23.9 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

CrPC 125 :  सीआरपीसी 125 में क्या हैं प्रावधान जिनके आधार पर SC ने मुस्लिम महिलाओं को दिया पति से गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार

CrPC 125 :  रांची के मौलाना तहजीब का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता को लेकर जो फैसला सुनाया है, वह स्वागत योग्य है. इससे समाज की महिलाओं को मजबूती मिलेगी और उन लोगों पर लगाम कसेगी, जो शादी तो करते हैं, लेकिन फिर तलाक दे देते हैं और अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं.

CrPC 125 : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुस्लिम महिलाओं से जुड़ा एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिससे उन महिलाओं की स्थिति बेहतर हो सकती है, जिन्हें तलाक के बाद गुजारा भत्ता नहीं मिलने से काफी परेशानी होती है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सीआरपीसी की धारा-125 के तहत मुस्लिम महिला भी अपने पति से गुजारा भत्ता मांगने की हकदार है. कोर्ट ने कहा कि धारा 125 के तहत कोई भी तलाकशुदा महिला अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है और इसके लिए वो कानून का सहारा ले सकती है, फिर चाहे वो किसी भी धर्म को मानती हो. सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली मोहम्मद अब्दुल समद की याचिका खारिज करते हुए उक्त बातें कही हैं.

भरण-पोषण से जुड़ी है सीआरपीसी की धारा 125

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सीआरपीसी की धारा 125 के बारे में जानने के लिए हर कोई इच्छुक है, क्योंकि इस धारा को कोर्ट ने मुस्लिम महिला अधिनियम 1986 के ऊपर बताते हुए निर्णय सुनाया और यह भी कहा कि यह एक सेक्यूलर कानून है. कोर्ट ने सीआरपीसी की जिस धारा का उल्लेख किया है, उसके बारे में जानकारी देते हुए अधिवक्ता अवनीश रंजन मिश्रा ने बताया कि सीआरपीसी की धारा 125 भरण-पोषण से जुड़ी है. यह एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान है, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाया है और यह कहा है कि कोई भी मुस्लिम महिला अपने पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है. यह धारा पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण से जुड़ी है.

कानून के अनुसार जब कोई व्यक्ति तलाक के लिए आवेदन करता है, तो कोर्ट यह कोशिश करता है उनका दांपत्य जीवन बच जाए, जबतक इसकी प्रक्रिया चलती है तबतक पत्नी को पति द्वारा गुजारा भत्ता देने का विधान है. उसके बाद अगर बात बन गई तो ठीक और अगर ना बने और तलाक की नौबत आ जाए तो कानून यह तय करता है कि एक बार में गुजारा भत्ता दिया जाए या फिर जीवन भर के लिए मासिक गुजारा भत्ता दिया जाए.

Crpc
Crpc 125 :  सीआरपीसी 125 में क्या हैं प्रावधान जिनके आधार पर sc ने मुस्लिम महिलाओं को दिया पति से गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार 2

Also read : पॉलिटिकल चौकड़ी : पीएम मोदी ने कहा- राहुल गांधी बालक बुद्धि हैं, इस पर क्‍या कहते हैं 4 राजनीतिक पंडित

New Criminal Laws : अब हिट एंड रन और धोखे से शारीरिक संबंध बनाने पर होगी ये सजा

भारतीय न्याय संहिता की धारा 144 में भरण-पोषण कानून का जिक्र

सीआरपीसी की धारा 125 भरण-पोषण के कानूनों से संबंधित थी और नए कानून भारतीय न्याय संहिता की धारा 144 में इसका वर्णन किया गया है. इसे नाम दिया गया मेंटेनेंस ऑर्डर फॉर चाइल्ड वाइफ एंड पैरेंट्‌स. इस धारा में भरण-पोषण से संबंधित तमाम कानूनों का जिक्र किया गया है. ये तो हुई है कानून की बात अब जानिए धर्म क्या कहता है और समाज में इसे लेकर क्या स्थिति है.

इस्लाम में इद्दत की अवधि तक गुजारा भत्ता देने का प्रावधान

रांची के मौलाना तहजीब का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता को लेकर जो फैसला सुनाया है, वह स्वागत योग्य है. इससे समाज की महिलाओं को मजबूती मिलेगी और उन लोगों पर लगाम कसेगी, जो शादी तो करते हैं, लेकिन फिर तलाक दे देते हैं और अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं. जहां तक बात इस्लाम की है, तो धर्म के अनुसार जब तलाक होता है तो पति अपनी पत्नी को इद्दत तक यानी तीन महीन और दस दिन तक उसे गुजारा भत्ता देता है. इद्दत की अवधि के बाद वह औरत शादी कर सकती है और जब उसकी दूसरी शादी हो जाती है, तो उसे गुजारा भत्ता नहीं दिया जाता है. अगर किसी औरत की दोबारा शादी ना हो,तो यह उसके पति की इंसानियत पर निर्भर है कि वह पत्नी को गुजारा भत्ता देता है या नहीं. इन हालात में अगर कोई स्त्री कोर्ट जाती है, तो फिर उसे गुजारा भत्ता मिलेगा जैसा कि कोर्ट कह रहा है. 

क्या है मुस्लिम महिला अधिनियम 1986

शाहबानो प्रकरण के बाद सीआरपीसी की धारा 125 की खूब हुई थी चर्चा, क्योंकि शाहबानो को जब उसके पति मोहम्मद अहमद खान ने 62 वर्ष की उम्र में तलाक दे दिया था, तब उन्होंने इसी कानून के आधार पर गुजारा भत्ता के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाया था. उस वक्त केंद्र में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी और उसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कमजोर करने के लिए एक अधिनियम संसद से पारित किया जिसे मुस्लिम महिला अधिनियम 1986 के नाम से जाना जाता है. इस अधिनियम में यह कहा गया है कि मुस्लिम महिलाओं को सिर्फ इद्दत की अवधि तक ही गुजारा भत्ता पाने का हक है. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत फैसला सुनाते हुए इस अधिनियम को उससे ऊपर करार दिया है. 

महिलाओं को मोहताज नहीं होना पड़ेगा : शाइस्ता अंजुम

पेशे से सामाजिक कार्यकर्ता शाइस्ता अंजुम कहती हैं कि कोर्ट ने गुजारा भत्ता को लेकर मुस्लिम महिलाओं को जो अधिकार दिया है, उसे मैं बेहतरीन करना चाहती हूं. इस कानून के इस्तेमाल से महिलाएं सबल होंगी और तलाक के बाद उन्हें किसी का मोहताज नहीं होना पड़ेगा. साथ ही जो लोग आज शादी और कल तलाक जैसा रवैया रखते हैं, उनपर भी लगाम कसेगी. हमारे समाज में तो 75 प्रतिशत महिलाएं सिर्फ खामोश होकर दुख सहती हैं, उन्हें निश्चित तौर पर राहत मिलेगी.

Also read : India China Border Dispute: भारत-चीन सीमा की 1947 में क्या थी स्थिति और आज क्या है?

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें