इस्को रॉक आर्ट राष्ट्रीय धरोहर घोषित हुआ तो पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, इतिहास की परतें भी खुलेंगी
झारखंड में अब तक कुल 13 ऐसे पुरातात्विक महत्व के स्थल हैं जिसे ASI संरक्षित कर रहा है. साल 2022 में इस्को रॉक आर्ट साइट का प्रपोजल ASI ने केंद्र को भेजा था.
आज आपको एक पुरातात्विक महत्व के साइट के बारे में बताते हैं जो नागवंशी राजाओं के समकालीन माना जाता है. हजारीबाग के इस्को गांव में दो से पांच हजार ईसा पूर्व पुराना इस्को रॉक आर्ट साइट इस साल के अंत तक राष्ट्रीय धरोहर बन सकेगा. ASI यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 2022 में इस विरासत को राष्ट्रीय विरासत का दर्जा देने का प्रस्ताव भेजा था.
इस साइट को साल 2019 में एएसआई रांची सर्कल ने एएसआई के संरक्षित पुरास्थल की लिस्ट में जोड़ने के लिए इसके मूल्यांकन की प्रक्रिया शुरू की. उसके बाद साल 2022 में इसका प्रपोजल केन्द्र को भेजा गया.
धोबी मठ से ज्यादा पुराना है इस्को रॉक आर्ट
हजारीबाग के इस्को रॉक आर्ट साइट को लेकर रांची सर्कल के सुपरिटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट डॉ राजेंद्र देहुरी से बातचीत की. बात-चीत करते हुए डॉ देहुरी ने बताया कि इस्को रॉक आर्ट साइट का प्रपोजल 2022 के आसपास बनाया गया था. हजारीबाग का यह मॉन्यूमेंट धोबी मठ से ज्यादा पुराना है. आपको जानकारी के लिए बता दें कि धोबी मठ 17वीं सदी पुराना है.
जो भी हमारे पूर्व पुरुष होंगे, जो गुफा में रहते होंगे वे उसमें चित्र बनाते थे. ऐसे में हम इस्को रॉक आर्ट साइट को पूर्ण रूप से कलात्मक दृष्टिकोण से देख सकते हैं.
रांची सर्कल के सुपरिटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट डॉ. राजेंद्र देहुरी
इसके अलावा इस्को रॉक आर्ट साइट से पूर्व पुरुष के धार्मिक भावनाएं और सामाजिक परिकल्पनाएं के बारे में पता चलता है. इसको लेकर और भी रिसर्च जारी है, जिससे पूर्व पुरुष के बारे में बहुत कुछ सामने आएगा. आपको बता दें कि इसी साल इसकी पूरी प्रक्रिया हो जाएगी. इससे नागवंशियों का ब्रोडर व्यू पता चलेगा.
प्राचीन रॉक कला के लिए प्रसिद्ध है इस्को रॉक आर्ट
इस्को गांव अपनी प्राचीन रॉक कला के लिए काफी प्रसिद्ध है. यह झारखंड में हजारीबाग जिले में स्थित है, और प्रागैतिहासिक चित्रों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है जो विभिन्न युगों के हैं, जिनमें से कुछ 10,000 वर्ष पुराने माने जाते हैं. रॉक आर्ट प्राचीन सभ्यताओं के जीवन, संस्कृति और मान्यताओं के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती है.
1991 में इसको गुफा की खोज
इसको गुफा की खोज 1991 में हुई थी. हजारीबाग के रहने वाले और प्रख्यात इतिहासकार पद्मश्री बुलु इमाम को इन शैल चित्रों के बारे में जानकारी मिली. इसको के रहने वाले खेटा मुंडा ने बूलु इमाम को इसकी जानकारी दी कि 1000 फीट लंबी दीवार पर पेंटिंग बनी हुई है. यहां आकर इतिहासकार अक्सर अध्ययन करते हैं.
इसे लेकर कई तरह की कहानियां भी सुनने को मिलती है. यहां के स्थानीय बताते हैं कि यहां बादाम राजा शादी के बाद समय बिताने के लिए रानी के साथ आए थे. उन्होंने यह आकृति बनाई जिसे कोहबर कहा गया. और धीरे-धीरे यह कलाकृति विख्यात हुई और गुफा से निकलकर गांव के दीवारों में जगह बनाई.
लेकिन अब यह कलाकृति विलुप्त होने की कगार पर है जिससे इसे संरक्षित करने की जरूरत है. जरूरत है इस कला के बारे में लोगों को जागरूक करने की.
बिहार से झारखंड राज्य अलग होने के बाद दो नए साइट्स की हुई पहचान
वर्तमान समय में रांची मंडल के अंतर्गत कुल 13 राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक/पुरास्थल हैं, जिनकी देखभाल एवं रखरखाव प्राचीन मॉन्यूमेंट्स एवं आर्कियोलॉजिकल साइट्स अधिनियम 1958 एंव नियम 1959 के प्रावधानों के अनुसार किया जा रहा है. झारखंड में 13 मॉन्यूमेंट्स ऐसे हैं, जिसे एएसआई संरक्षित कर रहा है.
इसमें से दो ऐसे मॉन्यूमेंट्स/साइट्स हैं, जिसे बिहार से अलग होने के बाद पहचान की गई है. टेंपल ऑफ हाराडीह की पहचान एएसआई ने जुलाई 2014 में की वहीं प्लेस एंड टेंपल कॉम्प्लेक्स ऐट नवरत्नगढ़ की पहचान सितंबर 2019 में की गई.
ये हैं झारखंड के अब तक के संरक्षित पुरातत्व स्थल
- असुर पुरास्थल हंसा
- हाराडीह मंदिर समूह हाराडीह
- असुर पुरास्थल कठर टोली
- प्राचीन शिव मंदिर खेकपरता
- असुर पुरास्थल खूंटी टोला
- असुर पुरास्थल कुंजला
- असुर पुरास्थल सारिदकेल
- संभावित भूमिगत कक्ष एवं सुरंग सह बारादरी अराजी मोखीमपुर
- जामा मस्जिद हदफ
- प्राचीन सरोवर एवं मंदिरों के अवशेष बेनीसागर
- प्राचीन सरोवर एवं मंदिरों के अवशेष बेनीसागर
- कूलूगढा एंव बांसपुट प्राचीन टीले ईटागढ़
- राजमहल एवं मंदिर परिसर नवरत्नगढ़ (डोइसागढ़)