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40 Years of Prabhat Khabar : पशुपालन घोटाले का 1992 में किया था पर्दाफाश, पढ़िए बिहार-झारखंड समेत देश को झकझोर देने वाली रिपोर्ट

40 Years of Prabhat Khabar : उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक मई 1984 में दुग्ध आपूर्ति-सह गव्य प्रक्षेत्र, होटवार रांची के महाप्रबंधक ने दिनांक 7-5-84 को संख्या 513 के माध्यम से मेसर्स जयसवाल स्टोर्स, रातू रोड, रांची को विशेष दूत के माध्यम से चिनिया बादाम की खल्ली आपूर्ति के संबंध में एक आदेश भेजा था. यह आदेश हस्तलिखित था. लेकिन हस्तलिखित आदेश और टाइप किए हुए आदेश में राशि में बड़ा फर्क था. हाथ से लिखे हुए आदेश में पांच हजार और टाइप किए हुए आदेश में पचास हजार लिखा था.

40 Years of Prabhat Khabar : प्रभात खबर की स्थापना के 40 साल पूरे हो गए हैं. 14 अगस्त 1984 को प्रभात खबर का सफर शुरू हुआ था. यह सफर आसान नहीं था, कई चुनौतियां भी आईं और प्रभात खबर उनसे निपट कर आगे भी बढ़ा. रांची जैसे छोटे शहर में जन्मा अखबार आज अगर राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान रखता है, तो इसके पीछे वजह है टीम वर्क और संघर्ष से पीछे ना हटने का जज्बा. प्रभात खबर की स्थापना के 40वें सालगिरह पर हम याद कर रहे हैं उन चुनौतियों और संघर्षों को जिनसे निपटकर प्रभात खबर आगे बढ़ा और प्रिंट की दुनिया में धाक जमाने के बाद रेडियो और डिजिटल मीडिया की दुनिया में भी स्थापित हो चुका है. प्रभात खबर परिवार के लिए अगस्त का महीना बहुत खास है. इस महीने की शुरुआत के साथ ही हम उन खास रिपोर्ट और अभियानों को भी याद करेंगे, जिनकी बदौलत मीडिया जगत में प्रभात खबर की साख बनीं, तो शुरु करते हैं भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान से. प्रभात खबर ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सफल अभियान चलाया और देश के बहुचर्चित पशुपालन घोटाले का पर्दाफाश भी किया था.

प्रभात खबर ने किया कई भ्रष्टाचार का खुलासा

1992 में पहली बार पशुपापालन घोटाला को सामने लाने का श्रेय प्रभात खबर को ही जाता है. राष्ट्रीय स्तर पर 1995-96 में इस घोटाले को पहचाना गया.पहचाना गया. तत्कालीन बिहार और अब झारखंड में हो रहे भ्रष्टाचार को सामने लाने का कार्य प्रभात खबर करता आया है. प्रभात खबर ने अपने इन्हीं कार्यों की वजह से अलग पहचान बनाई, तो आज चर्चा पशुपालन घोटाले की. 

15 फरवरी 1992 : कैसे होता है पशुपालन विभाग में घपला

Corruption
15 -फरवरी 1992 के अखबार की कटिंग

पशुपालन विभाग में किस तरह कागज पर हजार की जगह हजारों की कमाई होती है, इसके दृष्टांत आपके सामने हैं. इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि 10 हजार रुपए के के आपूर्ति आदेश को किस तरह कागज पर एक लाख रुपए का बना दिया. स्वाभाविक है, इसका भुगतान भी उठा लिया गया होगा और आपूर्ति! यह तो अधिकारी ही जानें.

उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक मई 1984 में दुग्ध आपूर्ति-सह गव्य प्रक्षेत्र, होटवार रांची के महाप्रबंधक ने दिनांक 7-5-84 को संख्या 513 के माध्यम से मेसर्स जयसवाल स्टोर्स, रातू रोड, रांची को विशेष दूत के माध्यम से चिनिया बादाम की खल्ली आपूर्ति के संबंध में एक आदेश भेजा था. 

हस्तलिखित आदेश और टाइप किए हुए आदेश में बड़ा फर्क था

यह आदेश हस्तलिखित था. लेकिन हस्तलिखित आदेश और टाइप किए हुए आदेश में राशि में बड़ा फर्क था. हाथ से लिखे हुए आदेश में पांच हजार और टाइप किए हुए आदेश में पचास हजार लिखा था. जाहिर है जयसवाल स्टोर्स ने कागज पर पचास हजार रुपए मूल्य केी चिनिया बादाम की खल्ली की आपूर्ति की होगी. इस तरह का दूसरा दृष्टांत. इसमें भी पांच हजार की जगह, कागज पर पचास हजार बना दिया गया है. 

मेसर्स जयसवाल स्टोर्स को दिए गए कई आदेश

दुग्ध आपूर्ति सह गव्य प्रक्षेत्र होटवार रांची के महाप्रबंधक ने 7 मई 84 को, मेसर्स जयसवाल स्टोर्स को ही एक और आदेश दिया. यह आदेश पीली मकई की आपूर्ति के संबंध में दिया गया था. इसमें उल्लिखित है कि क्षेत्रीय निदेशक, पशुपालन विभाग छोटानागपुर एवं संथाल परगना स्वशासी विकास प्राधिकार,रांची के पत्र संख्या 2850, दिनांक 8.12.82 द्वारा अनुमोदित दर 233 रुपए प्रति कुंटल (एफओआर गोदाम) मात्र पांच हजार लागत पर भारतीय मानक संस्थान की निर्धारित विशिष्टियों के अनुरूप पीली मकई की आपूर्ति एक एक सप्ताह के अंदर करें.

 यह आदेश भी विशेष दूत द्वारा भेजा गया. वहां से निकलने के बाद टाइप करात वक्त उसमें तुरंत तब्दीली कर दी गई. ऊपर का सबकुछ वैसा ही है, सिर्फ दूसरे पैराग्राफ में पांच हजार की जगह पचास हजार कर दिया गया है. स्वाभाविक है, पचास हजार रुपए लागत वाली पीली मकई की आपूर्ति ही जयसवाल मेसर्स ने की होगी, क्योंकि उसे आदेश उतने का ही मिला. यह सिर्फ पशुपालन विभाग के लोग ही बता सकते हैं कि कि किस तरह वे पांच हजार की जगह पचास हजार रुपए के सामान की खपत दर्शाते हैं.

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