बिरसा मुंडा का संघर्ष मात्र राजनीतिक विद्रोह नहीं, आदिवासी अस्मिता और पर्यावरण की रक्षा का भी संग्राम था

Birsa Munda Birth Anniversary : आदिवासी समाज में जल, जंगल और जमीन का विशेष महत्व है. ये तीनों तत्व आदिवासियों की संस्कृति, अर्थव्यवस्था और समाज का हिस्सा हैं. इनके बिना आदिवासी जीवन अधूरा है. जंगल उन्हें खाद्य, औषधि और आजीविका के साधन प्रदान करता है, जल उनकी कृषि और जीवन का आधार है और जमीन उनकी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 14, 2024 6:36 PM

-कुमार सत्यम-

Birsa Munda Birth Anniversary : भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में बिरसा मुंडा का नाम सम्मान और प्रेरणा के साथ लिया जाता है. एक ऐसे योद्धा, जिन्होंने कम उम्र में ही अंग्रेजों के अत्याचारों का सामना किया और आदिवासी समुदाय के जल, जंगल और जमीन के अधिकारों के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. बिरसा मुंडा के जीवन का संघर्ष केवल राजनीतिक विद्रोह नहीं था; यह आदिवासी अस्मिता, संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा का भी संग्राम था. उनके लिए जल, जंगल और जमीन केवल भौतिक संसाधन नहीं थे, बल्कि आदिवासी जीवन का आधार, पहचान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक थे.

जल, जंगल और जमीन के बिना आदिवासी जीवन अधूरा

आदिवासी समाज में जल, जंगल और जमीन का विशेष महत्व है. ये तीनों तत्व आदिवासियों की संस्कृति, अर्थव्यवस्था और समाज का हिस्सा हैं. इनके बिना आदिवासी जीवन अधूरा है. जंगल उन्हें खाद्य, औषधि और आजीविका के साधन प्रदान करता है, जल उनकी कृषि और जीवन का आधार है और जमीन उनकी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है. अंग्रेजों की नीतियों ने इन तत्वों को उनसे छीनने का कार्य शुरू कर दिया था. जब अंग्रेजों ने आदिवासी जमीनों पर अधिकार करना शुरू किया और जंगलों पर प्रतिबंध लगाए, तो यह आदिवासी समाज की आत्मनिर्भरता और उनके जीने के अधिकारों पर सीधा हमला था.

भूमि पर अधिकार के लिए आदिवासियों को संगठित किया

बिरसा मुंडा ने इस अन्याय का विरोध करने का संकल्प लिया और उन्होंने इसे केवल व्यक्तिगत लड़ाई नहीं, बल्कि सामूहिक आंदोलन बना दिया. बिरसा मुंडा ने अपने अनुयायियों को यह संदेश दिया कि उनकी भूमि पर उनका अधिकार है और इस अधिकार की रक्षा के लिए उन्हें संगठित होना आवश्यक है. उनका ‘उलगुलान’ यानी आंदोलन आदिवासी समाज को एकजुट करने और अपने हक की लड़ाई लड़ने का प्रतीक बन गया. बिरसा का यह आंदोलन पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम था. उन्होंने अपने लोगों को समझाया कि जंगल, जल और जमीन की सुरक्षा का अर्थ न केवल आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक स्वतंत्रता भी है. उनका मानना था कि आदिवासी समाज को अपने जंगलों की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि जंगल केवल उनकी आजीविका का साधन ही नहीं, बल्कि उनके अस्तित्व का प्रतीक हैं.

पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ों की कटाई बंद करवाई

बिरसा मुंडा का दृष्टिकोण पर्यावरण संरक्षण को लेकर अद्वितीय था. उन्होंने अपने अनुयायियों को प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में संयम और सम्मान का संदेश दिया. उनका मानना था कि प्रकृति और आदिवासी समाज के बीच एक गहरा संबंध है, जो पीढ़ियों से चले आ रहे रीति-रिवाजों में स्पष्ट नजर आता है. उन्होंने आदिवासियों से कहा कि वे अपने जंगलों का संरक्षण करें और वृक्षों की कटाई पर रोक लगाएं, क्योंकि यह उनके जीवन का आधार हैं. भगवान बिरसा का यह संदेश आदिवासियों के पर्यावरण अधिकारों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण योगदान था, जो आज भी प्रासंगिक है.

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वर्तमान समय में जब विकास के नाम पर आदिवासी जमीनों पर कब्जा किया जा रहा है, बिरसा मुंडा का योगदान एक महत्वपूर्ण सीख देता है. खनन, औद्योगिकीकरण और बड़ी परियोजनाएं आदिवासी क्षेत्रों में तेजी से फैल रही हैं, जिससे आदिवासियों को विस्थापन का सामना करना पड़ रहा है. बिरसा मुंडा का संघर्ष हमें याद दिलाता है कि आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखना अत्यावश्यक है. आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा केवल सांस्कृतिक महत्व नहीं रखती, बल्कि यह पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के सतत विकास के लिए भी आवश्यक है. बिरसा ने जिस प्रकार से अपने समुदाय को संगठित किया और पर्यावरण की रक्षा के लिए उन्हें प्रेरित किया, वह आज के समाज के लिए एक प्रेरणा है.

बिरसा मुंडा के आदर्शों पर नीतियां बनाना जरूरी


भारत सरकार के लिए बिरसा मुंडा का संघर्ष एक संदेश है. सरकार को चाहिए कि वह आदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दे. आदिवासियों की जमीनों का अधिग्रहण करने की बजाय उनकी सहमति और सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करे. जल, जंगल और जमीन के अधिकारों की रक्षा में आदिवासी समुदाय की भागीदारी अनिवार्य है और यह तभी संभव है जब सरकार बिरसा मुंडा के आदर्शों को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाएं . केवल बिरसा मुंडा की जयंती मनाना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उनके विचारों को क्रियान्वित करना और आदिवासी अधिकारों का सम्मान करना भी आवश्यक है.

प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान जरूरी

वर्तमान सरकार आदिवासियों के हितों की पक्षधर है एवं उसके कल्याण के लिए प्रयत्नशील है. बिरसा मुंडा की विचारधारा हमें प्रेरित करती है कि पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए हमें संगठित होकर कार्य करना चाहिए. उनका योगदान केवल उनके जीवनकाल तक सीमित नहीं है, बल्कि आज भी आदिवासी समाज और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है. जल, जंगल और जमीन के अधिकारों की रक्षा का यह संघर्ष आज भी जारी है.


बिरसा मुंडा द्वारा उठाए गए कदम सिर्फ आदिवासी समाज के अधिकारों का संरक्षण के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज और भविष्य की पीढ़ियों के लिए महत्वपूर्ण है. जल, जंगल और जमीन का यह संबंध और संघर्ष यह बताता है कि सच्ची प्रगति और विकास तभी संभव है जब हम अपनी धरती और उसके संसाधनों का सम्मान करें. बिरसा मुंडा ने अपने जीवन और संघर्ष के माध्यम से हमें यह सिखाया . (लेखक डॉ भीम राव अंबेडकर कॉलेज के समाज कार्य विभाग में सहायक प्राध्यापक हैं.)

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