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श्रावणी मेला चरम उत्साह पर है. प्रसिद्ध शिव मंदिरों के निकट कांवरियों की उमड़ी भीड़, आस-पास लगी दुकानें और 24 घंटे भक्तों की चहलकदमी का विहंगम दृश्य पूरे इलाके को भक्तिमय बना रहा है. झारखंड के सबसे बड़े तीर्थस्थल देवघर से ठीक 40 किमी दूर स्थित एक अन्य धार्मिक स्थल है जो सावन महीने में शिवभक्तों का दूसरा केंद्रबिंदु है. बासुकीनाथ में भी खूब भक्तों की भीड़ उमड़ती है.
ऐसी मान्यता है कि बासुकीनाथ में पूजा किये किये बिना सिर्फ देवघर मंदिर की पूजा अधूरी है. बासुकीनाथ देवघर-दुमका मुख्य पर पर है और देवघर से अधिक से अधिक एक घंटे में पहुंचा जा सकता है. ये दोनों जगहें सीधी रेल सेवा से भी जुड़ी हैं, इसलिए जाने में दिक्कत नहीं होती. सावन मेले के दौरान तो चौबीसों घंटे देवघर से बासुकीनाथ के लिए बस हर मिनट-दो मिनट पर मिलती है.
ऐसी मान्यता है कि बासुकीनाथ मंदिर में मांगी गयी मुराद जल्द पूरी होती है. एक मिथक के मुताबिक देवघर मंदिर में जहां श्रद्धालुओं के ‘दीवानी मुकदमों’ की सुनवाई होती है वहीं बासुकीनाथ में ‘फौजदारी मुकदमों’ की. इसका मतलब यही हुआ कि बासुकीनाथ मंदिर में बैद्यनाथ मंदिर की तुलना में मुराद जल्द पूरी होती है. मंदिर में स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है. इसके इतिहास का संबंध नोनीहाट के घाटवाल से जोड़ा जाता है.