डेवलपमेंट एग्रीमेंट पर साइन करने से पहले भूस्वामी ध्यान दें, कहीं उनके साथ धोखा तो नहीं हो रहा!

Development Agreement : क्या आपको पता है कि वास्तविक जीवन में भी व्यक्ति को कई बार शतरंज का खेल खेलना पड़ता है ? वैसे देखा जाए तो यह जिंदगी ही शतरंज का खेल है जिसे हर समय हर दिन छोटे-मोटे रूप में खेलना पड़ता है .

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 16, 2025 11:26 PM

-जयनंदन सिंह-

Development Agreement : क्या कभी आपने शतरंज का खेल खेला है या औरों को खेलते हुए देखा है ? दोनों तरफ 16 -16 मोहरे होते हैं और पूरा खेल अपने राजा को बचाने और दूसरे तरफ के राजा को मारने के लिए होता है . देखने वाले को तो यह खेल बहुत ही मनोरंजक और आसान लगता है . पर खेलने वाले के लिए यह काफी मानसिक मेहनत मशक्कत का काम है . अपने प्रतिद्वंद्वी की चालों का दूर तक अंदाज लगाना और हर कदम पर उनकी काट सोच कर अपनी चाल चलना आसान काम नहीं है और यह देखने वालों के बस में नहीं है . इसमें जिसकी जितनी तीक्ष्ण बुद्धि होती है उसके जीतने की संभावना उतनी ही अधिक होती है . और सभी प्रातस्पर्धाओं को पार कर सबसे तीक्ष्ण बुद्धि वाले ग्रैंड मास्टर का खिताब प्राप्त करते हैं और गुकेश डी की तरह विश्व शतरंज चैंपियन बन जाते हैं .

शतरंज के खेल की तरह है जिंदगी

क्या आपको पता है कि वास्तविक जीवन में भी व्यक्ति को कई बार शतरंज का खेल खेलना पड़ता है ? वैसे देखा जाए तो यह जिंदगी ही शतरंज का खेल है जिसे हर समय हर दिन छोटे-मोटे रूप में खेलना पड़ता है . पर जिंदगी के किसी मोड़ पर परिस्थितियों की कोई बिसात बिछ जाए और आपको जबरन वहां खड़ा होना पड़े तो मजबूरन खेलना अलग ही बात है . और इस तरह की परिस्थिति व्यक्ति के किसी भी उम्र में (वह 27 वर्ष का हो या, मेरे जैसा 72 वर्ष का या उसके आगे पीछे भी का) आ सकती है और वह परिस्थितिजन्य या स्वरचित भी हो सकती है. यह किसी भी तरह की हो सकती है, सामान्य या मुश्किल, गंभीर परिणाम के साथ या फिर महत्वहीन और समय के साथ गुजर जाने वाला . पर शतरंज का खेल तो शतरंज का खेल ही है . चाहे वह क्लब में खेला जाए या फिर राज्य स्तर पर या राष्ट्रीय स्तर पर या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर; नियम तो एक ही लागू होता है – प्रतिद्वंदी के चालों का आगे तक अंदाज लगाना और उसी तरह अपनी रणनीति बनाना .

मेरा यह कहना संभवतः अतिशयोक्ति नहीं होगी कि किसी भूस्वामी का अपनी संपत्ति का रूपांतरण (conversion) या विकसित (develop) कराने का निर्णय और निर्माताओं को प्रस्ताव के लिए आमंत्रित कर किसी एक निर्माता के प्रस्ताव को स्वीकार करना संभावित शतरंज के खेल की पृष्ठभूमि तैयार कर देना होता है . हर प्रस्ताव में कुछ न कुछ विशेषताएं होती हैं और कई तरह के प्रलोभन होते हैं . पर सबसे बड़ा प्रलोभन बने हुए भवन में प्रतिशत (percentage share) का होता है और करीब- करीब शत प्रतिशत भूस्वामी प्रतिशत के आधार पर ही निर्माता (developer/builder) का चयन करते हैं . पर भूस्वामी अक्सर यह नहीं समझ पाते हैं कि हर प्रस्तावक अपने अधिक से अधिक मुनाफे को ध्यान में रख कर ही अपना प्रस्ताव देते हैं .प्रस्ताव स्वीकृत हो जाने के तुरंत बाद वे सबसे पहले एक काफी बड़ी राशि ‘non-refundable/non-adjustable’ (जिसका बड़ा हिस्सा नकद होता है) भूस्वामी को देते हैं. संभवतः इस उद्देश्य के साथ कि भूस्वामी नकद राशि खर्च कर दे और राशि वापस करने की स्थिति में न रहे और प्रस्ताव स्वीकार कर लेने के बाद, अपनी स्वीकृति वापस न लें सकें .

