Aprajita Bill : बंगाल की ममता सरकार ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए अपराजिता बिल को विधानसभा से मंगलवार 3 सितंबर को पारित कर दिया. चूंकि देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए पहले से ही कानून मौजूद थे और भारतीय न्याय संहिता 2023 में कई नए कानूनों को भी जोड़ा गया था, इन हालात में सवाल यह है कि नए अपराजिता कानून की जरूरत क्या पड़ी और यह कानून कितना कारगर होगा?
कानून में क्या हैं नए प्रावधान
1. रेप पीड़िता की मौत हो जाने या कोमा में चले जाने पर दोषी को 10 दिनों के अंदर फांसी होगी
2. रेप और गैंगरेप के दोषियों को बिना पेरोल के आजीवन कारावास की सजा
3. महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटना पर एफआईआर दर्ज होने के 21 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल करनी होगी, इसे 15 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है. यानी कुल 36 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल करनी होगी, जो अभी 60 दिनों के अंदर करनी होती है.
4. जिला स्तर पर अपराजिता टास्क फोर्स का गठन होगा, जिसका नेतृत्व डीएसपी करेंगे.
5. पीड़िता की पहचान उजागर करने वालों को 3 से 5 साल तक कैद की सजा होगी.
6. पीड़िता अगर नाबालिग है तो सबूत 7 दिनों के अंदर जुटाने होंगे.
क्या राज्यों के पास हैं कानून बनाने के अधिकार
भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची में तीन सूचियां हैं, जो केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति का बंटवारा करती है और यह बताती है कि किन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र के पास है, किन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के पास है और किन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और दोनों के पास है. इस सूची के नाम हैं-
1. संघ सूची (Union List) (97 विषय)
2. राज्य सूची (State List) (66 विषय)
3. समवर्ती सूची (concurrent list ) (47 विषय)
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अधिवक्ता आलोक आनंद बताते हैं कि संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार कानून बनाने के अधिकारों का बंटवारा कर दिया गया है. बंगाल की सरकार ने क्रिमिनल लाॅ बनाया है जो कॉन्करेंट लिस्ट में आता है. कॉन्करेंट लिस्ट या समवर्ती सूची में केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन यहां यह बात भी गौर करने लायक है कि अगर राज्य उन विषयों पर कानून बनाता है, जिसे संसद ने पहले ही बनाया हुआ है तो संविधान का अनुच्छेद 254 (1) कहता है कि अगर राज्य द्वारा बनाया गया कानून केंद्र के कानून का विरोधाभासी है, तो इस स्थिति में राज्य का कानून शून्य माना जाएगा, यानी उसका कोई महत्व नहीं होगा.
अनुच्छेद 254 (2) कहता है कि अगर राज्य किसी ऐसे विषय पर कानून बनाता है, जिसपर देश में पहले से ही कानून मौजूद हैं और उसे गवर्नर के जरिए राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है और अगर उसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाती है, तो उन हालात में उस राज्य में वही कानून लागू होगा, केंद्र का कानून अप्रभावी हो जाएगा.
मृत्युदंड का प्रावधान रेयर ऑफ द रेयरेस्ट मामलों में दिया जाता है, इसलिए बंगाल की विधायिका ने जो कानून बनाया है उसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने में काफी तकनीकी समस्याएं हैं. भारतीय दंड संहिता 2023 में रेप और महिलाओं के खिलाफ अपराध के लिए पहले से कानून हैं, बंगाल सरकार ने उन कानूनों में कुछ जोड़ा है, जो व्यावहारिक प्रतीत नहीं हो रहे हैं. इन्हें लागू करवाने में काफी परेशानी हो सकती है.
अपराजिता बिल दोषपूर्ण : अयोध्या नाथ मिश्र
विधायी मामलों के जानकारों अयोध्या नाथ मिश्र का कहना है कि बंगाल सरकार ने जो कानून बनाया है, वह दोषपूर्ण है. इसमें कई तरह की तकनीकी समस्या है. जैसे कानून कहता है कि दोषी को दोष सिद्ध होने के 10 दिनों के अंदर फांसी दे दी जाएगी, यह कैसे संभव है? क्या उसे खुद को निर्दोष साबित करने का अवसर नहीं दिया जाएगा? राज्यों को कानून बनाने का अधिकार है इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन वह दोषपूर्ण कानून नहीं बना सकता है. उसे राजनीतिक हित साधने के लिए आनन-फानन में कानून बनाने का अधिकार नहीं है. इस तरह के कानून को लागू करने पर कई परेशानी होगी. केंद्र के कानून का विरोधाभासी कानून राज्य नहीं बना सकता है.
अपराजिता बिल पर एक्सपर्ट्स की राय से यह साफ जाहिर है कि यह विधेयक राजनीतिक लाभ लेने के लिए लाया गया है और इस कानून को लागू करने में कई तरह की तकनीकी बाधाएं हैं. संसद द्वारा बनाए गए कानून का विरोधाभासी कानून शून्य माना जाता है, इसलिए यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि यह कानून फंस जाएगा. राष्ट्रपति की मंजूरी भी अपराजिता बिल को मिलना कठिन है, क्योंकि 1 जुलाई को ही भारतीय न्याय संहिता लागू की गई है, फिर इतनी जल्दी कानून में बदलाव थोड़ा मुश्किल है, इसलिए बहुत संभव है कि यह बिल कानून का रूप ना ले पाए.
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FAQ अपराजिता बिल क्या है?
महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए बंगाल सरकार ने विधानसभा में एक बिल लाया और पारित किया उसे अपराजिता बिल नाम दिया गया है.
क्या राज्यों के पास कानून बनाने का अधिकार है?
भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची में तीन सूचियां हैं, जो केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति का बंटवारा करती है और यह बताती है कि किन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र के पास है, किन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के पास है और किन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और दोनों के पास है. इस सूची के अनुसार राज्यों के पास 66 विषयों में कानून बनाने का अधिकार है.