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Lata Mangeshkar in Agra: देश की स्वर कोकिला स्वर्गीय लता मंगेशकर का आगरा से भी गहरा नाता रहा है. आपको बता दें लता मंगेशकर आगरा में करीब 41 साल पूर्व 1981 में ताजमहल का दीदार करने आई थी. आगरा के प्रसिद्ध छायाकार स्वर्गीय सत्यनारायण गोयल के परिजनों ने उनकी कुछ पुरानी तस्वीरें साझा की.
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आगरा स्पीड कलर लैब के संजय गोयल ने बताया कि स्वर्गीय लता मंगेशकर ने आखिरी बार आगरा के मुगल होटल में एक आयोजन के दौरान मीडिया से मुलाकात की थी. वहीं उन्होंने आगरा में प्यार की निशानी ताजमहल का दीदार भी किया था. उनके साथ इस दौरान उनकी बहन गायिका आशा भोंसले भी मौजूद थी. इससे पहले, वह आगरा में 1965 में आई थी और शहर के कई स्मारकों का भ्रमण किया था. गोयल बताते हैं कि उस समय भी लता जी की इतनी फैन फॉलोइंग थी कि उन्हें देखने के लिए सड़कों पर भीड़ लग जाती थी.
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आगरा के नामनेर निवासी राम मोहन दुबे उस समय मुंबई में थे और रितिक रोशन के बाबा रोशनलाल की म्यूजिक कंपनी में असिस्टेंट डायरेक्टर थे. राम मोहन के अनुसार इस दौरान डायरेक्टर ने उन्हें ‘आजा रे तेरा एक सहारा, यहां मेरा कोई नहीं’ गीत के बोल सुनाए और संगीत तैयार करने को बोला. इसके बाद जब उन्होंने संगीत तैयार किया तो डायरेक्टर ने धुन को पसंद किया और उन्हें लता मंगेशकर को जा कर सुनाने को कहा, मैं उस समय मात्र 19 वर्ष का था और सबसे छोटी उम्र का म्यूजिक डायरेक्टर था. उस समय लता मंगेशकर और रफी साहब के आगे बड़े-बड़े डायरेक्टर कुछ बोलने से पहले 10 बार सोचते थे.
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राम मोहन दुबे ने बताया कि मैं जब उनके घर पहुंचा और वह मेरे सामने आई तो मैं घबरा गया. और मेरे गले से आवाज निकलना बंद हो गई. मेरे हाथ हारमोनियम पर कांपने लगे. जिसके बाद मेरी अवस्था को समझकर लता जी ने मुझसे कहा कि आप लोग हम गायकों के गुरु हैं. बिना आपके गीत गाना हमारे लिए संभव नहीं है. इसके बाद उन्होंने हमें धुन बताई. उन्होंने बताया कि कई बार उन्होंने लता जी के साथ काम किया. वह गाना गाते समय साथी म्यूजिक टीम के लोगों का चेहरा देखकर समझ जाती थी कि गाने में कोई कमी है या सही है.
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राम मोहन दुबे ने बताया कि लता मंगेशकर अधिकतर वृंदावन बिहारी जी के दर्शन के लिए आया करती थी. आगरा के सेंट जॉन्स क्रॉसिंग के पास सिंधी समाज के पास आशूदा राम नामक उनके एक फैन रहते थे. लता जी जब भी वृंदावन आती थी तो उनके घर पर जरूर आती थीं और भोजन व रात्रि विश्राम भी करती थीं. उस समय वह अगर किसी होटल में रुक जाती तो होटल वाला उसे अपना सौभाग्य समझता था. 60 साल के बाद वह उस परिवार के पास नहीं आई और अब उस परिवार की भी कोई जानकारी नहीं है.
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आगरा के वरिष्ठ गीतकार और राष्ट्रीय स्तर के कवि सोम ठाकुर ने बताया कि 1972 में फिल्म मेरे भैया के लिए लिखे गए गीत ‘पिया के घर जाना है’ को लता जी ने अपनी आवाज देकर अमर कर दिया. राम मोहन दुबे ने बताया कि उस समय गीतों में भावनाओं का खेल होता था.
फोटो रिपोर्ट- राघवेंद्र सिंह गहलोत, आगरा