डेवलपमेंट एग्रीमेंट को क्लिष्ट भाषा में किया जाता है पेश


इसके बाद समय आ जाता है शतरंज के पहले चाल की. इसमें निर्माता के द्वारा एक मोटा सा विकास समझौता (डेवलपमेंट एग्रीमेंट/ development agreement)(इसे इस विषय का संविधान कह सकते हैं) पढ़ने और अनुमोदन (approve) करने के लिए दिया जाता है . आश्वासन दिया जाता है कि एग्रीमेंट की कंडिकाएं/शर्तें (clauses) सर्वमान्य और सर्वप्रचलित हैं. यह एग्रीमेंट इतना मोटा और इतने क्लिष्ट कानूनी भाषा में होता है कि कानून के जानकारों के लिए भी समझते हुए पूरा पढ़ना असंभव ही रहता है . पर यहां यह मानना गलत नहीं होगा कि यह एग्रीमेंट काफी हद तक संतुलित होता है और इसके प्रावधान दोनों पक्षों के फायदे के होते हैं . वैसे यह अलग बात है कि मंझे हुए अनुभवी खिलाड़ी को अपने फायदे के सभी चालों की जानकारी, उपयोगिता और लाभ पहले से पता होता है, जबकि नए खिलाड़ी के लिए इस मोटे से क्लिष्ट शब्दों वाले एग्रीमेंट में से अपने फायदे के प्रावधानों को खोज निकालना या जोड़ देना और समय पर अपने लाभ की चाल चल देना बहुत ही कठिन और लगभग असंभव काम होता है .

उदाहरण के लिए करीब- करीब सभी विकास समझौता (development agreement) के शुरू में ही यह प्रावधान होता है कि इंजीनियर द्वारा तैयार किए गए ड्रॉइंग का सक्षम अधिकारी/विभाग द्वारा अनुमोदित (pass) होने के शीघ् बाद ही एग्रीमेंट के हिसाब से तय हुए हिस्से का बंटवारा कर नक्शे पर चिन्हित कर लेना होता है . पर ज्यादातर निर्माता एग्रीमेंट के इस प्रावधान को अनदेखा कर देते हैं (जब तक भूस्वामी द्वारा इसके लिए दबाव न बनाया जाए) क्योंकि यह प्रावधान निर्माता पर कुछ बंधन का काम करता है और उनके लिए कुछ सीमाएं तय कर देता है .

निर्माण पूरा करने के लिए समय सीमा का निर्धारण


दूसरा प्रावधान, जो भूस्वामी के पक्ष का होता है वह है निर्माण पूरा करने के लिए समय सीमा का निर्धारण . यह समय सीमा अक्सर 36 महीने का होता है . प्रावधान होता है कि 36 महीने में निर्माण कार्य पूर्णतः पूर्ण नहीं होने पर भूस्वामी निर्माता को 6 महीने की और मोहलत देगा . इन 36+6 महीने में निर्माण हर तरह से पूर्ण नहीं होने पर और 6 महीने की मोहलत विलंब शुल्क दे कर मिल सकती है; और फिर 6 महीने और की मोहलत दोगुना विलंब शुल्क दे कर . इस तरह से 36+6+6+6 = 54 महीने की अधिकतम मोहलत निर्माता को मिल सकती है, विलंब शुल्क के साथ . इसके बाद भूस्वामी पूर्णतः स्वतंत्र होता है कि वह विकास समझौता (डेवलपमेंट एग्रीमेंट) को बिना कोई कारण बताए हुए रद्द कर दे .
पर वास्तविकता यह है कि इस प्रावधान का पालन कभी होता ही नहीं है . इस के कई कारण हैं .

