Atomic War in The Middle East: इतना तो तय है कि इजरायल ईरान पर जबर्दस्त हमला करेगा. इजरायल को अपनी राजधानी में ईरान की ओर से दागे गए 120 मिसाइलों के हिसाब ही केवल बराबर नहीं करने हैं. हिज्बु्ल्लाह को शह देकर इजरायल को परेशान करने का बदला भी केवल नहीं चुकाना है, बल्कि कई दशक पहले तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास के कर्मचारियों को मार डालने का इंतकाम भी लेना है.
अमेरिका को भी यह सब इजरायल के कंधों पर बैठकर करना है. इसलिए सामरिक मामलों के जानकार जानते हैं कि इजरायल से ईरान पर चाहे मिसाल दागे जाएं या बम फोड़े जाएं, उन पर लेबल भले ही इजरायल का होगा, लेकिन तपिश अमेरिकी होगी जो ईरान को ज्यादा से ज्यादा जलाएगी.
इसलिए अमेरिका और इजरायल के नेता भले ही कभी-कभी अलग-अलग सुर में बोलते नजर आएं, लेकिन सभी जानते है कि पूरी प्लानिंग के साथ वैश्विक राजनीति के लिए यह संगीत के वीभत्स रस की जुगलबंदी है. किसे कोरस गाना है, किसे खास अंतरे का आलाप करना है, किसे सुर देना है, किसे धुन बनाने हैं और किसे ताल तैयार कर किसे थाप देने के लिए तैयार करना है, इसका प्रोग्राम चार्ट अमेरिका और इजरायल मिलकर तैयार करते हैं.
खाड़ी और मध्य-पूर्व में तैयार किए जा रहे महाविनाश के स्पंदन में वीभत्स रस के स्वर इजरायल को निकालने होते हैं. उसके तुरंत बाद अमेरिका की तैयारी उसमें करुणा का पुट देकर पीठ सहलाने की होती है.
Atomic War in The Middle East: इजरायल ईरान के तेल कुओं पर हमला करेगा या परमाणु ठिकानों पर ?
इजरायल की रणनीति अगर समझनी है तो अमेरिकी कूटनीति की हवाओं की दिशा जानना जरूरी है. इस दिशा में दो बयान बड़े महत्वपूर्ण हैं. एक अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन का है और दूसरा पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का है. दोनों नेताओं के अलग-अलग बयान अमेरिकी शासन की भावी दिशा का संकेत करने वाले हैं.
बिडेन ने कहा है कि इजरायल को अमेरिकी तेल भंडारों पर हमले से परहेज करना चाहिए. इसलिए इतना तो साफ है कि इजरायल ईरान की आर्थिक कमर तोड़ने के लिए तेल भंडार पर हमले की तैयारी कर चुका है. मंजूरी देने में अमेरिकी शासन की थोड़ी ना-नुकूर चल रही है. आखिरकार अमेरिका मान जाएगा.
डाेनाल्ड ट्रंप का कहना है कि इजरायल को ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले करने चाहिए. बाकी हम बाद में समझ और निपट लेंगे. डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के नेता हैं. इजराय़ल की नीति रिपब्लिकन पार्टी के ज्यादा करीब है. वहीं जो बिडेन डेमोक्रेट पार्टी के नेता हैं.
डेमोक्रेट नेता इस्लामी देशों के खिलाफ ज्यादा आक्रामक नहीं रहे हैं. वहीं जॉर्ज बुश सीनियर से लेकर जॉर्ज बुश जूनियर और डोनाल्ड ट्रंप तक अमेरिका के रिपब्लिकन राष्ट्रपतियों की इस्लामी देशों के खिलाफ रही भूमिका जगजाहिर है. ऐसे में इजरायल के प्रमुख बेंजामिन नेतान्याहू अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कौन सी रणनीति अख्तियार करेंगे, यह समझना ज्यादा कठिन नहीं है. ऐसे में आहट तेल भंडारों से ज्यादा ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले का है.
