World Tourism Day 2023: झारखंड में बन रहा दो टूरिस्ट सर्किट, इन जलप्रपातों और मंदिरों को किया गया सिलेक्ट
झारखंड केवल जल, जंगल, पहाड़, नदी और नाला के लिए ही पर्यटकों की पसंद नहीं है. यह धार्मिक टूरिज्म के लिहाज से भी बहुत महत्वपूर्ण है. जो भी व्यक्ति एक बार झारखंड आ जाता है, उसे यहां की आबोहवा इतनी पसंद आ जाती है कि वह या तो यहीं बस जाता है या बार-बार आता है.
रांची, जितेंद्र कुमार : हर साल 27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस (World Tourism Day) मनाया जाता है. यह पर्यटन को बढ़ावा देने और इसके महत्व को समझने के लिए मनाया जाता है. बात करें झारखंड की तो यह केवल जल, जंगल, पहाड़, नदी और नाला के लिए ही पर्यटकों की पसंद नहीं है. यह धार्मिक टूरिज्म के लिहाज से भी बहुत महत्वपूर्ण है. अब राजधानी रांची के आसपास के क्षेत्र में दो पर्यटन सर्किट के निर्माण की दिशा में राज्य सरकार काम कर रही है. पर्यटन विभाग ओरमांझी चिड़ियाघर, गेतलसूद डैम, हुंडरू फॉल, जोन्हा फॉल और सीता फॉल को एक पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित करने की दिशा में योजनाबद्ध तरीके से काम कर रही है. वहीं, गेतलसूद, सिकिदिरी घाटी व रजरप्पा मां छिन्नमस्तिका मंदिर को दूसरा पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित किया जा रहा है. पर्यटन विभाग ने उक्त योजना के लिए उपायुक्त रांची, डीएफओ रांची सहित सीओ अनगड़ा व ओरमांझी को दिशा निर्देश दिया है. विभिन्न निर्माण के लिए भूमि चिन्हित करने का निर्देश दिया गया है. पर्यटन सचिव मनोज कुमार दोनों पर्यटन सर्किट निर्माण करने के लिए स्वयं सक्रिय हैं, उनके द्वारा स्थल निरीक्षण भी किया गया है.
पर्यटन विभाग के अनुसार यह क्षेत्र पतरातू की तरह एक बड़ा पर्यटन स्थल बन सकता है. यह बी श्रेणी का पर्यटन स्थल के रूप में अधिसूचित है. जोन्हा फॉल व हुंडरू फॉल में पर्यटकों के रात्रि विश्राम की व्यवस्था, रोपवे, कल्ब, रेस्टोरेंट, खेल का मैदान, जलपान कक्ष आदि बनेगा. टूरिस्ट सर्किट बनाने में वन विभाग से भी अपेक्षित सहयोग की मांग की गई है. सरकार का मानना है कि यह क्षेत्र पर्यटन उद्योग का रूप ले सकता है, जिसमें सिर्फ झारखंड ही नहीं बंगाल, बिहार, ओडिशा व छत्तीसगढ़ से भी बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचेंगे. जिससे राज्य के राजस्व में वृद्धि होगी. साथ ही स्थानीय लोग रोजगार से जुड़ सकेंगे. इधर, सिल्ली विधायक सुदेश महतो ने सरकार से सुरसू घाटी को भी टूरिस्ट सर्किट में जोड़ने की मांग की है. कहा है कि सुरसु घाटी की सुंदरता अदभुत है, पर्यटन सुविधा बढ़ने से पर्यटकों की पहली पसंद सुरसु घाटी होगी.
सरकार के द्वारा इस ओर ध्यान दिया गया तो जोन्हा फॉल (Johna Fall) को राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल सकती है. बौद्ध धर्म के एक केंद्र के रूप में इसकी पहचान बन सकती है. उल्लेखनीय है कि विधानसभा के युवा कल्याण, संस्कृति एवं पर्यटन विकाश समिति ने विगत वर्ष क्षेत्र में पर्यटन के विकास को लेकर पर्यटन, वन, पथ निर्माण, ग्रामीण कार्य, पेयजल, ग्रामीण विकास, भु राजस्व समेत रेलवे के अधिकारियों के साथ बैठक किया था. इस दौरान पर्यटन के विकास की संभावनाओं को तलाशा गया.