सबसे पहला कारण यह है कि जमीन पर कार्य अधूरा रहता है जिससे भूस्वामी को किसी भी तरह का लाभ तो दूर, नुकसान ही होने की संभावना रहती है और फिर अधूरा काम किसी और निर्माता से पूर्ण कराना असंभव ही हो जाता है . खास कर जबकि वास्तविकता यह है कि सभी निर्माता परस्पर स्वार्थ और लाभ के लिए आपस में अच्छा संबंध बनाए रखते हैं और इनका एक संघ होता है जिसके सभी सदस्य होते हैं . दूसरा कारण यह है कि कोई निर्माता विलंब शुल्क देता नहीं और भूस्वामी के लिए मुकदमा दायर करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रहता जिसमें खर्च और समय, दोनों का नुकसान भूस्वामी को होने की संभावना रहती है . तीसरा कारण है कि अगर भूस्वामी मन भी बना ले इस प्रावधान के तहत कार्यवाही करने का तो निर्माता सभी तरह के उपाय कर उसे ऐसा करने से रोक लेते हैं . अतः यथार्थ में यह प्रावधान सिर्फ भूस्वामी के भुलावे केलिए होता है और इस पर मिर्जा गालिब का शेर अच्छा बैठता है कि:-
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को बहलाने को ‘गालिब” यह ख्याल अच्छा है ..

निर्माता भूस्वामी को कभी भी निरीक्षण के लिए नहीं बुलाता

विकास समझौता (डेवलपमेंट एग्रीमेंट) में एक प्रावधान होता है जो कहता है निर्माण पूरा हो जाने पर निर्माता भूस्वामी को निरीक्षण के लिए बुलाएगा और भूस्वामी के संतुष्ट हो जाने पर दोनों के हस्ताक्षर से एक पूर्णता (कम्प्लीशन) रिपोर्ट सक्षम अधिकारी/विभाग को देगा (देखें भवन उपविधि की कंडीका 16) . वैसे तो यह प्रावधान सीधा-सादा लगता है पर इसमे कुछ पेच भी है . पहला तो कि निर्माता भूस्वामी को कभी भी निरीक्षण के लिए नहीं बुलाता और जल्दी में सिर्फ हस्ताक्षर करने केलिए ही कहता है. दूसरा कि अगर भूस्वामी ने निर्माण की पूर्णता के बारे में कुछ पूछ ही लिया तो जवाब मिलता है कि चूंकि विभाग से दखल की अनुमति (कंडीका 16 के प्रावधानों के अंदर) मिलने में बहुत समय लगता है अतः इस बीच में छोटा-मोटा छूटा हुआ सभी काम पूरा कर लिया जाएगा . पर यह प्रावधान इतना आसान भी नहीं है जैसा कि इसके बाद के प्रावधान से स्पष्ट हो जाता है .


विकास समझौता (डेवलपमेंट एग्रीमेंट) का अगला प्रावधान बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और, कहें तो, इसमें निर्माता कि आत्मा बसती है . इसमें यह कहा जाता है कि उपरोक्त रिपोर्ट के जमा करने के दो महीने बाद से दोनों पार्टी का निर्मित भवन में अपने अपने हिस्से पर दखल कब्जा, एक दूसरे के विरुद्ध, पूर्ण माना जाएगा और अपने चिन्हित हिस्से पर निर्माता का हक-हकीयत पूर्ण माना जाएगा जिसके लिये आवश्यक औपचारिकता पूरी कर ली जाएगी . अगले प्रावधान में कहा गया होता है कि विकास समझौता (डेवलपमेंट एग्रीमेंट) की वैधता के दौरान दोनों पार्टी को अपने चिन्हित हिस्से के संबंध में किसी भी प्रकार से व्यवहार (सौदा, समझौता आदि) करने का हक होगा . पर उससे संबंधित हस्तांतरण (रजिस्ट्री / दखल-कब्जा) देने का हक सिर्फ उपरोक्त रिपोर्ट के जमा करने के दो महीने बाद से ही होगा . अगर सादे शब्दों में कहा जाए तो यह साफ है उक्त रिपोर्ट के जमा करने के दो महीने बाद से निर्माता (और भूस्वामी को भी) अपना हिस्सा बेचने की पूरी छूट मिल जाती है भले ही बचा हुआ निर्माण कार्य आधा अधूरा ही रह गया हो . इस जगह निर्माता कंडिका 16 के प्रावधानों का लाभ उठाते हैं जिसमें occupancy certificate के लिए आवेदन (पूर्णता रिपोर्ट के साथ) का समय सीमा के अंदर अस्वीकृत नहीं होने पर, उसे स्वीकृत माना जाएगा .

