डैम का पानी
किसानों ने कहा कि हालांकि अभी तक मलय डैम की स्थिति ठीक नहीं है. डैम में पानी जीरो लेवल पर है. लेकिन, हमें आशा है कि बारिश होगी तथा डैम में पानी जमा होने के साथ-साथ किसानों के खेतों में भी धान की रोपाई होगी. मलय डैम में पानी संग्रह करने की क्षमता 43.09 फीट की है. इतना पानी होने के बाद स्वत: स्पिलवे से पानी का बहाव शुरू हो जाता है. फिलहाल डैम में पानी का लेवल जीरो है.
हजारीबाग जिले के कटकमसांडी और कटकमदाग प्रखंड में दो डैम हैं. इनमें कटकमसांडी प्रखंड में छड़वा डैम और कटकमदाग प्रखंड में गोंदा डैम है. छड़वा डैम का निर्माण 1952 में हुआ है, जबकि गोंदा डैम का निर्माण 1954 में हुआ है. छड़वा डैम के कुछ भाग में एक बार 2014 में साफ-सफाई और गहरीकरण का कार्य हुआ है, जबकि गोंदा डैम की साफ-सफाई व गहरीकरण निर्माण अवधि से लेकर आज तक नहीं हुआ है. दोनों डैम का दायरा निर्माण के बाद से घटा है. लोगों ने डैम के कुछ भाग में खेती और अतिक्रमण कर घर भी बनाये हैं. वर्तमान में छड़वा डैम में 20 फीट पानी है, जबकि 31 फीट पानी की क्षमता है. वहीं गोंदा डैम में लगभग 13 फीट पानी बचा है.
धनबाद के निरसा स्थित डीवीसी के मैथन डैम के गाद की सफाई विभागीय रूप से वर्षों से नहीं हो सकी है. मैथन-धनबाद जलापूर्ति योजना की पाइपलाइन को लेकर इंटेकवेल के समक्ष कोरोना काल में डीवीसी प्रबंधन, एमपीएल व जिला प्रशासन ने संयुक्त रूप से सफाई करायी थी. लेकिन गाद की सफाई नहीं होने से डैम के जल स्तर पर प्रभाव पड़ रहा है. ज्ञात हो कि मैथन डैम से झारखंड क्षेत्र में केवल मैथन से धनबाद तक जलापूर्ति के लिए पाइपलाइन के माध्यम से पानी की सप्लाई होती है. वहीं पश्चिम बंगाल में आसनसोल, वर्द्धमान और दुर्गापुर बराज को सिंचाई व जलापूर्ति के लिए पानी भेजा जाता है.
धनबाद जिला अंतर्गत झरिया वाटर बोर्ड डैम यानी तोपचांची डैम का निर्माण 1915 से 1924 तक 559 हेक्टेयर व छह किमी की परिधि में किया गया. झील की गहराई निर्माण के समय 72 फीट थी. 99 साल उम्र की इस झील की निर्माण के बाद भलीभांति सफाई कभी नहीं करायी गयी. इस कारण इसकी जल संग्रह की क्षमता लगातार घटती जा रही है. 30 फीट तक गाद जमा है. झील के निर्माण का मकसद धनबाद, झरिया और कतरास तक शुद्ध पानी पहुंचाना था. जिसे पहुंचाया भी गया. 95 वर्षों के बाद विभाग ने मिट्टी कटाई करायी भी, लेकिन गाद की सफाई नहीं हो सकी.
बोकारो जिला अंतर्गत बेरमो अनुमंडल मुख्यालय तेनुघाट में सिंचाई विभाग द्वारा निर्मित तेनुघाट डैम की लंबाई सात किमी है. झारखंड में मॉनसून की बेरुखी का असर इस डैम पर भी पड़ा है. फिलहाल वर्षा नहीं होने से डैम में पानी जमा नहीं हो रहा है. डैम के अंदर सिलटेशन के कारण भी जलस्तर घटता जा रहा है. जानकारी के अनुसार, हर साल जून-जुलाई के महीने में पानी से भरे इस डैम में जलस्तर काफी बढ़ जाने से डैम के एक-दो गेट को खोलना पड़ता था. लेकिन इस बार जुलाई माह समाप्त होने को है और जलस्तर घट रहा है.
तेनुघाट डैम पर बेरमो की बड़ी आबादी है निर्भर
तेनुघाट डैम पर बेरमो अनुमंडल की बड़ी आबादी पेयजल के लिए निर्भर है. बेरमो अनुमंडल की 19 पंचायतों में मेघा जलापूर्ति योजना के तहत इसी डैम से शुद्ध जल जाता है. इसके अलावा पेटरवार सहित अन्य कई जगहों में भी पाइपलाइन के द्वारा जलापूर्ति की जाती है.