Bangladesh Protests : बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ अब क्या होगा?

Bangladesh Protests : बांग्लादेश में एक जुलाई को आरक्षण नीति के खिलाफ शुरू हुआ विद्यार्थियों का आंदोलन इतना तीव्र हुआ कि पीएम को इस्तीफा देना पड़ा और सत्ता की कमान सेना को संभालनी पड़ी. इस पूरे घटनाक्रम पर भारत की नजर है और भारत यह चाहता है कि पड़ोसी मुल्क में शांति हो. बांग्लादेश के वर्तमान और भविष्य पर आधारित पढ़ें यह विशेष आलेख.

By Rajneesh Anand | August 6, 2024 6:29 PM

Bangladesh Protests : बांग्लादेश में शुरू हुआ आरक्षण विरोधी आंदोलन अंतत: इतना तीव्र हुआ कि देश में तख्तापलट हो गया. सेना ने सत्ता की कमान संभाल ली है और प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा है. देश में अराजकता का माहौल है अंतरिम सरकार बनाने की कोशिश हो रही है. कई तरह की खबरें सामने आ रही हैं, मसलन कभी यह कहा जा रहा है कि बांग्लादेश बैंक के पूर्व गवर्नर सालेहुद्दीन अहमद पीएम हो सकते हैं, तो कभी इस तरह की सूचना आ रही है कि टेक्नोक्रेट सरकार बनाएंगे. बांग्लादेश की अभी जो स्थिति है उसमें सरकार गठन को लेकर कोई पुख्ता बात अभी तक सामने निकलकर नहीं आई है. हां, यह बात तय है कि सरकार कोई भी बने, उसपर सेना का नियंत्रण बनता फिलहाल दिख रहा है.

बांग्लादेश में लाखों लोग सड़क पर उतर आए हैं. हिंसा, लूट हो रही है. कोई भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है, अल्पसंख्यक हिंदुओं पर आक्रमण हो रहे हैं, उनके मंदिर तोड़े जा रहे हैं. पीएम आवास में घुसकर उपद्रवियों ने तांडव किया है, कैदी जेल से बाहर आ रहे हैं, विपक्ष के जो नेता जेल में थे, उन्हें रिहा कर दिया गया है. खालिदा जिया का बाहर आना इस बात की पुष्टि करता है. 

बांग्लादेश के हालात पर भारत की पैनी नजर

बांग्लादेश के हालात पर सर्वदलीय बैठक

बांग्लादेश के हालात पर भारत की पैनी नजर है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सर्वदलीय बैठक कर भारत के रुख से विपक्षी दलों के नेताओं को अवगत कराया है और उन्हें सभी दलों ने समर्थन देने की बात भी कही है.  इन हालात में बड़ा सवाल यह है कि आखिर हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में शांति कैसे स्थापित होगी और वहां आगे क्या होने वाला है? क्या बांग्लादेश में जो कुछ हुआ है, वह सिर्फ वहां के छात्रों के असंतोष का परिणाम है या फिर विदेशी ताकतें वहां की अराजकता के लिए जिम्मेदार हैं?

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इन तमाम सवालों का जवाब तलाशने के लिए हमने साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डाॅ धनंजय त्रिपाठी से बात की और बांग्लादेश के वर्तमान हालात और वहां आगे क्या हो सकता है इसपर बात की. बांग्लादेश में नई सरकार के गठन पर बात करते हुए डाॅ धनंजय त्रिपाठी ने कहा कि कई तरह की बातें सामने आ रही हैं, लेकिन अभी यह कह पाना थोड़ी जल्दी होगी कि बांग्लादेश में किस तरह की सरकार बनेगी और वह कितनी टिकाऊ होगी. लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि बांग्लादेश में जो भी सरकार बनेगी, उसपर सेना का नियंत्रण होगा. संभव है कि बांग्लादेश में सेना का शासन में डायरेक्ट हस्तक्षेप ना हो,लेकिन सरकार पर उसका कंट्रोल होगा यह तय प्रतीत होता है.

बांग्लादेश में भारत विरोधी माहौल बन सकता है

जहां तक बात भारत -बांग्लादेश संबंधों की है, तो मेरी नजर में इसके दो तरह के असर होंगे. एक शार्ट टर्म और दूसरा लाॅन्ग टर्म. शार्ट टर्म असर की बात करें, तो निश्चित तौर पर वहां भारत विरोधी माहौल दिखा जा सकता है, क्योंकि जिस पीएम शेख हसीना ने खिलाफ वहां प्रदर्शन हो रहे थे, वो भागकर भारत आ गई हैं और हमारी सरकार ने उन्हें शरण भी दिया है. लेकिन अगर लाॅग टर्म असर की बात करें, तो निश्चित तौर पर सबकुछ बेहतर होगा, क्योंकि दोनों देशों के राजनीतिक और आर्थिक संबंध काफी मजबूत रहे हैं. दोनों देशों को एक दूसरे की जरूरत है और निश्चित तौर पर बांग्लादेश को भारत की ज्यादा जरूरत है.