चिन्हित हिस्से को नहीं किया जाता है चिन्हित

अतः निर्माता के लिए सबसे आसान होता एक अधूरा और दोषयुक्त पूर्णता रिपोर्ट के साथ एक आवेदन सक्षम पदाधिकारी के कार्यालय में डाल देना और उसकी प्राप्ति लेकर रख लेना . यहां यह भी ध्यान देने का है कि इस एग्रीमेंट में हर जगह ‘चिन्हित हिस्सा’ (demarcated share) की चर्चा की जाती है . पर बहुत से निर्माता नक्शे पर भूस्वामी के साथ बैठ कर हिस्सा चिन्हित नहीं करते हैं और अच्छे और ज्यादा कीमत वाले भूस्वामी के हिस्से को भी अपना कह कर ऊंचे कीमत पर बेचना शुरू कर देते हैं और अंत में भूस्वामी द्वारा पकड़े जाने पर कम कीमत वाले अपने हिस्से को भूस्वामी को यह कह कर दे देते हैं कि अब तो वही बचा है .


इसके अलावा विकास समझौता (डेवलपमेंट एग्रीमेंट) में और भी बहुत तरह के प्रावधान होते हैं जैसे मकान का नाम दोनों पार्टी की सहमति से रखना; भूस्वामी का अधिकार सिर्फ निरीक्षण का होना और बाकी सब अधिकार निर्माता का होना, इत्यादि इत्यादि . इसके आगे निर्माता के दायित्वों की चर्चा होती है जिसमे अनुसार निर्माता का अधिकार बंधक रखने का ( या बेचने का ) अपने चिन्हित हिस्से तक ही सीमित होता है .

प्रश्न यह उठता है कि इन परिस्थितियों में भूस्वामी किस तरह अपने हितों की रक्षा कर सकता है . मेरी समझ में भूस्वामी का अपने हितों की रक्षा करने के लिए पहला कदम होना चाहिए कि वह विकास समझौता (डेवलपमेंट एग्रीमेंट) को ध्यान पूर्वक पढ़ कर, पढ़वा कर, अच्छी तरह समझ ले . इसमें उसे किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और निर्माता के किसी भी तरह के दवाब में नहीं पड़ना चाहिए . इसके लिए भूस्वामी, चाहे तो, किसी जानकार, अनुभवी या एग्रीमेंट बनाने में निपुण व्यक्ति की मदद भी ले ले सकता है . इस दौरान अगर भूस्वामी को लगे कि एग्रीमेंट में सुधार की आवश्यकता है या उसके स्वय के हितों की रक्षा के लिए उसमे कुछ और प्रावधानों को जोड़ने की जरूरत है तो वह इसके लिए निर्माता पर दवाब डाल सकता है . भूस्वामी को यह याद रखना होगा कि यही एग्रीमेंट वह कागजी नीव है जिस पर भवन की नीव और उसका पूरा निर्माण निर्भर करता है .

