पलामू, सैकत चटर्जी. पलामू में रंगमंच का पुराना और गौरवशाली इतिहास रहा है. न सिर्फ शहरी बल्कि पलामू में रंगमंच भी काफी समृद्ध रहा है. जिस तरह समय के साथ हर विधा में बदलाव आया है उसी तरह पलामू में भी रंगमंच पर समय के साथ हुए बदलाव के कई प्रभाव पड़े है. कहीं इसका प्रभाव नकारात्मक रहा है तो कहीं सकारात्मक भी है. एक तरफ जहां आधुनिकता के प्रभाव से ग्रामीण रंगमंच सिमट गया है वहीं शहरी रंगमंच पर हो रही प्रस्तुतियां महंगे हो गए है. एक समय पलामू में नटराज कला केंद्र, इप्टा, मेलोडी, संस्कार भारती, युगसूत्र आदि कई संस्थाए थी जो नाटक करती थी. अब सिर्फ इप्टा, मासूम और सवेरा कला मंच ही रंगमंच पर सक्रिय है. विश्व रंगमंच दिवस पर प्रभात खबर ने पलामू के कुछ रंगकर्मियों से बात कर उनके अनुभवों के आधार पर यह रिपोर्ट प्रस्तुत कर रही है.
अभाव के दिनों में भी पलामू में होते रहे है सशक्त मंचन: टीएन वर्मा
70 से 80 के दशक में पलामू के रंगमंच पर एकछत्र राज करने वाले त्रिभुवन नाथ वर्मा अब अपने बढ़ते उम्र के कारण सक्रिय रंगमंच से दुरी बना ली है पर पलामू के रंगमंच का जिक्र आते ही उनकी आंखे चमक उठती है. उन्होंने प्रभात खबर से कहा कि जब कलाकार अपने जेब से पैसा लगाकर नाटक करते थे उस अभाव के समय में भी पलामू में सशक्त प्रस्तुतियां हुई. अब के समय के युवाओं ने रंगमंच को एक अच्छे मुकाम पर पहुंचाया है. अब पलामू में महंगी प्रस्तुतियां भी हो रही है. यह अच्छी बात है. उन्होंने कहा कि पलामू में नुक्कड़ नाटकों का काफी सशक्त इतिहास रहा है. यहां स्वामी अग्निवेश, महाश्वेता देवी जैसे शख्सियतों का भी नाटक को सशक्त बनाने में योगदान रहा है. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय के कलाकारों को शुभकामनाएं है कि वे अपनी परंपरा को आज भी निभा रहे है. टीएन वर्मा ने कहा कि जिस तरह भोजन में नमक की जरुरत है उसी तरह जीवन में नाटक की आवश्यकता है.
पलामू के रंगकर्मी सच बोलने से डर रहे है : पुलिन मित्र
पलामू के जाने माने रंगकर्मी और नाट्य निर्देशक पुलिन मित्र मानते है कि पलामू में कहीं का कहीं रंगकर्मी सच बोलने से डर रहे है. इसलिये यहां अच्छी और बेलेंस स्क्रिप्ट निकल कर नहीं आ रही है. इसीलिए अच्छी प्रस्तुतियों में भी कमी आयी है. उन्होंने कहा कि पलामू में प्रारम्भ से ही रंगमंचीय प्रत्स्तुतियों में वामपंथी विचारधाराओं का बोलबाला रहा है और अभी भी कमोबेश यही चल रहा है. इससे बाहर निकल कर नाटक को आधुनिक तकनीकों से सजा कर वर्तमान समय के अनुसार विचार और घटनाओं का समावेश वाले स्क्रिप्ट की प्रस्तुतिया करनी होगी. तभी यहां का रंगमंच सशक्त हो पायेगा.
पलामू का रंगमंच आज देश के हर कोना में जाना जाता है : विनोद पांडेय
पलामू के स्थापित नाट्य संस्था मासूम आर्ट ग्रुप के अध्यक्ष व वरीय रंगकर्मी विनोद पांडेय कहते है कि पलामू का रंगमंच आज देश के हर कोना में जाना जाता है. यह पलामू के रंगकर्मियों के निष्ठा, ईमानदार प्रयास और सशक्त प्रस्तुतियों के लिए ही संभव हो पाया है. उन्होंने कहा कि पलामू में सबसे पहले बंगीय दुर्गा बाड़ी और नटराज कला केंद्र नाटक के क्षेत्र में कलाकारों को सहारा दिया तो बाद के दिनों में इप्टा और मासूम आर्ट ग्रुप ने इसे संवारा. विनोद पांडेय ने कहा कि इप्टा आज भी आम आदमी के आवाज को, उनकी पीड़ा को कला के माध्यम से जन-जन तक पंहुचा रही है तो दूसरी तरफ मासूम रंगमंच में लगातार प्रयोग के माध्यम से इसे राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने का काम कर रही है.
पलामू के रंगकर्मी आज भी क्रान्तिकारी है : उपेंद्र मिश्रा
इप्टा के राष्ट्रीय रंगकर्मी उपेंद्र मिश्रा का मानना है कि पलामू का रंगमंच हमेशा उसके तेवर और सन्देश के लिए जाना जाता रहा है. आज भी यहां के रंगकर्मी क्रन्तिकारी तेवर के है. उन्होंने कहा कि लोग अक्सर नाटक में सरकारी सहयोग न होने का रोना रोते है. यह एक हद तक सच भी है, पर यह भी सच है कि नाटक वहीं फलता-फूलता, संवरता है जहां संघर्ष होता है. पलामू का रंगमंच भी बागी तेवर का है. उन्होंने स्वीकार किया कि इप्टा पिछले कुछ वर्षो से पलामू में रंगमंच पर कम और नुक्कड़ नाटकों में अधिक सक्रिय रही. आने वाले दिनों में इप्टा का योगदान पलामू के रंगमंच पर भी हो इसके लिए काम किया जाएगा.
युवाओं का नाटक से रुझान अच्छा संकेत है : रविशंकर
इप्टा के ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य व युवा रंगकर्मी रविशंकर पलामू के एक सशक्त रंगकर्मी है. रंगकर्मी के अलावे आयोजन में भी माहिर रवि प्रभात खबर से कहा कि पलामू में युवाओं का रुझान नाटकों से होना अच्छा संकेत देता है. उन्होंने कहा कि यह ये दर्शाता है की हम सही दिशा की ओर बढ़ रहे है. युवाओं के आने से रंगमंचीय गतिविधियों में शिथिलता नहीं आएगी और ये निरंतर गतिशील रहेगा. उन्होंने आगे जोड़ा कि पलामू में रंगमंचीय सुविधायें नहीं होने के बाद भी संस्थाए लगातार अच्छी प्रस्तुति कर रहे है. अगर सरकार नाटक के लिए सिर्फ एक रंगमंच की सुविधा बहाल कर दे तो पलामू का रंगमंच और भी अच्छे से निखर कर सामने आएगा.