समिति के तत्कालीन अध्यक्ष सुदेश महतो ने कहा कि जोन्हा फॉल, सीता फॉल, सुरसु घाटी, हुंडरू फॉल, छोटा हूंडरू, चुंदरी फॉल, गेतलसुद डैम सहित इस समुचे क्षेत्र में पर्यटन के विकास की आपार संभावना है. इससे राज्य को राजस्व के साथ साथ क्षेत्र के युवाओं को रोजगार प्राप्त होगा. इस क्षेत्र को इको कम्युनिटी टूरिज्म के रूप में विकसित किया जाएगा. इसके लिए आम लोगों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाएगी. इन स्थलों के आसपास के इलाके के ग्रामीण व विभिन्न सरकारी विभागों के संयुक्त प्रयास से उक्त पर्यटन स्थलों को विकसित की जाएगी. क्षेत्र को पर्यावरण युक्त इकोनॉमिक जोन बनाने की योजना है.
बताया गया कि पर्यटन सर्किट बनाने के लिए सबसे पहले उच्चस्तरीय सड़कों का निर्माण कराया जा रहा है, इसके बाद गेतलसूद डैम क्षेत्र में रिसॉर्ट, नाव सेड, होटल, होलीडे केबिन, हाउस बोर्ड, दूकान आदि का निर्माण किया जायेगा. आधारभूत संरचनाओं का विकास भौगोलिक संरचना के अनुसार करने, युवाओं को पर्यटन से जोड़कर उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने, फिल्म सिटी निर्माण, दूरबीन पॉइंट, रोपवे निर्माण, फूलों व बगीचों के घाटी का निर्माण, विभिन्न जगहों के लिए प्रवेश द्वार के निर्माण, प्लास्टिक और थर्मोकोल के खिलाफ जन जागरूकता अभियान, पर्यटन स्थलों के भ्रमण के लिए शटल सेवाओं सहित जंगल सफारी, पार्किंग एरिया, जोन्हा थाना निर्माण, पिकनिक प्लेटफार्म, सीता व गौतमबुद्ध मंदीर के जीर्णोध्दार सहित विभिन्न विषयों पर चर्चा किया गया.
रांची से 38 किमी दूर गौतम पहाड़ी पर स्थित जोन्हा फॉल में बौद्ध धर्म के कई चिन्ह मौजूद है. जोन्हा फॉल की पहाड़ी पर भगवान गौतम बुद्ध का एक प्राचीन मंदिर स्थित है. इस मंदीर का निर्माण सैकड़ों साल पहले राजा बलदेव दास बिड़ला के द्वारा कराया गया था. भगवान बुद्ध के इस मंदीर का निर्माण पहाड़ को खोदकर उसके बीचों बीच कराया गया था. जोन्हा फॉल में बौद्ध धर्म से संबंधित कई प्राचीन शिलालेख साक्षात है. इन शिलालेखों में हिंदू एवं बौद्ध को आर्य धर्म की दो शाखाएं बताई गई है. स्थानिय ग्रामीणों का कहना है कि बिड़ला परिवार के द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के दौरान जोन्हा फॉल में मुख्य मार्ग के किनारे मंदीर एवं धर्मशाला का भी निर्माण कराया गया था. स्थानिय ग्रामीण भगवान बुद्ध के मंदीर में प्रतिदिन पूजा अर्चना करते हैं. उनका मानना है कि भगवान गौतम बुद्ध कभी यहां आए थे, उनके नाम पर ही इस फॉल का नाम गौतमधारा पड़ा था. गौतमधारा जोन्हा फॉल का ही पुराना नाम है.