![ओडिशा रेल हादसा: कांपती रूह से अपनों की तलाश! मुर्दाघरों में लगे लावारिस शवों के ढेर 1 Undefined](https://cdnimg.prabhatkhabar.com/wp-content/uploads/Prabhatkhabar/2023-06/53c237a4-57a0-41d7-ae3c-d7abdf681cd2/04061_pti06_04_2023_000044b.jpg)
हादसे के बाद उसके निशान इंसानी रूह को कंपा देते है. ओडिशा के बालासोर ट्रेन हादसे के बाद का दृश्य हर किसी को विचलित कर रहा है. मुर्दाघरों में ऐसे शवों का ढेर लगा है, जिनकी अब तक शिनाख्त नहीं हो पायी है. वहीं, बड़ी संख्या में बदहवाश लोग सफेद चादरों से ढकी हर एक लाश का चेहरा खोलकर अपनों को पहचानने की कोशिश कर रहे हैं. कोई अपने माता-पिता, तो कोई अपने बच्चे, तो कोई अपने रिश्तेदार को ढूंढ़ रहा है.
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इस बीच खबर है कि मुर्दाघरों में ऐसे शवों के ढेर लग गये हैं, जिनकी अब तक शिनाख्त नहीं हो पायी है या जिन्हें लेने के लिए कोई दावेदार सामने नहीं आया है. ऐसे लावारिस शवों की संख्या इतनी अधिक है कि मुर्दाघरों में जगह कम पड़ गयी है. सरकार ने बालासोर से 187 शवों को भुवनेश्वर भिजवाया, लेकिन यहां भी जगह की कमी होने से परेशानी खड़ी हो गयी है. रविवार देर रात रेस्टोरेशन की जानकारी देते हुए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव रो पड़े.
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एम्स के एक अधिकारी ने कहा कि यहां अधिकतम 40 शवों को रखने की ही सुविधा है. प्रशासन ने शवों की पहचान होने तक उन्हें संभालकर रखने के लिए ताबूत, बर्फ और फार्मलिन रसायन खरीदा है.
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बालासोर जिले के बाहानगा बाजार क्षेत्र में हुए भीषण रेल हादसे में जीवित बचे राज्य के 137 यात्री रविवार को भद्रक से एक विशेष ट्रेन से चेन्नई पहुंचे. उनमें से 36 यात्रियों का मेडिकल परीक्षण किया गया जिनमें तीन यात्रियों को राजीव गांधी सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया जबकि मामूली रूप से घायल लोगों को इलाज के बाद घर भेज दिया गया.
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कारोबारी गौतम अदाणी ने ओडिशा में हुए रेल हादसे को बेहद विचलित करने वाला बताया. उन्होंने इस हादसे में अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चों को मुफ्त स्कूली शिक्षा देने की पेशकश की. एक ट्वीट में कहा कि पीड़ितों और उनके परिवारों की मदद करना व बच्चों को बेहतर कल देना सभी की जिम्मेदारी है.
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बालासोर ट्रेन हादसे के बाद पटरियों पर मुसाफिरों का सामान इधर-उधर फैला पड़ा है. पटरियों के बीच एक डायरी भी पड़ी है…. हवा के साथ डायरी के पन्ने फड़फड़ाते हैं….पन्नों पर किसी के लिए, किसी ने पैगाम ए मुहब्बत लिखा था. अब हादसे के बाद ये पैगाम उस तक कभी नहीं पहुंच पायेगा, जिसके लिए बांग्ला में किसी ने अपने हाथ से ये कविताएं लिखी थीं. डायरी के एक फटे पन्ने पर एक तरफ हाथियों, मछलियों और सूरज के रेखा चित्र बने हैं. सफर में किसी यात्री ने खाली वक्त में इन्हें लिखा होगा. हालांकि इस मुसाफिर की पहचान अब तक पता नहीं हो सकी है. कविता कुछ इस तरह से है, ‘ अल्पो अल्पो मेघा थाके, हल्का ब्रिस्टी होय, चोटो चोटो गोलपो ठेके भालोबासा सृष्टि होय” (ठहरे ठहरे बादलों से बरसती हैं बूंदे, जो हमने तुमने सुनी थी कहानियां, उनमें खिलती हैं मुहब्बत की कलियां).
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ट्रेन हादसे में पश्चिम बंगाल के दो भाई मोनोतोष और संतोष मंडल भी जख्मी हुए. उनका मानना है कि भगवान ने उन्हें दूसरी जिंदंगी दी है. दोनों शुक्रवार की शाम को शालीमार से केरल जाने के लिए कोरोमंडल-एक्सप्रेस ट्रेन में सवार हुए थे, जहां उन्हें नौकरी की पेशकश की गयी थी. दोनों कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल में एडमिट हैं.