बांग्लादेश में हिंदू खतरे में

बांग्लादेशी हिंदू हमले के बाद सदमे में हैं

बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं और वह अराजकता की स्थिति में और भी बढ़ सकते हैं. खबरों की मानें तो लूटपाट और मारपीट की घटना काफी हुई है. महिलाओं के साथ रेप की घटनाएं बढ़ीं है और मंदिरों पर भी हमले हो रहे हैं. ऐसा नहीं है कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर अटैक अभी हो रहे हैं, वहां कई दफे इस तरह की घटनाएं सामने आती हैं. खासकर दुर्गा पूजा के वक्त पंडालों में तोड़फोड़ मंदिर पर हमले बढ़ जाते हैं. अभी तक होता यह आया था कि शेख हसीना की सरकार इस तरह के हमलों पर लगाम कसती थी, अब यह सेना की जिम्मेदारी है कि वह अल्पसंख्यकों की रक्षा करें. 

बांग्लादेश में तख्तापलट के साथ ही भारत की सरकार ने बीएसएफ को मुस्तैद कर दिया है, वजह साफ है कि सीमापार से घुसपैठ की घटनाएं बढ़ेंगी. घुसपैठ के मुद्दे पर बात करते हुए डाॅ धनंजय त्रिपाठी ने कहा कि निश्चित तौर पर घुसपैठ बढ़ेगी. अगर बांग्लादेश में अराजकता कायम रही और वहां की सरकार इसे रोकने में असफल रही, तो जीविका के लिए वहां के लोग भारत का रुख करेंगे क्योंकि यहां शांति है. भारत के लिए चुनौती यह है कि अगर शरणार्थी आए तो उसमें असामाजिक तत्वों भी शामिल होंगे, जो अपने देश में माहौल खराब करेंगे, इसलिए उसपर नकेल कसने की जरूरत है.

हिंदुओं पर अत्याचार बढ़े तो कठोर हो सकता है भारत का रुख

भारत अभी वेट एंड वाॅच की मुद्रा में है और बांग्लादेश की स्थिति पर नजर बनाए हुए है. भारत की सरकार खुद को बांग्लादेश के साथ ही बताने की कोशिश करेगी और वहां बनने वाली सरकार को समर्थन देगी. हां, अगर वहां अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अगर अत्याचार ज्यादा हुए , तो भारत का रुख कुछ कठोर हो सकता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि बांग्लादेश में समझदार लोगों की सरकार बनेगी और वहां भारत के साथ अपने रिश्तों को बेहतर बनाएगी. बांग्लादेश में आज जो अराजकता की स्थिति है, उसमें विदेशी ताकतों का हाथ ना हो तो बेहतर है, क्योंकि अगर विदेशी ताकतें इस तख्तापलट के लिए जिम्मेदार होंगी, तो वहां कट्टरपंथियों को बढ़ावा मिल सकता है. बांग्लादेश में टेरिस्ट घटनाओं का इतिहास भी रहा है और संभव है कि देश फिर उस ओर जाए.

बांग्लादेश तख्तापलट तक क्यों पहुंचा?

बांग्लादेशी प्रदर्शनकारी

बांग्लादेश में पांच अगस्त को हिंसा के बाद तख्तापलट हो गया. पीएम शेख हसीना ने इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया. इसके पहले एक जुलाई को बांग्लादेश में 2018 में खत्म की गई आरक्षण व्यवस्‍था वापस लौट आयी थी जिसके विरोध में युवा सड़कों पर उतर आए थे. आंदोलन इतना उग्र था कि शेख हसीना की सरकार हिल गई है. देश में कर्फ्यू लगा और 21 जुलाई को उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया गया. शुरुआत में सिर्फ छात्र ही आंदोलन में कूदे थे, पर बाद में आम आदमी भी इस आंदोलन में शामिल हो गया. आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान बांग्लादेशी पीएम शेख हसीना का रुख उग्र रहा और उन्होंने नरमी बरतने की बजाय प्रदर्शकारियों को रजाकार की उपाधि दे दी. उनका यह बयान आग लगाने वाला था क्योंकि बांग्लादेश में रजाकारों को देशद्रोही के तौर पर देखा जाता है. रजाकारों ने पूर्वी पाकिस्तान में  पाकिस्तान सरकार के लिए मुखबिरी का काम किया बांग्लादेशियों को यातनाएं भी दी थीं. 

विदेशी मामलों के जानकार प्रो सतीश कुमार बताते हैं कि स्वतंत्र राष्ट्र के लिए जिन लोगों ने लड़ाई लड़ी उन्हें और उनके बच्चों को 1972 में सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण देने की घोषणा की गई. बाद में वहां महिलाओं के लिए 10%, पिछड़े इलाकों के लोगों के लिए 10%, इंडिजिनस को 5% और विकलांगों के लिए 1% सीट आरक्षित कर दी गई. इससे सरकारी नौकरियों की कुल 56% सीट आरक्षित हो गईं. इसी आरक्षण नीति के खिलाफ बांग्लादेश के युवा सड़कों पर उतरे थे. यह आंदोलन इतना बढ़ा कि तख्तापलट की स्थिति बन गई.

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