विकास समझौता को लेकर रहना चाहिए चौकन्ना


एक बार विकास समझौता (डेवलपमेंट एग्रीमेंट) अंतिम रूप में बन जाए तो भूस्वामी को यह चौकन्ना रहना होगा उसमें फिर बिना उसकी सहमति और जानकारी के कोई बदलाव न हो . विकास समझौता (डेवलपमेंट एग्रीमेंट) का निबंधन ( रजिस्ट्रेशन ) हो जाने पर फिर भूस्वामी का अगला काम होता है उसके प्रावधानों की दो सूची सरल भाषा में बनाना, बनवा लेना , जिसमे एक सूची उन प्रावधानों की होनी चाहिए जिसमे निर्माता के कर्तव्यों की चर्चा हो और दूसरा जिसमे भूस्वामी के हितों / अधिकारों की चर्चा हो . निर्माता के अधिकारों की सूची बनाने की भूस्वामी को आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि इसका निर्माता को पूर्ण ज्ञान और अनुभव पहले से ही होता है . इन सूचियों के आधार पर भूस्वामी चाहे तो निर्माण कार्य पर निगरानी रख सकता हैं और निरीक्षण करते रह सकता है . साथ ही यह भूस्वामी के हित में होगा कि भवन का ढांचा बन जाने के बाद भवन में अपने चिन्हित हिस्से के अनुसार अपने नाम की तख्ती अपने मोबाईल नम्बर के साथ लगा लें . विकास समझौता (डेवलपमेंट एग्रीमेंट) में यह भी प्रावधान होता है कि भूस्वामी चाहें तो समय समय पर निर्माण सामग्री की गुणवत्ता के बारे में आश्वस्त हो सकता हैं . इसके लिए शुल्क ले कर जांच कर रिपोर्ट देने वाली एजेंसियां अब काम करने लगी हैं (पर उनकी विश्वसनीयता की गारंटी लेना मुश्किल है) .

पूरे निर्माण के दौरान भूस्वामी को ध्यान रखना चाहिए कि विकास समझौता (डेवलपमेंट एग्रीमेंट) के प्रावधानों का निर्माता द्वारा सही सही पालन किया जा रहा है या नहीं, क्योंकि कई निर्माताओं कि यह मंशा रहती है विकास समझौता (डेवलपमेंट एग्रीमेंट) के प्रावधानों को अनदेखा कर कुछ अधिक लाभ उठा लें या कुछ खर्च बचालें . भूस्वामी को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि निर्माण पूरा होने के साथ ही निर्माता द्वारा सभी कानूनी आवश्यकताओं को पूरा किया जाए और कॉर्पोरेशन / सक्षम पदाधिकारी / विभाग द्वारा दखल की अनुमति ( occupancy ) सर्टिफिकेट मिल गई हो और सभी खरीदार ने अपना होल्डिंग कायम करा लिया हो और जमीन की रसीद कटा ली हो . एक ध्यान देने की बात यह है कि अगर निर्माण के दौरान और अनुमति ( occupancy ) सर्टिफिकेट मिलने तक अगर निर्माता द्वारा कोई कागज हस्ताक्षर करने के लिए मिलता हो तो उसे अच्छी तरह पढ़ कर, पढ़वा कर समझ ले और यह निश्चिंत हो ले उससे उनका कोई नुकसान नहीं होगा . तभी उस पर हस्ताक्षर करें . पर पूरे निर्माण के दौरान भूस्वामी को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वह कोई ऐसा कदम न उठाए या निर्माण में ऐसी बाधा न डाले कि निर्माण रुक जाए . ऐसी परिस्थिति में उसका अपना नुकसान ज्यादा होगा, क्योंकि बहुत लंबे समय तक अधूरे निर्माण की वजह से जमीन फसी रह सकती है, और फिर समय सीमा के प्रावधान का लाभ भी उन्हें नहीं मिलेगा .

अंत में, जिस तरह से शतरंज के चालों की कोई सीमा नहीं है और हर खेल में और हर पारी में खिलाड़ी नये नये चालों को सोचता है और प्रतिद्वंद्वी की चालों की नई -नई काट निकाल लेता है, उसी तरह से संपत्ति रूपांतरण में भी भूस्वामी और निर्माता का अपने अपने लाभ के लिए नये- नये रास्ते खोजना और अपने को किसी नुकसान से बचाने या अधिक लाभ पाने का रास्ता खोजना गलत नहीं है . पर गलत तब होता है जब गैर कानूनी तरीके से और एक दूसरे से बेईमानी कर नाजायज लाभ उठाने की दोनों में से किसी भी पक्ष की कोशिश हो .

(लेखक पटना हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज हैं)

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