Atomic War in The Middle East: इजरायल का परमाणु हमला ईरान का कितना विनाश करेगा?
इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद की ताकत सभी जानते हैं. इसलिए इजरायल परमाणु हमले या परमाणु ठिकानों पर हमले से पहले पूरी खुफिया जानकारी जुटाएगा. ऐसा नहीं है कि इजरायल अगर परमाणु हमले करेगा तो पटाखे की तरह खाली जगह देखकर कहीं भी उछाल देगा.
बल्कि इजरायल का मकसद होगा कि ईरान को अधिक से अधिक नुकसान हो. यहां तक कि इस कारण से होने वाले जनसंहार की भी परवाह नहीं करेगा. क्योंकि, इजरायल के पास तर्क है कि ईरान ने उसके भीड़ भरे शहर पर मिसाइल बरसाए हैं.
इजरायल ने कभी अपनी परमाणु ताकत का खुलासा नहीं किया है, लेकिन विशेषज्ञों का अनुमान है कि उसके पास 90 से लेकर 400 तक नाभिकीय हथियार हैं. ये मध्यम दूरी से लेकर अंतरमहाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों तक पर हैं. इजरायल के पास एयरक्राफ्ट से परमाणु बम गिराने से लेकर उन्हें पनडुब्बियों से ले जाने और और दूसरे कई माध्यमों से ईरान को ठिकाना बनाने की भी क्षमता है.
दूसरा, इजरायल के तेल अबीव पर ईरान के मिसाइल हमले के बाद ईरान के खिलाफ विनाशकारी कार्रवाई के लिए इजरायल की जनता का समर्थन भी हासिल है. ऐसी स्थिति में इजरायल की ओर से परमाणु हमले या परमाणु ठिकानों पर हमले की बात सोचकर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. क्योंकि इजरायल के परमाणु बमों की क्षमता 06 अगस्त, 1945 को अमेरिका की ओर से हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों से लाखों गुना अधिक हो सकती है.
दूसरी ओर, मीडिया में समय-समय पर आती रही रिपोर्टों के मुताबिक, ईरान के पास आठ से दस परमाणु बम बनाने की क्षमता है. जाहिर है कि आत्मरक्षा के लिए भी इजरायल को डराने की दृष्टि से यह नाकाफी है.
वहीं ईरान की परमाणु क्षमता अभी प्रारंभिक अवस्था में है. उसे अत्यधिक विनाशकारी बनाने की तकनीक संभवतः ईरान के पास इजरायल जैसी नहीं है. इसलिए अगर इजरायल और ईरान के बीच परमाणु युद्ध या नाभिकीय हथियारों से युद्ध होता है तो मानवता थर्रा जाएगी.
Atomic War in The Middle East: छींटे क्या भारत पर भी पड़ेंगे?
अभी विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा है कि युद्ध कहीं भी हो, भारत पर असर तो पड़ता ही है. इससे साफ है कि जयशंकर का इशारा केवल रूस-यूक्रेन युद्ध की ओर ही नहीं बल्कि इजरायल-ईरान युद्ध की आशंकाओं को लेकर भी है.
ईरान के प्रांत सिस्तान और पाकिस्तान के प्रांत बलूचिस्चान की सीमा मिलती है. अगर इजरायल और ईरान के बीच परमाणु युद्ध होता है तो बलूचिस्तान के इलाके में भी विनाश हो सकता है. बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ बगावत से भारत भी सहानुभूति रखता है.
इसके अलावा समुद्र में हुए परमाणु युद्ध या पनडुब्बियों में होने वाले परमाणु विस्फोट की स्थिति में लाल सागर दहल सकता है. ऐसी स्थिति में लंबे समय तक के लिए भारत के एक्सपोर्ट रूट को खतरा पैदा हो सकता है. ईरान के सहयोग से चल रही भारत की चाबहार बंदरगाह परियोजना भी खटाई में पड़ सकती है.
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